मुद्रा पूर्ति के निर्धारकों की अवधारणा की व्याख्या कीजिए | mudra purti ko nirdharit karne wale karak
सामान्य रूप से केंद्रीय बैंक को ही नोट निर्गमन का अधिकार प्राप्त होता है। किन्तु कुछ देशों में छोटे नोट या सिक्के कोषागार भी निर्गमित करता है। उदाहरणार्थ, भारत में ₹ 2 से ₹ 2000 तक के नोट रिजर्व बैंक (RBI) निर्गमित करता है। तथा ₹ 1 का नोट व अन्य सिक्के भारत सरकार द्वारा निर्गमित किए जाते है।
अर्थव्यवस्था की दशा के अनुसार जनता अपने बचत निर्णयों के द्वारा नभी मुद्रा की पूर्ति को प्रभावित किया करती है। मुद्रा की पूर्ति को निर्धारित करने वाले कारक (mudra ki purti ko prabhavit karne vale karak) निम्नलिखित हैं -
(1) प्रारक्षित निधि अनुपात -
प्रारक्षित निधि अनुपात या प्रारक्षित जमा अनुपात मुद्रा पूर्ति को निर्धारित करने वाला एक महत्वपूर्ण तत्व है। व्यापारिक बैंकों को अपनी मांग एवं समय जमाओं का एक निश्चित प्रतिशत, केंद्रीय बैंक के पास प्रारक्षित निधि के रूप में रखना अनिवार्य होता है। रिज़र्व बैंक इसी प्रारक्षित अनुपात में परिवर्तन करके मुद्रा की पूर्ति को प्रभावित करता है। केंद्रीय बैंक जब प्रारक्षित निधि के अनुपात को बढ़ा देता है तब व्यापारिक बैंकों के पास ऋण देने हेतु मुद्रा की पूर्ति कम हो जाती है। और जब इस अनुपात में कमी करता है तब बैंकों के पास ऋण देने हेतु मुद्रा की पूर्ति बढ़ जाती है।
(2) बैंक कोषों का स्तर -
मुद्रा की पूर्ति को निर्धारित करने में बैंक कोषों का स्तर भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। व्यापारिक बैंकों को अपनी जमाओं का एक निश्चित प्रतिशत भाग अपने पास तरल रूप में रखना अनिवार्य होता है। जिसे तरल कोषानुपात भी कहते हैं। इसका निर्धारण केंद्रीय बैंक करता है। इससे स्पष्ट होता है कि तरल कोषानुपात का स्तर जितना अधिक होगा व्यापारिक बैंकों के कोषों का स्तर उतना ही कम होगा। अर्थात व्यापारिक बैंक भी कम मात्रा में ऋण की सुविधाएं दे पाएंगे।
दूसरे शब्दों में, तरल कोषानुपात के अधिक होने पर मुद्रा की पूर्ति में कमी आ जाएगी। और ठीक इसके विपरीत, तरल कोषानुपात में कमी होने पर मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि हो जाएगी। क्योंकि बैंकों में कोषों का स्तर बढ़ जाएगा। जिस कारण बैंक भी अपनी इच्छानुसार ऋण की सुविधाएं देने में समर्थ होंगे।
(3) नकद मुद्रा व जमाओं के प्रति जनता की रुचि -
जनता द्वारा मुद्रा को अपने पास नकद रूप में रखने की मनोवृत्ति भी मुद्रा पूर्ति को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यदि लोगों में मुद्रा को अपने पास नकद रूप में रखने की रुचि ज़्यादा होगी तो ऐसी स्थिति में बैंकों की साख सृजन की क्षमता कम हो जाएगी। फलस्वरूप मुद्रा पूर्ति का स्तर कम जाएगा।
इसके विपरीत, यदि लोगों की रुचि अपने पास नकद रूप में मुद्रा रखने के बजाय बैंकों में जमा करने की ज़्यादा होगी तो निश्चित रूप से बैंक साख में वृद्धि होगी और इससे मुद्रा पूर्ति का स्तर बढ़ेगा।
(4) उच्च शक्ति मुद्रा -
वर्तमान में उच्च शक्ति मुद्रा या मौद्रिक आधार के रूप में मुद्रा की आपूर्ति को व्यक्त किया जाता है। दरअसल उच्च शक्ति मुद्रा, जनता द्वारा धारित करेंसी (नोट व सिक्के) तथा व्यापारिक बैंक के आरक्षितियों का योग होती है। सीधे शब्दों में कहा जाए तो उच्च शक्ति मुद्रा में परिवर्तन के साथ साथ मुद्रा की पूर्ति में भी परिवर्तन होता है।
(5) अन्य कारक -
मुद्रा की पूर्ति, ब्याज़ की दरों, आय का स्तर और अन्य कारकों के कारण भी प्रभावित होती है। क्योंकि इन्हें जनता नकदी के रूप में अपने पास रखना ज़्यादा पसंद करती है। इसके अतिरिक्त, व्यावसायिक क्रियाओं में परिवर्तन से भी बैंकों व जनता के व्यवहार में बदलाव आता है। जिस कारण निकट भविष्य में मुद्रा की पूर्ति में कमी अथवा वृद्धि होने लगती है।
बैंक साख तथा मुद्रा पूर्ति भी एक दूसरे से अप्रत्यक्ष रूप से संबंधित होते हैं। मुद्रा पूर्ति बढ़ जाने पर, लोगों द्वारा उसका एक भाग जमा के रूप में बैंक में जमा कर दिया जाता है। बैंक इन्हीं जमाओं का एक भाग आरक्षित रख कर शेष भाग ऋण के रूप में जनता को से देता है। इस प्रकार मुद्रा की पूर्ति से बैंक साख में वृद्धि हो जाती है।
उम्मीद है आज के इस अंक मुद्रा पूर्ति को प्रभावित करने वाले तत्व (mudra purti ko prabhavit karne vale tatva) को पढ़कर आपने अच्छी तरह जान लिया होगा कि मुद्रा पूर्ति के निर्धारक तत्व क्या हैं? अर्थशास्त्र में ऐसे ही टॉपिक्स पढ़ने के लिए बने रहिए हमारी वेबसाइट studyboosting के साथ।
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