पूंजीवादी अर्थव्यवस्था क्या है? (अर्थ, परिभाषा, पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की विशेषताएं, punjivadi arthvyavastha, punjivadi arthvyavastha ka arth, pramukh visheshtayen)
ऐसी अर्थव्यवस्था, जिसमें आर्थिक क्रियाओं का नियंत्रण, प्रबंधन तथा निर्धारण, बाज़ार की शक्तियों के आधार पर हो, पूंजीवादी अर्थव्यवस्था (punjivadi arthvyavstha) या बाज़ार अर्थव्यवस्था कहलाती है। इसे स्वतंत्र अर्थव्यवस्था भी कहा जाता है।
इसमें अर्थव्यवस्था का संचालन, क़ीमत यंत्र के आधार पर होता है। पूंजीपति, उत्पादक एवं उपभोक्ता इस अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण तत्व होते हैं। पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में सरकार का नियंत्रण नही होता है।
पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की परिभाषा
पूंजीवादी अर्थव्यवस्था, आर्थिक संगठन की एक ऐसी प्रणाली है जिसमें उत्पत्ति के साधनों पर निजी स्वामित्व होता है तथा ये स्वामी इन साधनों को लाभ अर्जित करने के लिए अपने अनुसार, कार्यों में प्रयोग कर सकते हैं।
जी डी एच कोल के अनुसार - " पूंजीवादी अर्थव्यवस्था लाभ प्राप्त करने के लिए उत्पादन की एक ऐसी प्रणाली है जिसमें उत्पादन के उपकरणों एवं पदार्थों पर निजी स्वामित्व होता है। मुख्यतया मज़दूरी के बदले में काम करने वाले श्रमिकों की सहायता से उत्पादन किया जाता है। और किए गए उत्पादन पर पूंजीवादी स्वामी या स्वामियों का अधिकार होता है।
यह एक प्रकार से निजीकरण जैसा ही होता है। जिसके अन्तर्गत पूंजीपतियों को सम्पूर्ण अधिकार प्राप्त होते हैं। वे स्वतंत्र रूप से अपने अपने अधिकारों का प्रयोग एवं नीति नियम लागू कर सकते हैं। ताकि अधिकतम लाभ अर्जित कर सकें।
पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की विशेषताएं (punjivadi arthvyavastha ki visheshtayen)
पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की प्रमुख विशेषताएं (characteristics of capitalist economy in hindi) निम्नलिखित रूप में पायी जाती हैं -
1. स्वतंत्र मांग एवं पूंजी बल से कार्यान्वित -
पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में बाज़ार इतना संपन्न होता है कि वह क्रेताओं व विक्रेताओं के बीच आपसी संबंध को बढ़ावा देता है। जिसका परिणाम यह होता है कि पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का बाज़ार स्वतंत्र मांग व पूर्ति बल से कार्यान्वित होता है।
2. मांग-पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों से मूल्य निर्धारण -
इस तरह के बाज़ार में जहां पूंजी को प्रमुख प्राथमिकता दी जाती है। वहां वस्तुओं एवं सेवाओं की क़ीमतें मांग तथा पूर्ति की बाज़ार शक्तियों द्वारा निर्धारित होती है।
3. उपभोक्ता ही बाज़ार का सम्राट -
पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में उपभोक्ता ही बाज़ार का राजा होता है। उपभोक्ता अपनी आय, आदत, प्राथमिकताओं के अनुसार ही उत्पादों को क्रय कर अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करता है। जिस कारण उत्पादक भी उन्हीं वस्तुओं का उत्पादन करते हैं जिनके उत्पादन से उन्हें अधिकतम लाभ प्राप्त हो। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि उत्पादक वर्ग, उपभोक्ताओं द्वारा की गई मांग के विरुद्ध उत्पादन करना पसंद नहीं करते। अन्यथा उन्हें हानि उठानी पड़ेगी।
4. पूंजी संचय को बढ़ावा -
इस तरह की अर्थव्यवस्था में पूंजी को ही सर्वोत्तम साधन के
रूप में माना जाता है। पूंजी को अत्यधिक महत्व दिया जाता है। इसलिए पूंजीवादी अर्थव्यवस्था (punjivadi arthvyavastha) में पूंजी संचय की प्रवृत्ति को ज़्यादा प्रोत्साहन मिलता है।
5. सरकारी हस्तक्षेप नहीं -
बाज़ार की मांग एवं पूर्ति की किसी भी प्रक्रिया में सरकार कोई हस्तक्षेप नहीं करती है। साथ ही उत्पादकों के निर्णयों में भी सरकार की तरफ़ से कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाता है। सरकार केवल अपनी ओर से क़ानून व्यवस्था एवं प्रतिरक्षा यानि कि उचित रखरखाव पर अपना ध्यान देती है।
6. निजी हाथों में स्वामित्व एवं प्रबंधन -
पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में उत्पादन के साधनों पर निजी हाथों का स्वामित्व होता है। साथ ही उसका प्रबंधन भी निजी हाथों में यानि कि पूंजीपतियों के हाथों में होता है। ऐसी अर्थव्यवस्था में उत्पादक, निर्णय लेने में स्वतंत्र होता है एवं उसके लाभ पर भी उत्पादक का ही अधिकार होता है।
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अर्थशास्त्र