निजीकरण क्या है? निजीकरण के फ़ायदे और नुक़सान | Privatisation meaning in hindi

निजीकरण - निजीकरण का अर्थ और परिभाषा, गुण व दोष, privatization in india in hindi, nijikaran ke fayde evam nuksan


Nijikaran kya hai?

ऐसी प्रक्रिया जिसमें सार्वजनिक क्षेत्रों का मालिकाना हक़ निजी हाथों में चला जाता है। निजीकरण कहलाती है। इस नीति के तहत सार्वजनिक क्षेत्रों के कई उपक्रमों को निजी क्षेत्रों के स्वामित्व अथवा नियंत्रण को बेच दिया जाता है। निजीकरण का अर्थ क्या है? (nijikaran ka arth kya hai?) तो इसे हम आसान शब्दों में यह कह सकते हैं कि,

  "ऐसी प्रक्रिया निजीकरण कहलाती है जहाँ किसी निजी क्षेत्र को, किसी सार्वजनिक उद्यम का स्वामी बना दिया जाता है या किसी निजी क्षेत्र को सार्वजनिक क्षेत्र के प्रबंधन का कार्य सौंप दिया जाता है।"

निजीकरण के अंतर्गत आर्थिक क्रियाओं में सरकार के हस्तक्षेप को धीरे-धीरे कम किया जाता है। प्रतिस्पर्धा के आधार पर चलने वाले निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित किया जाता है। सरकारी ख़ज़ाने पर बोझ बन चुके सरकारी उपक्रमों को निजी हाथों में बेच देते हैं। 

नयी आर्थिक नीति के अंतर्गत साल 1991 में भारतीय अर्थव्यवस्था में कई महत्वपूर्ण सुधार किये गए थे। भारतीय अर्थव्यवस्था को देश और विदेश के निजी क्षेत्र के व्यापारियों के लिए खोल दिया गया था। 

उदारीकरण, वैश्वीकरण और निजीकरण की प्रक्रिया को सरंचनात्मक ढंग से अपनाया गया। इस अंक में हम आपको निजीकरण (nijikaran) के बारे बताने जा रहे हैं। तो चलिये विस्तार से समझते है कि निजीकरण क्या है? (nijikaran kya hai?)


निजीकरण क्या होता है? (Nijikaran kya hota hai) | privatisation definition in hindi

निजीकरण से तात्पर्य (nijikaran se tatparya) है किसी सार्वजनिक उपक्रम के स्वामित्व या प्रबंधन का सरकार द्वारा त्याग। सरकारी कंपनियां, निजी क्षेत्रक की कंपनियों में दो प्रकार से परिवर्तित हो रही है -

(क) सरकार का सार्वजनिक कंपनी के स्वामित्व और प्रबंधन से बाहर हो जाना तथा
(ख) सार्वजनिक क्षेत्रक की कंपनियों को सीधे बेच दिया जाना।

किसी सार्वजनिक क्षेत्रक के उद्यमों द्वारा जनसामान्य को इक्विटी की बिक्री के माध्यम से निजीकरण को विनिवेश कहा जाता है। सरकार को लगता है कि इस प्रकार की बिक्री करने से वित्तीय अनुशासन बढ़ेगा और आधुनिकीकरण में सहायता मिलेगी।




निजीकरण से आशय अर्थव्यवस्था के किसी भी क्षेत्र में सरकारी संबद्धता को किसी भी रूप में वापस लेना होता है। जब सरकार सार्वजनिक संपत्ति का विक्रय करती है तो उसे भी निजीकरण कहा जाता है। सार्वजनिक क्षेत्र का अपनिवेश, रुग्ण सार्वजनिक इकाइयों को बंद कर देना या उनका विक्रय कर देना आदि निजीकरण (privatisation) इन हिंदी के अंतर्गत आते हैं। 

सरल शब्दों में कहें तो निजीकरण वह प्रक्रिया होती है जिसमें कोई निजी क्षेत्र किसी सार्वजनिक उद्यम का स्वामी बन जाता है या उसके प्रबंधन का कार्य करता है।

नई आर्थिक नीति की एक विशेषता यह है कि इसके फलस्वरूप निजी क्षेत्र का विस्तार हुआ है। भारत में आर्थिक विकास के प्रारंभ से ही सार्वजनिक क्षेत्र को निजी काहेतर्क की तुलना में अधिक महत्व दिया गया। परन्तु नये आर्थिक सुधार में सार्वजनिक क्षेत्र का विकास न करने तथा निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन देने की नीति स्वीकार की गई।


निजीकरण की ज़रूरत (requirement of privatization in hindi)

यदि आप सोच रहे हैं कि सार्वजनिक क्षेत्रों का निजीकरण क्यों ज़रूरी है? (nijikaran kyon zaruri hai?) या सरकार को सार्वजनिक क्षेत्रों की निजी हाथों में सौंपने की ज़रूरत क्यों पड़ी? ऐसे क्या कारण थे जिनके कारण सरकार को आर्थिक नीति कब तहत कुछ नए कदम उठाने पड़े? तो चलिए हम जानते हैं।

आज़ादी के बाद देश की बिगड़ी हुई अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए अनेक नितियाँ व योजनाएँ बनाई गयी थीं। जिनके अंतर्गत देश की प्रतिव्यक्ति आय व राष्ट्रीय आय बढ़ाने पर ज़ोर दिया जा रहा था। बेरोज़गारी कम करने पर ज़ोर दिया जा रहा था। देश के नागरिकों के जीवन स्तर को सुधारने का हर संभव प्रयास किया गया। ताकि देश का विकास हो सके। ऐसे समस्त उद्देश्यों को ध्यान में रखकर काम किया जा रहा था। 


देश में विकास संबंधी सभी कार्य हो रहे थे लेकिन सही मायने में विकास के लिए जिन चीज़ों की ज़रूरत थी वो नहीं मिल पा रही थीं। 1990 के दशक में देश आर्थिक बदहाली के दौर में आ खड़ा हुआ।

सन 1991 में आख़िर एक दिन ऐसा भी आ गया। जब देश की आर्थिक स्थिति को चलाने के लिए सरकार के पास केवल 1 हफ़्ते का मुद्रा कोष ही बच गया था जिससे कि देश की अर्थव्यवस्था को चलाया जा सके। इस समस्या से बचने के लिए 1991 में सरकार द्वारा आर्थिक नीति के तहत उदारीकरणनिजीकरण और वैश्वीकरण की नीतियाँ अपनाई गयीं। 


भारत में निजीकरण की शुरुआत कब हुई?

भारत में आर्थिक निजीकरण की शुरुआत सन 1991 की नयी आर्थिक नीतियों के तहत हुई थी।किंतु 90 के दशक में राजीव गाँधी जी के नेतृत्व में सरकार आर्थिक उदारीकरण की तरफ मुड़ने लगी।

चूँकि ऐसे कठिन समय में अंतर्राष्ट्रीय फंडिंग एजेंसियों ने सरकार को आर्थिक उदारीकरण की तरफ़ मुड़ने पर विवश कर दिया। जिसका परिणाम था 1991 में पी. वी. नरसिम्हा राव जी के कार्यकाल मे नयी आर्थिक नीतियों को लागू करना। साल 1991 की नयी आर्थिक नीति के अंतर्गत देश मे निजीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई। निजीकरण की इस प्रक्रिया को बाद में आने वाली सरकारों ने भी जारी रखा।
निजीकरण की बात करें तो यह फ़ैसला सार्वजनिक उद्यमों की स्थिति सुधारने में प्रभावशाली साबित होगी ऐसी आशा की गई थी। सरकार को यह आशा थी कि निजीकरण privatisation से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के अन्तर्वाह को विशेष तौर पर बढ़ावा मिल सकता है। इसी उद्देश्य से सरकार ने सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण कर उनके प्रबंधन के निर्णयों को निजी हाथों में सौंपना शुरू किया व उनकी कार्यकुशलता को सुधारने का प्रयास किया।

निजीकरण को लेकर विद्वानों के साथ-साथ देश में रहने वाले नागरिकों के मत भी अलग-अलग हैं। एक मत यह है कि क्या केवल घाटे में चल रहे सरकारी उपक्रम का निजीकरण होना चाहिए? तो वहीं कुछ विद्वानों का दूसरा मत भी कि क्या केवल लाभ कमा रहे सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण कर देना चाहिए। 

कुछ विद्वान इस निजीकरण को सार्वजनिक उद्यमों की कुशलता बढ़ाने के लिए महज़ एक विश्वव्यापी लहर मान रहे हैं। तो कुछ विद्वानों का कहना है कि निजीकरण, किसी भी सार्वजनिक संपत्ति का निजी स्वार्थ के लिए बिक्री करना मात्र है।

देश के सर्वांगीण विकास के लिए निजीकरण का फ़ैसला मिला जुला माना जाता है। कुछ क्षेत्रों में इसके लाभ देखे गये हैं तो कुछ क्षेत्रों में इसके विपरीत प्रभाव भी देखे जाते हैं। आइये अब हम निजीकरण के फ़ायदे और नुक़सान (nijikaran ke fayde aur nuksan) की समीक्षा करते हैं।


निजीकरण के फ़ायदे | Benefits of privatisation in hindi

देश के आर्थिक विकास हेतु अपनाए गये निजीकरण के लाभ (Nijikarn ke labh) निम्नलिखित हैं-

1) प्रदर्शन में सुधार -
ज़्यादातर यही होता है कि सरकार द्वारा चलाये जाने वाले  उपक्रम, प्रशासन की पेचीदगियों के चलते कोई भी फ़ैसले लेने में देरी करते हैं। जिसका सीधा-सीधा असर सार्वजनिक क्षेत्र उवक्रमों पर पड़ता है। वहीं निजी क्षेत्र की कंपनियां केवल मुनाफ़े के लक्ष पर केंद्रित होती हैं। परिणामस्वरूप  उनकी कार्यक्षमता में वृद्धि होती है।



2) उत्पादन एवं उत्पादक क्षमता में वृद्धि -
सरकार पर हर क्षेत्र का समान रूप से रक्षण व पोषण करने की ज़िम्मेदारी होती है। उसे इन्हीं सीमित संसाधनों का प्रयोग कर अर्थव्यवस्था का विकास करना होता है। जबकि निजी क्षेत्रों के उपक्रमों का उद्देश्य सीमित होने के कारण वे अपने निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति अपेक्षाकृत सार्वजनिक क्षेत्रों से जल्दी ही कर लेते हैं। जिस कारण निजी क्षेत्रों की उत्पादन क्षमता व उत्पादन में बढ़ोत्तरी होती है।

3) निवेश के क्षेत्र में वृद्धि -
सरकार व्यापार को बढ़ावा के नियमों में लचीलापन देकर निवेश को प्रोत्साहन देना चाहती है। ताकि इस उदारीकरण के तहत अनेक उद्यमियों को भारत में निवेश के लिए प्रोत्साहन मिल सके। इसके अतिरिक्त निवेशक निजी क्षेत्र की कंपनियों पर अपेक्षाकृत अधिक भरोसा करते हैं। इसलिए सार्वजनिक क्षेत्रों की अपेक्षा निजी क्षेत्र के उपक्रमों में अच्छा निवेश पाया जाता है।

4) बहुराष्ट्रीय कंपनियों की संख्या में निरंतर वृद्धि -
सरकार द्वारा उदारीकरण की प्रक्रिया के तहत ऐसी अनेक बहुराष्ट्रीय कंपनियां हैं जिन्हें उदारीकरण के तहत इन देशों में निवेश करने के लिए प्रोत्साहन मिलता है। ये कंपनियां इन देशों में विभिन्न क्षेत्रों में निवेश करने में दिलचस्पी लेने लगती हैं।

5) जीडीपी के आकार में वृद्धि -
निश्चित तौर पर व्यापार में छूट मिलने से देश के अंदर हो या बाहर, निवेश में दिलचस्पी लेने वाली कंपनियां अपना निवेश बढ़ाकर, अपना उत्पादन बढ़ाने में अपना सहयोग देती हैं। जिसके फलस्वरुप GDP (सकल घरेलू उत्पाद) में भी वृद्धि होती है।
 

निजीकरण के नुक़सान | Disadvantages of privatisation in hindi | निजीकरण के दोष

निजीकरण से नुक़सान की बात की जाए तो हम देखेंगे कि लाभ के अलावा निजीकरण से नुक़सान (nijikaran se nuksan) भी उतने ही ज़्यादा हैं - 

1) कोई जवाबदेही नहीं -
चूँकि सरकार जनता के लिए काम करती है। इसलिए किसी भी समस्या के होने पर राजनैतिक हस्तक्षेप होने लगता है। सरकार की जनता के प्रति जवाबदेही भी होती है। किंतु निजी क्षेत्र के उपक्रमों में जनता के प्रति कोई जवाबदेही नहीं रह जाती।


2) सामाजिक उद्देश्यों की कमी -
अक़्सर देखा जाता है कि निजी क्षेत्र में सामाजिक उद्देश्यों के प्रति उदासीनता नज़र आती है। निजी क्षेत्रों का लक्ष्य केवल उच्चतम लाभ कमाना होता है। भारतीय संविधान में जिस सामाजिक, आर्थिक न्याय की बात की गयी है उस लक्ष्य को निजीकरण द्वारा प्राप्त करना मुश्किल होता है।

3) ग़रीब वर्ग का और अधिक संघर्ष करना -
निजीकरण होने का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण खामियाज़ा यह भुगतना पड़ता है कि ऐसी व्यवस्था में सरकार का नियंत्रण के। और निजी उद्योगपतियों के दबदबा ज़्यादा बना रहता है। जिस कारण रोज़गार की कोई गारंटी नहीं होती तो वहीं प्रति व्याकर्क आय की दर में लगातार कमी आने लगती है।

4) सरकारी नौकरियों में आरक्षण ख़त्म -
चूँकि घाटे में चल रहे उपक्रमों को बेचकर सरकार उन उपक्रमों से अपने सारे अधिकार हटा लेती है। इसलिए उन उपक्रमों के नवीनीकरण के बाद सारा प्रबंधन निजी हाथों में चला जाता है। इसलिए नए प्रबंधन के हिसाब से नए तरीके से नए कर्मचारियों की भर्ती सरकार के अधीन नहीं होती। सरकारी नौकरियों से आरक्षण ख़त्म हो जाता है।

5) सामाजिक हित के स्थान पर स्वहित का महत्व -
इस तरह की अर्थव्यवस्था में पूँजीवाद के बढ़ने का डर होता है। नीति नियम बनाते समय सरकार भी कुछ गिने चुने उद्योगपतियों के पक्ष में नीतियाँ बनाती है। जिस कारण सरकार के आर्थिक फ़ैसलों का फ़ायदा कुछ न चुने मुट्ठी भर उद्योगपति वर्ग को ही मिलता है। परिणामस्वरूप बाज़ार में एकाधिकार बढ़ता है और स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के अवसर कम रह जाते हैं।
 

निजीकरण सही या गलत | Nijikaran sahi hai ya galat?

क्या निजीकरण करना सही है? तो इसके जवाब में हम यही कहना चाहेंगे कि व्यापार करना सरकार का एकमात्र कार्य नहीं है। इसलिए इन क्षेत्रों का, पूरी तरह से सरकार के नियंत्रण में रहना ठीक नहीं। किंतु राष्ट्रहितों का ध्यान रखते हुए शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा और रोज़गार से जुड़े क्षेत्रों पर सरकारी नियंत्रण होना अत्यंत ही आवश्यक है। 

ऐसी अर्थव्यवस्था जहाँ सामाजिक व आर्थिक असमानता बहुत ज़्यादा है  में सरकार पूरी तरह से निजी क्षेत्र पर निर्भर रहे, यह सही नहीं। सार्वजानिक क्षेत्र के औद्योगिक संस्थानों की कार्यकुशलता बढ़ाने के लिए सरकार के पास केवल निजीकरण ही एकमात्र विकल्प नहीं होना चाहिए। बल्कि सरकार चाहे तो सार्वजनिक क्षेत्र के काम करने के तरीकों में बदलाव कर सकती है। सरकार के पास योग्यता और साधनों की कमी नहीं है। अगर कमी है तो इक्षाशक्ति और दॄढ संकल्प की।

उम्मीद है यह लेख "निजीकरण क्या है? निजीकरण के फ़ायदे और नुक़सान क्या हैं? | Nijikaran kya hai? Nijikaran ke fayde aur nuksan kya hain? आपके अध्ययन सामग्री में शामिल होकर अवश्य ही मददग़ार साबित होगा। अपनी प्रतिक्रिया आप comment box में दे सकते हैं।

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