कार्ल पियर्सन का सहसंबंध गुणांक, कार्ल पियर्सन सहसंबंध गुणांक के गुण दोष, कार्ल पियर्सन सहसंबंध गुणांक की सीमाएं (advantages and disadvantages of karl pearson coefficient in hindi)
सुप्रसिद्ध सांख्यिक कार्ल पियर्सन ने सहसंबंध की माप ज्ञात करने के लिए एक सर्वोत्तम विधि का प्रतिपादन सन 1896 में किया था। सह-संबंध की माप को इन्होंने एक गुणांक के रूप में ज्ञात करना सिखाया जिसे कार्ल पियर्सन का सहसंबंध गुणांक (karl pearson's coefficient of correlation) कहा जाता है।
सहसंबंध गुणांक को मापने की यह रीति एक गणितीय पद्धति है। इससे न केवल सहसंबंध की दिशा व मात्रा का अनुमान लगाया जाता है बल्कि इसकी सहायता से सहसंबंध का संख्यात्मक माप भी प्राप्त होता है। इसके अंतर्गत गणितीय रूप में कार्ल पियर्सन गुणांक (karl pearson gunank) की गणना कर सहसंबंध का अनुमान लगाया जाता है। सरल शब्दों में कहें तो यह दो चरों X और Y के बीच रेखीय संबंधों के सही संख्यात्मक मान की कोटि को दर्शाता है।
इस विधि को सहसंबंध को मापने की श्रेष्ठ विधि कहा जाता है क्योंकि इसका अनुमान संख्यात्मक रूप से भी लगाया जाता है। कार्ल पियर्सन की यह विधि, समांतर माध्य एवं प्रमाप विचलन पर आधारित होने के कारण गणितीय दृष्टि से पूर्ण शुद्ध भी मानी जाती है। कार्ल पियर्सन के सहसंबंध गुणांक (karl pearson ka sahsambandh gunank) को गुणन आघूर्ण सहसंबंध (product moment correlation) या सरल सहसंबंध गुणांक (saral sahsambandh gunank) भी कहा जाता है।
इसमें ख़ास तौर से इस बात का ध्यान रखना ज़रूरी है कि कार्ल पीयरसन सहसंबंध गुणांक को तभी उपयोग में लाना चाहिए जब चरों के बीच का संबंध रेखीय हो। क्योंकि कार्ल पीयरसन की गणना भ्रामक हो सकती है यदि X और Y चरों के बीच रेखीय संबंध न हों।
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कार्ल पियर्सन के सहसंबंध गुणांक की गणना (Calculation of Karl Pearson's Coefficient of Correlation in hindi)
कार्ल पियर्सन के सहसंबंध गुणांक की गणना विधि (karl pearson ke sahsambandh gunank ki vidhi) निम्न हैं -
1. प्रत्यक्ष रीति (Direct Method)
2. लघु रीति (Short-cut Method)
1. प्रत्यक्ष रीति (Direct Method) -
प्रत्यक्ष रीति से सहसंबंध गुणांक की गणना करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि X एवं Y दोनों चरों का समांतर माध्य पूर्णांक में आता हो।
प्रत्यक्ष रीति से सहसंबंध गुणांक की गणना करने के लिए सबसे पहले सह-विचरण का माप ज्ञात किया जाता है। इसके लिए प्रत्येक समंकमाला में समान्तर माध्य की सहायता से दोनों X एवं Y पद मूल्यों का अलग अलग विचलन ज्ञात कर लिया जाता है। X श्रेणी के विचलनों के लिए dx तथा Y श्रेणी के विचलनों के लिए dy लिखा जाता है।
विचलनों की मात्रा ज्ञात करने के बाद दोनों समंकमालाओं के तत्संबंधी विचलनों को गुणा करके गुणनफलों के जोड़ को मूल्यों की संख्या में भाग दे दिया जाता है।
सूत्र के रूप में ,
जहां dx और dy, x और y श्रेणियों के समांतर माध्यों से निकाले गए विचलन हैं। सहसंबंध गुणांक वास्तव में सह विचरण के माप का ही गुणांक होता है। इस निरपेक्ष मान को गुणांक में परिवर्तित करने के लिए दोनों श्रेणियों के प्रमाप विचलनों के गुणनफल से भाग दे दिया जाता है। इस प्रकार उपलब्ध अनुपात ही कार्ल पियर्सन का सहसंबंध गुणांक (karl pearson ka sahsambandh gunank) कहलाता है।
सूत्र के रूप में,
अतः सूत्र को सरलतम रूप में बनाने के लिए दोनों पद मूल्यों के विचलनों के गुणनफलों के योग में पदों की संख्या तथा दोनों पद मूल्यों के प्रमाप विचलनों के गुणनफलों से भाग दे दिया जाता है। इस तरह प्राप्त भागफल ही सह-
संबंध गुणांक होता है।
सूत्र के रूप में,
यह सूत्र सबसे अधिक सरल माना जाता है। अतः व्यवहार में भी इसी सूत्र का बहुतायत में प्रयोग किया जाता है।
2. लघु रीति (Short-cut Method)
सहसंबंध गुणांक ज्ञात करने की प्रत्यक्ष रीति में विचलन समांतर माध्य से निकाले जाते हैं। यदि समांतर माध्य पूर्णांक में न हों, तब गणना की यह क्रिया अत्यन्त कठिन व भ्रामक हो जाती है। इसलिए ऐसी दशा में गणना को सरल बनाने के लिए लघु रीति अपनाई जाती है।
इसके अन्तर्गत समंक श्रेणियों में किसी उपयुक्त मूल्य को कल्पित माध्य मानकर विचलन ज्ञात कर लिया जाता है। इसके बाद इन कल्पित माध्यों से X एवं Y श्रेणी के मूल्यों के लिए अलग अलग विचलन निकाल लिया जाता है।
X व Y श्रेणियों के प्रत्येक विचलनों के साथ आपस में गुना करके गुणनफल निकल लिया जाता है। तथा इन गुणनफलों का योग प्राप्त कर लिया जाता है। पदों की संख्या (N) का निर्धारण कर अंत में निम्न सूत्र का प्रयोग कर सहसंबंध गुणांक प्राप्त कर लिया जाता है।
सूत्र के रूप में,
इस प्रकार उपरोक्त दोनों ही विधियों का प्रयोग अपनी अपनी सुविधानुसार कर लिया जाता है। सरल शब्दों में हम कह सकते हैं कि कार्ल पीयरसन सहसंबंध गुणांक दो चरों X और Y के बीच रेखीय संबंधों के सही संख्यात्मक मान की कोटि को दर्शाता है।
कार्ल पियर्सन के सह-सम्बन्ध गुणांक के गुण-दोष (Merit and Demeris of Karl Pearson's Coefficient of Correlation in hindi)
कार्ल पियर्सन के सह-सम्बन्ध गुणांक के गुण व दोष (karl pearson ke sahsambandh gunank ke gun evam dosh) निम्नलिखित हैं -
गुण (Merits) :
कार्ल पियर्सन के सह-सम्बन्ध गुणांक के गुण (karl pearson ke sahsambandh gunank ke gun) निम्मलिखित हैं -
(1) सहसंबंध मापने की लोकप्रिय विधि -
कार्ल पियर्सन का सह-सम्बन्ध गुणांक दो चरों के मध्य सम्बन्ध मापने की सबसे महत्वपूर्ण लोकप्रिय व विश्वसनीय विधि है। क्योंकि इस विधि से सूक्ष्म एवं संख्यात्मक आँकड़ा प्राप्त होता है, जिसका निर्वचन सही रूप से किया जा सकता है।
(2) सार्थक निष्कर्ष -
कार्ल पियर्सन का सह-सम्बन्ध गुणांक माध्य व प्रमाप विचलन पर आधारित होता है। यह गणितीय दृष्टि से पूर्ण शुद्ध होता है। इनके द्वारा निकाले गए निष्कर्ष सार्थक व उचित होते हैं ।
(3) बीजगणितीय दृष्टि से उत्तम -
यह माप बीजगणितीय दृष्टि से उत्तम है। क्योंकि यह दोनों समंकमालाओं के सभी पदों पर आधारित होता है।
(4) मात्रा और दिशा दोनों की जानकारी -
इस माप की महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसके गुणांक से सह-सम्बन्ध की मात्रा और दिशा दोनों की जानकारी मिलती है।
(5) उच्च, मध्य या निम्न मात्रा का प्रर्दशन -
कार्ल पियर्सन का सह-सम्बन्ध गुणांक धनात्मक अथवा ऋणात्मक सम्बन्ध बताने के साथ-साथ दो चरों के सम्बन्ध की उच्च, मध्य अथवा निम्न मात्रा भी दर्शाता है।
दोष (Demerits) :
कार्ल पियर्सन के सह-सम्बन्ध गुणांक के दोष (karl pearson ke sahsambandh gunank ke dosh) निम्मलिखित हैं -
(1) गणितीय दृष्टि से जटिल -
कार्ल पियर्सन के सह-सम्बन्ध गुणांक की गणन क्रिया अपेक्षाकृत जटिल होती है।
(2) सीमांत मदों को प्रभावशीलता -
सह-सम्बन्ध के मूल्य सीमान्त मदों से प्रभावित होते हैं।
(3) गणना विधि में अधिक समय -
कार्ल पियर्सन गुणांक की गणना करने की इस विधि में समय अधिक लगता है।
(4) रेखीय सम्बन्ध की मान्यता -
इस गुणांक में ऐसी मान्यता है कि समंकमालाओं के मध्य रेखीय सम्बन्ध विद्यमान है। लेकिन व्यवहार में अनेक परिस्थितियों में ऐसा नहीं होता।
(5) गणना में अत्यधिक सावधानी -
सह-सम्बन्ध गुणांक का मान +1 और -1 के बीच में ही होता है। इसलिए इसकी गणना के लिए बहुत अधिक सावधानी की आवश्यकता है वरना निष्कर्ष ग़लत भी हो सकता है।
इस अंक में आपने कार्ल पियर्सन का सहसंबंध गुणांक क्या है? विस्तार से जाना। उम्मीद है हमारा यह अंक "कार्ल पियर्सन का सहसंबंध गुणांक एवं इसके गुण-दोष" आपके अध्ययन में अवश्य सहायक साबित होगा।
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