समंकों का चित्रों द्वारा प्रदर्शन (चित्रमय प्रदर्शन किसे कहते हैं, chitramay pradarshan ki upyogita evam labh, चित्रीय प्रदर्शन के दोष, Chitramay pradarshan ki simaye in hindi)
अनुसंधान के लिए जो आंकड़े संकलित किए जाते हैं। जटिल व विस्तृत होते हैं। इसलिए इन आंकड़ों को सरलता से समझ पाना संभव नहीं होता है। यद्यपि इन्हें वर्गीकरण, सारणीयन, निर्देशांक आदि के माध्यम से सरल एवं तुलनीय बनाया जाता है। किन्तु फ़िर भी ये आंकड़े अधिकांशतः एक नज़र आसानी से समझ नहीं आ पाते।
इसलिए इन आंकड़ों को एक नए रूप में, चित्रों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है ताकि प्रत्येक समंकों को सरलतापूर्वक समझा जा सके। इसे ही चित्रमय प्रदर्शन (Chitramay pradarshan) कहा जाता है।
इस अंक में हम समंकों के चित्रमय प्रदर्शन से क्या आशय है (samankon ke chitramay pradarshan se kya aashay hai?) एवं चित्रमय प्रदर्शन की उपयोगिता लाभ एवं दोष क्या हैं जानेंगे।
चित्रमय प्रदर्शन का अर्थ (Meaning of Diagrammatic Representation in hindi)
सांख्यिकीय आंकड़ों को सरल, रोचक एवं आकर्षक ज्यामितीय आकृतियां, जैसे दण्ड चित्र (bar diagram), आयत (rectangles), वृत (Circle), तस्वीर (Picture), नक्शा (maps) आदि के रूप में प्रस्तुत करने की विधि को आंकड़ों का चित्रमय प्रदर्शन (aankdon ka Chitramay pradarshan) कहा जाता है।
सी. डब्ल्यू. लॉ. के अनुसार - "सभी प्रकार के समंकों का अत्यन्त प्रभावशाली रूप से निरूपण करना हो, तो चित्रों का प्रयोग किया जा सकता है।"
चित्रों की उपयोगिता एवं लाभ (Utility and Advantages of Diagrams in hindi)
चित्रमय प्रदर्शन के प्रमुख लाभ (Chitramay pradarshan ke pramukh labh) निम्नलिखित हैं -
1. तथ्यों को सरल एवं बोधगम्य बनाना -
चित्रों की सहायता से जटिल से जटिल सांख्यिकीय सामग्री को भी सरल बनाया जा सकता है। जो जनसामान्य की समझ में आसानी से आ सके। सामान्य तौर पर आप चित्रों द्वारा बड़ी ही आसानी से किसी निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं। जबकि अंकों वाले आंकड़ों से निष्कर्ष निकालना उतना आसान नहीं होता है।
2. आकर्षक एवं प्रभावशाली -
सामान्य तौर पर चित्र समंकों की तुलना में स्पष्ट व आकर्षक होते हैं। जो कि पढ़ने वाले का ध्यान बड़ी ही आसानी से अपनी ओर खींच लेते हैं। इसके अतिरिक्त चित्रों में प्रयोग किए जाने वाले रंग, पढ़ने वालों के मन मस्तिष्क पर स्थाई प्रभाव डालते हैं।
3. विशेष ज्ञान की आवश्यकता नहीं -
सीधे शब्दों में कहा जाए तो चित्रों को समझना जनसामान्य के लिए बहुत सरल है। क्योंकि चित्रों को देखकर समझने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि व्यक्ति को सांख्यिकी का गहनता से ज्ञान हो।
4. याद रखने में आसानी -
अंकों या सांख्यिकीय समंकों को अधिक समय तक याद रखना कठिन होता है, लेकिन चित्रों को देखकर याद रखना अपेक्षाकृत आसान होता है।
5. तुलना करने में सहायक –
चित्रों की सहायता से विभिन्न सूचनाओं की प्रभावशाली तुलना करना अपेक्षाकृत आसान हो जाता है।
6. पूर्वानुमान में सहायक –
चित्रों की विशेषता होती है कि यह तथ्यों की प्रकृति को अत्यंत कुशल एवं बाह्य रूप में प्रस्तुत करते हैं। अतः इनके आधार पर भविष्य के लिए सही रूप में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है।
7. समय एवं श्रम की बचत -
चित्रों की सहायता से आँकड़ों को समझने में कम समय लगता है साथ ही श्रम की बचत भी हो जाती है।
चित्रमय प्रदर्शन की सीमाएं (Limitations of Diagrams in hindi)
चित्रमय प्रदर्शन की प्रमुख सीमाएँ (Chitramay pradarshan ki pramukh simaye) निम्न लिखित हैं -
1. समंकों का सजातीय होना आवश्यक -
चित्रमय प्रदर्शन के लिए समंकों के गुण व स्वभाव का एक जैसे होना आवश्यक होता है। अर्थात तुलनात्मक अध्ययन के लिए समंकों का सजातीय होना आवश्यक है। क्योंकि चित्रों के माध्यम से तुलना उसी समय उपयुक्त मानी जाती है जब वे समान गुणों के आधार पर बनाये जायें। यदि वे दो विभिन्न गुणों के आधार पर बनाये जायें, तो उनमें तुलना करना अपेक्षाकृत कठिन होगा।
2. सूक्ष्म अन्तर दिखाना कठिन -
चित्रों द्वारा सूक्ष्म अन्तर को प्रदर्शित करना सम्भव नहीं हो पाता। जैसे- A और B व्यक्ति की मासिक आय क्रमश: 422 व 425 रुपये है, तो इस अन्तर को चित्रों द्वारा प्रदर्शित करने में असुविधा होगी तथा चित्र द्वारा अन्तर का अनुमान भी पूर्णतः सही नहीं होगा। अर्थात चित्रों के माध्यम से विभिन्न मूल्यों का सूक्ष्म अन्तर प्रदर्शित करना सम्भव नहीं होता है।
3. बहुमुखी सूचनाओं का प्रदर्शन कठिन -
चित्रों द्वारा बहुमुखी सूचनाओं को प्रदर्शित करना कठिन होता है। क्योंकि चित्रों में एक से अधिक विशेषता पर बल नहीं दिया जा सकता। जबकि इसके विपरीत, वर्गीकरण एवं सारणीयन के द्वारा बहुत से गुण एक साथ प्रदर्शित किये जा सकते हैं। अर्थात चित्र अनेक प्रकार की तुलना करने में अनुपयोगी साबित होते हैं।
4. केवल तुलनात्मक अध्ययन सम्भव -
चित्रों द्वारा तुलनात्मक अध्ययन सम्भव हो सकता है। लेकिन अकेले चित्र का कोई विशेष अर्थ या अभिप्राय नहीं माना जा सकता। चित्रों का तुलनात्मक अध्ययन करने पर ही उनकी उपयोगिता बढ़ती है।
5. सरलतापूर्वक दुरुपयोग -
स्वार्थी पक्षों द्वारा चित्रों का सरलतापूर्वक दुरुपयोग किया जा सकता है। ग़लत मापदण्ड पर बने चित्र भ्रामक होते हैं। जैसे- यदि चित्र अलग-अलग गुणों के आधार पर बनाये जायें, तो उनकी तुलना भ्रामक ही होगी।
6. परिशुद्धता की कमी -
आँकड़ों की तरह चित्र परिशुद्ध नहीं होते हैं। क्योंकि वे उपसादित मूल्यों पर आधारित होते हैं। अतः वे सामान्य जानकारी के लिए तो उपयुक्त हैं लेकिन विशिष्ट अध्ययन के लिए उपयुक्त नहीं हैं। अर्थात चित्रों की उपयोगिता सामान्य व्यक्ति के लिए है, किसी विशेषज्ञ के लिए नहीं।
7. विशाल अंतर का प्रदर्शन कठिन -
चित्रों द्वारा मापों के मध्य सामान्य अंतर प्रदर्शित करना तो आसान होता है। किन्तु जब मापों के मध्य विशाल अन्तर होता है तो उस अन्तर को चित्रों द्वारा प्रदर्शित करना कठिन हो जाता है।
8. तथ्यों का यथार्थ प्रदर्शन असंभव -
सन्निकट मूल्यों पर आधारित होने के कारण चित्र, तथ्यों का यथार्थ प्रदर्शन करने में असमर्थ होते हैं। अर्थात चित्रों को और अधिक निर्वचन (व्याख्या) करना सम्भव नहीं होता।
इस अंक में आपने चित्रमय प्रदर्शन की उपयोगिता (chitramay pradarshan ki upyogita) तथा चित्रमय प्रदर्शन की सीमाएं (chitramay pradarshan ki simaye) क्या हैं? विस्तार से जाना। उम्मीद है यह अंक आपके अध्ययन में अवश्य मददगार साबित होगा।
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