सूचकांक किसे कहते हैं, सूचकांक क्या है? (अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, महत्व, सीमाएं), Define index number in hindi, (index number in hindi, suchkank kya hota hai, definitions, characteristics, utilities, importance and limitations in hindi)
एक विशेष प्रकार का माध्य जो समय, स्थान अथवा अन्य विशेषताओं के आधार पर किसी चर मूल्य अथवा संबंधित चर मूल्यों के समूह में होने वाले परिवर्तनों की माप करता है। निर्देशांक या सूचकांक (index number) कहलाता है।
सामान्यतया सूचकांक या निर्देशांक दो भिन्न स्थितियों में संबंधित चरों को किसी समूह में औसत परिवर्तन का एक माप है। या हम यूं कह सकते हैं कि सूचकांक या निर्देशांक संबंधित चरों के समूह के परिमाण में परिर्वतन को मापने का एक सांख्यिकीय साधन है।
Table of Contents :1. निर्देशांक या सूचकांक का अर्थ
1.1. निर्देशांक की परिभाषाएं
1.2. निर्देशांक की विशेषताएं
1.3. निर्देशांक की उपयोगिता/महत्व
1.4. निर्देशांक की सीमाएं
निर्देशांक या सूचकांक का अर्थ (nirdeshank ya suchkank ka arth)
सूचकांक का आशय (nirdeshank ka aashay) उन अंकों से है जिनकी सहायता से दो भिन्न भिन्न समयों पर मुद्रा के सामान्य मूल्य का अनुमान लगाया जा सकता है तथा मूल्यों में हुए परिवर्तनों का आसानी से पता लगाया जा सकता है।
निर्देशांक विशिष्ट प्रकार के ऐसे माध्य होते हैं जिनके द्वारा काल श्रेणी (time series) तथा स्थान श्रेणी (special series) की केन्द्रीय प्रवृत्ति का मापन किया जाता है।
परंपरागत रूप से, सूचकांकों को प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है। दो अवधियों में से, जिस अवधि के साथ तुलना की जानी है, उसे अवधि को आधार मान लिया जाता है। आधार अवधि में सूचकांक का मान 100 होता है।
उदाहरण के लिए यदि आप जानना चाहते हैं कि 1990 से लेकर 2005 में क़ीमतों में कितना परिवर्तन हुआ है तब 1990 को आधार वर्ष बना दिया जाता है। फ़िर इन्हीं क़ीमतों को आधार वर्ष की क़ीमतों के प्रतिशत के रूप में दिखाया जाता है। इसके बाद प्रतिशतों का माध्य निकाल लिया जाता है। प्रतिशतों का यही माध्य सांख्यिकी में निर्देशांक या सूचकांक (index number) कहलाता है।
सामान्यतया सूत्र के रूप में,
निर्देशांक की परिभाषाएं | सूचकांक की परिभाषाएं
निर्देशांक या सूचकांक की प्रमुख परिभाषाएं (definitions of index numbers in hindi) निम्न हैं -
क्रॉक्सटन और काउडन के अनुसार - "संबंधित चर मूल्यों के परिणाम (आकार) में होने वाले अंतरों को मापने की युक्ति को ही निर्देशांक कहा जाता हैं।"
ब्लेयर के अनुसार - "एक विशिष्ट प्रकार के माध्य को ही निर्देशांक कहा जाता है।"
वैसेल एवं विलेट के अनुसार - "एक विशेष प्रकार का माध्य, जो समय या स्थान के आधार पर होने वाले सापेक्ष परिवर्तनों का माप बताता हो, निर्देशांक कहा जा सकता है।"
होरेस सेक्राइस्ट के अनुसार - "निर्देशांक अंकों की एक ऐसी श्रंखला है जिसके द्वारा किसी तथ्य के परिमाण में होने वाले परिवर्तनों का समय या स्थान के आधार पर मापन किया जाता है।"
स्पाइगेल के अनुसार - सूचकांक एक ऐसा सांख्यिकीय माप है जो समय, स्थान या विशेषता के आधार पर चर मूल्यों के समूहों में होने वाले परिवर्तनों को प्रदर्शित करता है।"
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि निर्देशांक या सूचकांक एक विशेष प्रकार का माध्य है जिसके द्वारा विभिन्न समयों अथवा स्थानों या स्थितियों में संबंधित चर मूल्यों में होने वाले सापेक्षिक परिवर्तनों को मापा जाता है।
निर्देशांक की विशेषताएं | सूचकांक की विशेषताएं | Characteristics of index number in hindi
विभिन्न परिभाषाओं के आधार पर निर्देशांक की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं -
1. संख्याओं द्वारा व्यक्त (Expressed in numbers) -
निर्देशांक हमेशा ही संख्या (numbers) द्वारा व्यक्त किए जाते हैं। निर्देशांक या सूचकांक एक संख्यात्मक माप है जो कि कुछ संबंधित चरों में होने वाले परिवर्तनों को संख्या द्वारा प्रदर्शित करते हैं। ना कि गुणात्मक विवेचन द्वारा।
जैसे- उत्पादन के बढ़ने या घटने को निर्देशांक संख्या द्वारा व्यक्त किया जाता है ना कि केवल शब्दों (भाषिक विवेचन) के द्वारा।
2. सापेक्ष माप (Relative measure) -
निर्देशांक हमेशा सापेक्ष रूप में होते हैं। निर्देशांक की प्रमुख विशेषता यह है कि इसके द्वारा सापेक्ष माप प्रस्तुत करके तुलनात्मक अध्ययन करना आसान हो जाता है। क्योंकि परिवर्तन की मात्रा को निरपेक्ष रूप में व्यक्त करने से वह तुलना योग्य नहीं रह जाता है। इसलिए उन्हें किसी आधार के सापेक्ष रखकर तुलना के योग्य बनाया जाता है। इसके लिए उन्हें आधार के रूप में 100 मानकर प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है।
3. प्रतिशतों का माध्य (Average of percentages) -
निर्देशांक एक विशेष प्रकार के माध्य होते हैं। इसके लिए सबसे पहले आधार वर्ष के मूल्य को 100 मानकर इसके आधार पर प्रचलित वर्षों के मूल्यों को प्रतिशतों के रूप में परिवर्तित कर दिया जाता है जिन्हें मूल्यानुपात कहा जाता है। तत्पश्चात सभी मूल्यानुपातों का माध्य ज्ञात कर लिया जाता है। इस प्रकार प्रतिशतों का यह माध्य ही निर्देशांक या सूचकांक (index number in hindi) कहलाता है।
4. तुलना का आधार (Basis of Comparison) -
समय या स्थान के आधार पर तथ्यों का तुलनात्मक अध्ययन निर्देशांकों द्वारा संभव बनाया जा सकता है। समय को आधार मानते समय किसी विशेष वर्ष, माह या अन्य किसी समय के अंश को आधार मान लिया जाता है। जबकि स्थान को आधार मानते समय किसी विशेष स्थान या भू-भाग को आधार मानकर परिवर्तन की मात्रा का मापन किया जाता है। वैसे ज़्यादातर मामलों में तुलना का आधार समय ही होता है।
5. सार्वभौमिक उपयोगिता (Universal Utility) -
निर्देशांक की उपयोगिता सार्वभौमिक अर्थात अत्यधिक व्यापक है। आर्थिक एवं व्यवसायिक समस्याओं का तुलनात्मक अध्ययन करने के लिए निर्देशांकों का बहुत अधिक प्रयोग किया जाता है। आधुनिक युग में शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र हो जहां पर निर्देशांकों का प्रयोग न होता हो।
6. औसत के रूप में प्रस्तुत (Present in Average form) -
निर्देशांक परिवर्तन की दिशा को औसत रूप में प्रकट करते हैं। यहां किसी एक वस्तु या कुछ वस्तुओं के परिवर्तन की दिशा व मात्रा का मापन नहीं होता, बल्कि सामान्य रूप से परिवर्तन की दिशा व मात्रा का मापन किया जाता है।
सूचकांकों की उपयोगिता | निर्देशांकों का महत्त्व एवं उपयोगिता | Importance and Utility of index numbers in hindi
सूचकांक (निर्देशांक) का आर्थिक एवं व्यावसायिक क्षेत्र में विशेष अधिक महत्व है। इसलिए निर्देशांक को 'आर्थिक वायुमापक' (Economic Barometer) यन्त्र भी कहा जाता है। जिस प्रकार वायुमापक यन्त्र से वायु के दबाव एवं मौसम की स्थिति के विषय में जानकारी प्राप्त की जाती है। ठीक उसी प्रकार निर्देशांकों की सहायता से भी आर्थिक घटनाओं की शक्ति को मापा जा सकता है।
व्यवसाय के क्षेत्र में निर्देशांकों के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए ब्लेयर ने लिखा है कि, “निर्देशांक व्यवसाय के पथ पर चिह्न और पथ प्रदर्शक स्तम्भ की तरह हैं, जो किसी व्यवसायी को अपनी क्रियाओं के संचालन या प्रबन्ध का ढंग बताते हैं। "
निर्देशांकों की प्रमुख उपयोगिताओं या महत्वों को निम्न बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है -
1. जीवन स्तर का तुलनात्मक अध्ययन-
निर्देशांकों की सहायता से सामान्य नागरिकों एवं श्रमिकों के जीवन स्तर में हुए परिवर्तनों का तुलनात्मक अध्ययन किया जा सकता है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए जीवन निर्वाह सम्बन्धी निर्देशांक (Cost of living index number) तैयार किये जाते हैं जिसके द्वारा विभिन्न वर्ग के व्यक्तियों के जीवन स्तर में हुए परिवर्तनों का अध्ययन किया जा सकता है।
2. मुद्रा की क्रयशक्ति में होने वाले परिवर्तन का ज्ञान -
निर्देशांकों से सबसे बड़ा लाभ यह है कि इनकी सहायता से समय-समय पर मुद्रा की क्रयशक्ति में हुए परिवर्तनों को जाना जा सकता है। चूंकि समाज में मुद्रा का महत्वपूर्ण स्थान है, इसलिए इस प्रकार की जानकारी आर्थिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण होती है।
3. व्यापारियों के लिए उपयोगी-
निर्देशांक व्यापारी तथा उत्पादक वर्गों के लिए भी विशेष रूप से महत्वपूर्ण सिद्ध होते हैं। क्योंकि इनकी सहायता से उन्हें मुद्रा के मूल्य में परिवर्तन तथा सामान्य आर्थिक स्थिति का पता चलता है जिसके अनुसार ये वर्ग उत्पादन एवं व्यापार की योजना तैयार करते हैं।
4. सरकार की मौद्रिक नीति के निर्धारण में सहायक-
जब मूल्य - स्तर में ह्रास से उत्पादन कम होने लगता है तथा मन्दी की शुरुआत हो जाती है , तो इसका प्रभाव समाज के सभी वर्गों पर प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से पड़ता है। सरकार इन्हें दूर करने की उचित नीति अपनाती है। इस प्रकार निर्देशांक कीमत में परिवर्तनों की ओर संकेत कर सरकार को अपनी आर्थिक नीति निर्धारित करने में सहायता पहुँचाते हैं ।
5. उत्पादन में वृद्धि या कमी की सूचना-
उत्पादन सम्बन्धी निर्देशांकों से यह मालूम हो जाता है कि कौन - कौन से उद्योगों में उत्पादन बढ़ रहा है, कौन-कौन से उद्योगों को प्रोत्साहन या आर्थिक सहायता देने की आवश्यकता है ।
6. वास्तविक मजदूरी सम्बन्धी जानकारी -
जीवन निर्वाह व्यय निर्देशांकों की सहायता से वास्तविक मजदूरी (Real wages) में हुए परिवर्तन का अध्ययन होता है तथा उसके आधार पर मजदूरों के असन्तोष को दूर करके औद्योगिक शान्ति स्थापित की जा सकती है।
7. विदेशी व्यापार सम्बन्धी ज्ञान -
विदेशी व्यापार सम्बन्धी निर्देशांकों से विदेशी व्यापार की स्थिति का पता चलता है, जिसकी सहायता से हम अपने विदेशी भुगतान का सन्तुलन करने में सफल होते हैं।
8. कर नीति में सहायक -
निर्देशांक सरकार की कर नीति के निर्धारण में सहायक होते हैं, क्योंकि यदि वस्तुओं के मूल्यों में वृद्धि नहीं हो रही है तो आरामदायक और विलासिता की वस्तुओं पर कर बढ़ाया जा सकता है।
9. राष्ट्रीय आय में परिवर्तन का ज्ञान-
निर्देशांकों को एक विशेष उपयोगिता यह है कि इसके द्वारा राष्ट्रीय आय में होने वाले परिवर्तन का आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है ताकि इस अनुमान के आधार पर अन्य योजनाएँ बनायी जा सके।
निर्देशांक की सीमाएं | सूचकांक की सीमाएं | Limitations of index numbers in hindi
निर्देशांकों की प्रमुख सीमाएँ (nirdeshanko ki pramukh simayen) निम्नलिखित हैं -
1. सापेक्ष परिवर्तनों की माप -
निर्देशांकों द्वारा केवल सापेक्ष परिवर्तनों का ही मापन किया जा सकता है। इसके माध्यम से वास्तविक परिवर्तन की मात्रा का बोध नहीं होता है, क्योंकि निर्देशांक किसी आधार पर आधारित होकर प्रतिशतों में व्यक्त किये जाते हैं।
2. पूर्ण शुद्धता की कमी -
निर्देशांकों की रचना समग्र में से निदर्शन द्वारा कुछ इकाइयाँ चुनकर करते हैं। अतः इन इकाइयों के आधार पर निर्मित निर्देशांक अधिक शुद्ध व विश्वसनीय नहीं होते हैं।
3. उद्देश्य एवं रीति में अन्तर -
निर्देशांक अलग-अलग उद्देश्यों के आधार पर भिन्न-भिन्न रीतियों द्वारा निर्मित किये जाते हैं। इसलिए एक उद्देश्य के लिए बनाये गये निर्देशांक दूसरे उद्देश्य के लिए अनुपयुक्त होते हैं। अतः अलग-अलग उद्देश्यों के लिए अलग-अलग निर्देशांक बनाने पड़ते हैं।
4. सामान्य रूप से ही सत्य -
निर्देशांक सामान्य रूप से ही सत्य होते हैं, क्योंकि ये औसत प्रवृत्ति को ही व्यक्त करते हैं, न कि व्यक्तिगत इकाइयों को।
5. आधार वर्ष का चुनाव -
निर्देशांकों के निर्माण में आधार वर्ष का चुनाव अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इसी के आधार पर समस्त परिणाम निर्भर करते हैं। यदि आधार वर्ष कोई परिणाम वर्ष न होकर असामान्य वर्ष हो तो ऐसे निर्देशांक के द्वारा निकाले गये निष्कर्ष भ्रामक होंगे।
6. दीर्घकालीन तुलना के अयोग्य-
निर्देशांक दीर्घकालीन तुलना के अयोग्य होते हैं, कारण समय में परिवर्तन के साथ-साथ व्यक्तियों की रुचि, आदतें, रीति-रिवाजों व वस्तुओं की क़िस्म आदि में अन्तर आ जाता है। अत: एक बार निर्मित निर्देशांक दीर्घकाल तक तुलना के अयोग्य होते हैं।
7. क़िस्म में परिवर्तन की उपेक्षा -
निर्देशांक किस्म में हुए परिवर्तनों की उपेक्षा करते हैं। कई बार ऐसा देखा जाता है कि क़िस्म में सुधार होने के परिणामस्वरूप मूल्यों में वृद्धि हो जाती है। इस तथ्य का ज्ञान हमें निर्देशांकों से नहीं हो पाता।
8. जीवन निर्वाह निर्देशांकों के द्वारा वास्तविक तुलना सम्भव नहीं -
जीवन निर्वाह निर्देशांकों के द्वारा विभिन्न स्थानों पर रहने वाले लोगों के वास्तविक जीवन स्तर की तुलना नहीं की जा सकती, क्योंकि विभिन्न स्थानों के निवासियों के रहन सहन , रीति-रिवाज तथा खानपान की आदतों में भिन्नता रहती है।
9. माध्यों की सीमाएँ -
निर्देशांकों में समान्तर माध्य, गुणोत्तर माध्य आदि का प्रयोग होता है। प्रयुक्त माध्य की सीमाओं का प्रभाव निर्देशांकों पर भी पड़ता है।
उम्मीद है हमारे इस अंक "Nirdeshank ka kya arth hai?" के माध्यम से आपने निर्देशांक/सूचकांक की विशेषताएं, महत्त्व एवं सीमाएं क्या हैं? समझ लिया होगा। आशा है यह अंक आपके लिए अवश्य ही मददगार साबित होगा।
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