सहसंबंध क्या है? धनात्मक तथा ऋणात्मक सहसंबंध से आप क्या समझते हैं | सरल, आंशिक तथा बहुगुण सह संबंध को स्पष्ट कीजिए | सहसंबंध के प्रकारों की व्याख्या कीजिए | सरल, आंशिक तथा बहुगुण सहसंबंध को स्पष्ट कीजिए | सहसंबंध के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए। सह-सम्बन्ध से क्या आशय है? सहसम्बन्ध का महत्व बताइए।
आर्थिक जगत में अधिकांशतः अनेक घटनाएं ऐसी होती हैं जो परस्पर सम्बन्धित होकर परिवर्तित होती रहती हैं। यानि कि जब एक तत्व में परिवर्तन होता है तो उसका प्रभाव दूसरे तत्व पर भी पड़ता है। उदाहरण के तौर पर, बाज़ार में जब किसी वस्तु की मांग बढ़ती है तो उसका मूल्य भी बढ़ता है और मांग घटने पर उसका मूल्य भी घटता है। ठीक इसी तरह एक बच्चे को आयु में वृद्धि होने के साथ साथ उसके वज़न में भी वृद्धि होती रहती है।
दूसरे शब्दों में जब दो सांख्यिकी श्रेणियों में से एक श्रेणी कारण तथा दूसरी श्रेणी उस कारण का प्रभाव बतलाती है। सीधे शब्दों में कहा जाए तो सांख्यिकी श्रेणियों में इसी कार्य -कारण संबंध को सहसंबंध (Correlation) कहा जाता है। अर्थात स्पष्ट शब्दों में,
"किन्हीं दो चरों में पाया जाने वाला ऐसा संबंध जो किसी एक चर में कमी या वृद्धि होने के कारण, दूसरे चर में भी होने वाले परिवर्तन (कमी या वृद्धि) को दर्शाए, सहसंबंध (Correlation in hindi) कहलाता है।"
सहसम्बन्ध एक ऐसी सांख्यिकी तकनीक है जो दो चरों के बीच पारस्परिक निर्भरता को स्पष्ट करता है। यह एक ऐसी सांख्यिकी तकनीक है जो दो चरों अथवा तथ्यों के बीच संबंध का मापन तथा विश्लेषण करती है। और यह बताती है कि दो चर एक दूसरे के संदर्भ में किस सीमा तक परिवर्तित होते हैं। सहसंबंध का अर्थ (Sahsambandh ka arth) जानने के लिए चलिए इसे और भी सरल भाषा में समझते हैं।
Table of Contents :
सहसंबंध का अर्थ | Meaning of Correlation in hindi
सहसंबंध दो चरों में ऐसे संबंध को स्पष्ट करता है जिसके अन्तर्गत किसी एक चर के मानों में परिवर्तन होने से दूसरे चर के मानों में परिवर्तन होता है। साथ साथ परिवर्तन होने की इस प्रवृत्ति को सहसंबंध (Sahsambandh) कहते हैं। उदाहरणार्थ : आय व उपभोग की मात्रा, क़ीमत व मांग की मात्रा, उत्पादकता और मज़दूरी दर आदि।
सहसंबंध की परिभाषा | Definition of Correlation in hindi
सहसम्बन्ध की कुछ प्रमुख परिभाषाएं निम्न हैं -
बॉडिंगटन के अनुसार - "जब कभी आंकड़ों के दो या अधिक समूहों, वर्गों या श्रेणियों में निश्चित सम्बन्ध पाया जाता है तो वह सहसंबंध (Sahsambandh) कहलाता है।"
एल. आर. कॉनर के अनुसार - "जब दो या दो से अधिक चर राशियाँ इस प्रकार परिवर्तित होती हैं कि उनमें से एक चर राशि में होने वाले परिवर्तन के कारण दूसरी चर राशि में भी परिवर्तन होने की प्रवृत्ति पायी जाए, तो ऐसी राशियाँ सह-सम्बन्धित कहलाती हैं।"
डब्ल्यू. आई. किंग के अनुसार - “किन्हीं दो श्रेणियों या दो पदमालाओं के मध्य पाए जाने वाले कारणात्मक सम्बन्ध (Causal Connection) को सहसंबंध कहा जाता है।"
क्रॉक्सटन एवं कॉउडन के अनुसार - "जब संबंध संख्यात्मक स्वभाव के हों, तो उन संबंधों को जानने और मापने और एक संक्षिप्त सूत्र में स्पष्ट करने के उचित सांख्यिकीय यंत्र को सहसंबंध कहा जाता है।
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि,
(1) सह सम्बन्ध एक तकनीक है जिसका दो या अधिक चरों के बीच पाए जाने वाले सम्बन्धों को मापने के लिए प्रयोग किया जाता है।
(2) सह सम्बन्ध दो या अधिक चरों के बीच पारस्परिक सम्बन्ध की दिशा बतलाता है। ये धनात्मक व ऋणात्मक दोनों प्रकार के हो सकते हैं।
(3) सह सम्बन्ध दो या अधिक चरों में 'पारस्परिक सम्बन्धों की मात्रा' (degree) भी बतलाता है।
(4) सह सम्बन्ध दो या अधिक चरों के बीच 'कारण - परिणाम' (Cause-effect) सम्बन्ध को बतलाता है।
सांख्यिकी में सहसंबंध का महत्व | सह संबंध की विशेषताएं
निसंदेह सांख्यिकीय विश्लेषण में सहसम्बन्ध का महत्व (sahsambandh ka mahatva) बहुत अधिक है। इस तकनीक को आधुनिक रूप में विकसित करने का श्रेय प्रो. गॉल्टन एवं कार्ल पियर्सन को जाता है। सहसंबंध तकनीक का भौतिक एवं सामाजिक विज्ञानों में अत्यधिक महत्व है। सह सम्बन्ध के महत्व (importance of correlation) को निम्न बिन्दुओं के रूप में स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) चरों के मध्य सम्बन्धों का अध्ययन करना—
सामान्यतया विभिन्न चरों, घटनाओं एवं तथ्यों के बीच पारस्परिक सम्बन्ध होता है। जैसे व्यक्तियों की आय तथा उपभोग व्यय के बीच सम्बन्ध, वस्तुओं की क़ीमत तथा उनकी मांग के बीच संबंध आदि। सहसंबंध इन्हीं विभिन्न चरों के मध्य इस संबंध को निर्धारित करने में सहायक होता है। इसकी सहायता से भविष्य के निर्णय लिए जाते हैं।
(2) चरों के परस्पर मूल्यों का अनुमान लगाना -
जब दो चर एक दूसरे से घनिष्ठ रूप में सम्बन्धित होते हैं, तब एक चर के किसी दिये हुए मूल्य के आधार पर दूसरे चर के लिए सम्भावित मूल्य का अनुमान लगाया जा सकता है। सहसंबंध इस कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
(3) आर्थिक व्यवहारों को जानने में सहायक -
सहसम्बन्ध विश्लेषण आर्थिक व्यवहारों को समझने में विशेष भूमिका निभाता है। यह उन चरों को निर्धारित करता है जिन पर दूसरा चर या कोई घटना आश्रित होती है। सह संबंध विश्लेषण वस्तु की क़ीमत व मांग, लाभ व लाभांश, वस्तु की क़ीमत व पूर्ति, वर्षा व कृषि उत्पादन, आय व व्यय, ऊंचाई तथा भार आदि के मध्य संबंधों को ज्ञात करने में सहायक होता है। इसके द्वारा प्रभावपूर्ण नीतियाँ लागू करने में सहायता मिलती है।
(4) व्यवसाय में सहायक होना—
सहसम्बन्ध विश्लेषण, व्यवसाय के क्षेत्र में व्यवस्थापक को अपनी उत्पादित वस्तु की लागत, बिक्री तथा क़ीमत आदि के अनुमान लगाने में अत्यंत सहायक सिद्ध होता है। निश्चित तौर पर सहसंबंध का व्यवसाय के क्षेत्र में विशेष महत्व है।
(5) अनिश्चितता की सीमा को कम करना—
सामान्य तौर पर देखा जाए तो सहसम्बन्ध विष्लेषण के बिना किया गया पूर्वानुमान पूर्णतः सत्य नहीं माना जा सकता है। क्योंकि इसके बिना लिए गए निर्णयों में गड़बड़ी होने की आशंका बनी रहती है। सहसम्बन्ध विष्लेषण हमें किसी सम्बन्धित घटना के सम्बन्ध में तुलनात्मक रूप से अधिक विश्वसनीय भविष्यवाणी करने में सहायता करता है। अतः इन सभी समस्याओं से बचने के लिए सहसंबंध विष्लेषण अत्यंत महत्त्वपूर्ण साबित होता है। इससे अनिश्चितता की सीमा को काफ़ी हद तक कम किया जा सकता है।
(6) प्रतीपगमन व विचरण अनुपात के विचार -
सामान्यतया प्रतीपगमन (regression) एवं विचरण अनुपात के विचार सहसम्बन्ध की माप पर ही आधारित होते हैं।
(7) अनुसन्धान को बढ़ाने तथा ज्ञान के नये क्षेत्रों की खोज में सहायक होना —
विभिन्न चरों के बीच पारस्परिक सम्बन्धों के अध्ययन से अनुसन्धान को बढ़ाने तथा ज्ञान के नये क्षेत्रों को ज्ञात करने में सह-सम्बन्ध एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
सहसंबंध के प्रकार (Types Of Correlation)
सहसंबंध के प्रमुख प्रकार (Sahsambandh ke pramukh prakar) निम्न हो सकते हैं -
1. धनात्मक तथा ऋणात्मक सहसम्बन्ध
2. सरल, आंशिक एवं बहुगुणी सहसम्बन्ध
3. रेखीय तथा अरेखीय सहसम्बन्ध।
1. धनात्मक तथा ऋणात्मक सहसंबंध | (Positive and Negative Correlation in hindi)
यदि दो चरों में परिवर्तन एक ही दिशा में हो, तो उसे धनात्मक सहसम्बन्ध (Positive Correction) कहते हैं। इस प्रकार धनात्मक सहसम्बन्ध दो चरों में एक ही दिशा में परिवर्तन को व्यक्त करता है। इस प्रकार के परिवर्तनों में चरों में समान दिशा में वृद्धि या कमी होती है। धनात्मक सहसंबंध (Positive Correction in hindi) को प्रत्यक्ष सह-सम्बन्ध भी कहते हैं। धनात्मक सहसंबंध (dhanatmak sahsambandh) के उदाहरण निम्न हैं -
धनात्मक सहसंबंध के उदाहरण -
• पिता की आयु के साथ साथ पुत्र की आयु भी बढ़ना।
• मूल्य में वृद्धि के साथ साथ पूर्ति में भी वृद्धि होना।
• ऊंचाई में वृद्धि के साथ साथ भार में भी वृद्धि होना।
• वर्षा अधिक होने से उत्पादन का भी अधिक होना।
• व्रत की त्रिज्या बढ़ने से व्रत का घेरा भी बढ़ना।
• वर्षा में कमी होने से उत्पादन का भी कम होना।
इसके विपरीत, यदि दोनों चरों में होने वाला परिर्वतन विपरीत दिशा में होता है। अर्थात एक चर के मूल्यों में वृद्धि होने पर दूसरे चर के मूल्यों में कमी होती है। और एक चर के मूल्यों में कमी होने पर दूसरे चर के मूल्यों में वृद्धि होती है। तो उसे ऋणात्मक सहसम्बन्ध (Negative Correlation) कहा जाता है। ऋणात्मक सहसंबंध (Negative Correlation in hindi) को अप्रत्यक्ष सहसंबंध भी कहा जाता है। ऋणात्मक सहसंबंध (rinatmak sahsambandh) के उदाहरण निम्न हैं -
ऋणात्मक सहसंबंध के उदाहरण -
• ठंडी के बढ़ने पर फ्रिज की बिक्री में कमी होना।
• गर्मी के बढ़ने पर ऊनी कपड़ों की बिक्री में कमी होना।
• उम्र के बढ़ने के साथ साथ शारीरिक ऊर्जा में कमी होना।
• टीवी का क्रेज़ बढ़ जाने से सिनेमा का क्रेज़ कम हो जाना।
• वस्तु का मूल्य बढ़ जाने पर उसकी माँग में कमी आ जाना।
2. सरल, आंशिक एवं बहुगुणी सहसंबंध (Simple, Partial and Multiple Correlation in hindi)
आइए हम सरल, आशिक तथा बहुगुण सहसंबंध को सरलता से समझने का प्रयास करते हैं।
सरल सहसंबंध (Simple Correction) -
दो चरों के मध्य आपसी सहसंबंध को सरल सहसम्बन्ध (simple correction in hindi) कहा जाता है, जिनमें से आधार श्रेणी के चर-मूल्य स्वतन्त्र होते हैं तथा सम्बद्ध श्रेणी के चर-मूल्य आश्रित होते हैं। सरल शब्दों में हम कह सकते हैं कि इन दो चरों में से एक कारण या स्वतंत्र चर कहलाता है। जबकि दूसरा परिणाम या आश्रित चर कहलाता है।
आंशिक सहसम्बन्ध (Partial Correlation) -
जब दो से अधिक चरों के बीच सहसंबंध का अध्ययन तो किया जाता है किंतु अन्य चरों के मानों को स्थिर मानकर केवल दो चरों के मानों के बीच सहसंबंध का अध्ययन किया जाता है। ऐसे सहसंबंध को आंशिक सहसम्बन्ध (partial correction in hindi) कहा जाता है।
अन्य शब्दों में, दो या अधिक चरों के बीच सहसंबंध का परीक्षण कुल सहसम्बन्ध में सम्मिलित कुछ अन्य चरों को जिनका समावेश कुल सहसम्बन्ध की गणना में किया गया था, निकालकर या अलग कर दिया जाता है। उसे आंशिक सहसंबंध (partial correction in hindi) कहा जाता है।
उदाहरण के लिए— यदि वर्षा, खाद व गेहूं में से वर्षा की मात्रा को स्थिर मानकर, केवल गेहूं की उपज तथा खाद की मात्रा के बीच सह संबंध का अध्ययन किया जाए, तो यह आंशिक सहसम्बन्ध (anshik sahsambandh) कहलाता है।
बहुगुणी सहसंबंध (Multiple Correlation) -
ऐसा सहसंबंध, जहां दो या दो से अधिक स्वतंत्र चर मूल्य होते हैं। और उन पर आश्रित चर मूल्य केवल एक होता है। इस आश्रित चर मूल्य पर शेष सभी स्वतंत्र चर मूल्यों का सम्मिलित प्रभाव पड़ता है। अर्थात् जब दो या दो से अधिक चर-मूल्यों के बीच सहसम्बन्ध ज्ञात किया जाता है तो इसे बहुगुण सहसंबंध (multiple correlation in hindi) कहा जाता है।
सरल शब्दों में, एक आश्रित चर पर अनेक स्वतन्त्र चरों के प्रभाव का अध्ययन ही बहुगुणी सहसम्बन्ध (bahuguni sahsambandh) कहलाता है।
उदाहरण के लिए— गेहूँ का उत्पादन, वर्षा, रासायनिक उर्वरक एवं कीटनाशक दवाओं आदि के चर मूल्यों का अध्ययन साथ साथ किया जाए तो इसे बहुगुण सहसम्बन्ध (bahugun sahsambandh) कहा जायेगा।
3. रेखीय तथा अरेखीय सहसम्बन्ध (Linear and Non-linear Correlation in hindi)
आइए रेखीय तथा अरेखीय सहसंबंध को हम सरल शब्दों में जानने का प्रयास करते हैं।
रेखीय सहसंबंध (Linear correlation)
जब दो चर मूल्यों में परिवर्तन का अनुपात स्थिर रहता है तब इसे रेखीय सहसंबंध (Linear correlation) कहा जाता है। अर्थात् जिस अनुपात में एक चर मूल्य में परिवर्तन होता है, ठीक इसी अनुपात में दूसरे चर के मूल्यों में भी परिवर्तन हो, तो उन दोनों चरों के बीच सम्बन्ध, रेखीय सहसम्बन्ध (rekhiya sahsambandh) कहलाता है।
यदि इन चर मूल्यों को बिन्दु-रेखीय पत्र (graph paper) पर प्रांकित किया जाये तो ये बिन्दु एक सीधी सरल रेखा के रूप में होंगे।
अरेखीय सहसंबंध (Non linear correlation)
जब दो चर मूल्यों में, एक चर के मूल्यों में परिवर्तन के अनुपात तथा दूसरे चर मूल्यों में परिवर्तन के अनुपात में अन्तर होता है। अर्थात् जब दो सम्बन्धित चरों में समान अनुपात में परिवर्तन नहीं होता है, तब ऐसे सहसंबंध को अरेखीय सहसंबंध (Non linear correlation in hindi) कहा जाता है।
जैसे— जब रासायनिक उर्वरक की मात्रा दुगुनी कर दी जाए तब भी गेहूं का उत्पादन दुगुना न बढ़ सके, तब यह अरेखीय सहसंबंध कहलाता है।
Some more topics :