स्पियरमैन की श्रेणी अंतर विधि, स्पियरमैन की श्रेणी अंतर सहसंबंध गुणांक ज्ञात करने की विधि, स्पियर मैन रैंक सहसंबंध सूत्र, (Merit and Demeris of rank Difference Correlation method in hindi, Spearman theory of intelligence in hindi)
इंग्लैंड के सुप्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक चार्ल्स एडवर्ड स्पियरमैन ने सन 1904 में व्यक्तिगत श्रेणी के अंतर्गत सहसंबंध को ज्ञात करने के लिए नई रीति का प्रतिपादन किया। इस रीति को कोटि अंतर क्रम रीति कहते हैं।स्पियरमैन की कोटि अन्तर रीति (spearman ki kóti antar riti) में व्यक्तिगत मदों के बीच उनके गुणों के आधार पर निर्धारित कोटियों के द्वारा रेखीय सहसंबंध को मापा जाता है। यह विधि कार्ल पियर्सन की विधि की तुलना में अधिक सरल है। आइए इसे सरल शब्दों में विस्तार से समझने का प्रयास करते हैं।
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स्पियरमैन की कोटि अन्तर रीति | Spearman's Rank Difference Method in hindi
चार्ल्स स्पीयरमैन ने व्यक्तिगत समंकमालाओं में सहसम्बन्ध ज्ञात करने के लिए एक सरल रीति का प्रतिपादन किया। इसे स्पियरमैन की कोटि अन्तर रीति अथवा क्रमान्तर रीति कहते हैं। यह रीति वहाँ उपयुक्त होती है जहाँ तथ्यों का संख्यात्मक माप सम्भव नहीं होता है।
यह रीति श्रेणी के ऐसे पदों के क्रम पर आधारित होती है जहां पद मूल्यों को निश्चित संख्या में व्यक्त करना कठिन हो
जैसे- बुद्धिमता, सुन्दरता, कड़वाहट, ईमानदारी, चरित्र, स्वास्थ्य आदि। इनको क्रमिक रूप से अवश्य प्रस्तुत किया जा सकता है, जैसे- सुंदरता की द्रष्टि से प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान आदि।
इस विधि द्वारा सह-सम्बन्ध गुणांक ज्ञात करने के लिए श्रेणियों का मूल्य ज्ञात होना आवश्यक नहीं है। केवल पदों का क्रम (Rank) जान लेने से ही काम चल जाता है।उदाहरणार्थ- सुन्दरता और स्वास्थ्य में सह-सम्बन्ध ज्ञात करना है तो ऐसी स्थिति में सुन्दरता को अंकों में व्यक्त करना असंभव होता है। इसलिए व्यक्तियों को सुन्दरता के अनुसार क्रम में रखकर प्रथम, द्वितीय व तृतीय क्रम आदि देकर सह-सम्बन्ध गुणांक का परिकलन सुगमता से किया जा सकता है।
अर्थात सबसे बड़े मूल्य को पहला क्रम व उससे छोटे को दूसरा और इसी तरह तीसरा, चौथा, पाँचवाँ आदि क्रम दे दिया जाता है। इससे स्पष्ट होता है कि कोटि-अन्तर गुणांक विधि (koti antar gunank vidhi) वहाँ भी प्रयोग की जा सकती है जहाँ पदों का मूल्य ज्ञात न होकर केवल उनका क्रम ज्ञात हो। इसके अलावा इस विधि का प्रयोग वहाँ भी उचित है जहाँ तथ्यों को अंकों में व्यक्त करना अत्यन्त कठिन हो।
स्पियरमैन के कोटि सह-सम्बन्ध की गणना विधि (Spearman ke koti sahsambandh ki ganna vidhi)
स्पीयरमैन का कोटि अन्तर सह-सम्बन्ध गुणांक (spearman ka koti antar sahsambandh gunank) निकालने की विधि को निम्न चरणों में पूर्ण की जानी चाहिए -
स्पियरमैन की कोटि अन्तर रीति (spearman ki koti antar riti) के अंतर्गत सह-सम्बन्ध गुणांक ज्ञात करते समय प्रमुख रूप से 2 समस्याएं उत्पन होती हैं।
(अ) जब समंक श्रेणी में व्यक्तिगत पद-मूल्यों के क्रम (Rank) दिये गए हों।
(ब) जब समंक श्रेणी में व्यक्तिगत पद-मूल्यों के क्रम (Rank) नहीं दिये गए हों।
(अ) जब समंक श्रेणी में व्यक्तिगत पद-मूल्यों के क्रम (Rank) दिये गए हों -
(1) दोनों श्रेणी के पद मूल्यों का विभिन्न क्रम प्रदान करेंगे। सबसे बड़े मूल्य को 1, इसके छोटे को 2, 3, 4 और यह क्रम इसी प्रकार चलेगा।
(2) श्रेणी में यदि दो या अधिक पद समान होते हैं तो उनके क्रमों की औसत ही उनका क्रम होती है, जैसे- यदि सबसे बड़ा पद 35 है और 25 तीन बार आया है तो 35 की 1 क्रम तथा तीनों 25 की क्रम दिया जायेगा, परन्तु 25 के बाद वाले पद का क्रम 5 होगा।
(3) दोनों श्रेणियों के क्रमों को क्रमशः घटाकर क्रम अन्तर
D ज्ञात किया जाता है। इस तरह क्रमान्तर योग सदैव 0 होता है।
(4) इसके बाद क्रमान्तरों (D) का वर्ग करके उन वर्गों का योग कर दिया जाता है।
(5) अन्त में निम्न सूत्र का प्रयोग करके कोटिं सह-सम्बन्ध गुणांक का परिकलन कर लिया जाता है -
(6) स्पियरमैन के कोटि अंतर सहसंबंध गुणांक भी कार्ल पियर्सन के सहसंबंध गुणांक के समान +1 एवं -1 की सीमाओं के भीतर आता है। तथा इसकी भी व्याख्या कार्ल पीयरसन के सह-सम्बन्ध गुणांक के समान की जाती है।
(ब) जब समंक श्रेणी में व्यक्तिगत पद-मूल्यों के क्रम (Rank) नहीं दिये गए हों -
(1) X और Y श्रेणी के पद मूल्यों को उनके महत्व के अनुसार क्रम दिए जाते हैं। सबसे बड़े मूल्य को पहला, इससे छोटे मूल्य को दूसरा और इसी तरह तीसरा, चौथा क्रम क्रमशः दिया जाता है। ठीक इसके विपरीत सबसे छोटे पद मूल्य को पहला, इससे बड़े। पद मूल्य को दूसरा और इसी इसी तरह क्रम देते हुए अंत में सबसे बड़े पद को बढ़ते हुए क्रम में रखा जाता है।
(2) समान क्रम होने पर – यदि समंक श्रेणी में दो या दो से अधिक पदों का मूल्य एकसमान हो तो उनके अलग अलग क्रमों का औसत (average rank) ही इन मूल्यों के लिए क्रम दिए जाते हैं। इसके बाद के मूल्यों को आगे का क्रम दिया जाता है, जैसे- X श्रेणी में सबसे बड़ा पद मूल्य 100 है तो इस पद मूल्य का क्रम 1 होगा। इसके बाद का पद मूल्य 90 है तो इसका क्रम 2 होगा। इसके बाद 70, 70, 70 के तीन पद मूल्य हों तो उन तीनों के औसत को ही इन तीनों पदों का क्रम देना होगा। तथा उनके बाद के पद मूल्य के लिए अगला क्रम दिया जाएगा।
(3) X एवं Y श्रेणियों के पद मूल्यों के क्रमों को आपस में घटाकर क्रमों का अंतर D प्राप्त कर लिया जाता है।
(4) अब इन क्रमों के अंतरों का वर्ग निकालकर इनका योग कर लिया जाता है।
(5) और अंत में, स्पियरमैन के कोटि अंतर सह-सम्बन्ध गुणांक का सूत्र लागू किया जाता है।
सूत्र रूप में,
स्पियरमैन के कोटि अंतर सह-संबंध रीति के गुण दोष | Merit and Demeris of Rank Difference Correlation Method in hindi
स्पियरमैन मैन के कोटि अंतर सहसंबंध गुणांक तथा सरल सहसंबंध गुणांंक की व्याख्या समान रूप से की जाती है। इसका सूत्र सरल सहसंबंध गुणांक से ही प्राप्त किया गया है। सरल सहसंबंध गुणांक के सभी गुण यहां लागू किए जा सकते हैं। पीयरसन सहसंबंध गुणांक की भांति यह भी +1 तथा -1 के बीच स्थित होता है।
हालांकि सामान्य तौर पर यह सामान्य विधि की तरह यथावत नहीं होता है। इसका कारण यह है कि इसमें आंकड़ों से संबद्ध सभी सूचनाओं का उपयोग नहीं होता है। फ़िर भी इस रीति में कुछ गुण हैं तो कुछ सीमाएं भी हैं। आइए इस रीति के गुण दोषों पर नज़र डालें।
स्पीयरमैन के कोटि अन्तर सह-सम्बन्ध गुणांक के गुण (Spearman ke koti antar sahsambandh gunank ke gun)
स्पियरमैन कोटि अंतर सह-सम्बन्ध रीति के गुण (spearman koti antar sahsambandh riti ke gun) निम्नलिखित हैं -
(1) तुलनात्मक रूप से सरल-
स्पीयरमैन का कोटि अन्तर सह-सम्बन्ध गुणांक ज्ञात करना, कार्ल पियर्सन के सह-सम्बन्ध गुणांक की तुलना में बहुत सरल होता है। इसे समझना भी अपेक्षाकृत अधिक सरल है।
(2) सुगमता से गणना-
स्पीयरमैन की विधि का प्रयोग उस स्थिति में भी बड़ी ही सुगमता से किया जा सकता है जहां आंकड़ों के स्थान पर केवल कोटियां ही दी गई हों। जबकि कार्ल पियर्सन रीति में ऐसा सम्भव नहीं है।
(3) गुणात्मक चरों के लिए उपयोगी-
यह विधि गुणात्मक चरों की अच्छाई, बुराई, सुन्दरता, ईमानदारी आदि के सह-सम्बन्धों को ज्ञात करने के लिए श्रेष्ठ है।
(4) साधारण गुणात्मक श्रृंखलाओं के लिए आसान-
स्पियरमैन कोटि अंतर रीति का साधारण गुणात्मक श्रृंखलाओं के ढीले सह-सम्बन्ध का अनुमान लगाने में भी सुगमता से प्रयोग किया जा सकता है।
(5) अनियमित आंकड़ों के लिए भी आसान-
स्पीयरमैन के कोटि अन्तर विधि वहां के लिए भी उपयुक्त है। जहां उपलब्ध सामग्री यानि की आंकड़े अनियमित हों या पदों के मूल्य पूर्ण शुद्ध न हों।
स्पियरमैन के कोटि अन्तर सह-सम्बन्ध गुणांक के दोष (Spearman ke kóti antar sahsambandh gunank ke dosh)
स्पियरमैन कोटि अंतर सह-सम्बन्ध रीति के दोष (spearman koti antar sahsambandh riti ke dosh) निम्नलिखित हैं -
(1) समूह आवृत्ति आबंटन के लिए अनुपयुक्त-
समूह आवृत्ति आबंटन शृंखलाओं में स्पियरमैन कोटि अंतर रीति का प्रयोग सह-सम्बन्ध गुणांक की गणना के लिए उपयुक्त नहीं है। यह विधि केवल व्यक्तिगत मूल्यों के लिए ही उपयुक्त होती है।
(2) 25 या 30 से अधिक पद मूल्यों की श्रृंखला के लिए अनुपयुक्त-
जहाँ पर पदों की संख्या (n) अधिक हो जाती है। तो वहाँ इस रीति का प्रयोग अत्यधिक जटिल हो जाता है। ऐसी स्थिति में श्रेणी का निर्धारण एवं वर्गीकरण करना बहुत कठिन हो जाता है। इसलिए जहाँ पदों की संख्या 25-30 से अधिक होती है वहां कार्ल पियर्सन विधि का प्रयोग ज़्यादा उपयुक्त होता है।
(3) निश्चितता की कमी-
इस विधि द्वारा निकाले गए निष्कर्ष सामान्यतया गुणात्मक यानि कि गुणों पर आधारित होते हैं। इसलिए इनमें निश्चितता का अभाव पाया जाता है। इसके विपरीत कार्ल पियर्सन की विधि द्वारा निकाले गए निष्कर्ष निश्चित व शुद्ध होते हैं क्योंकि ये समान्तर माध्य व प्रमाप विचलन जैसी गणितीय विधि पर आधारित होते हैं।
उम्मीद है इस अंक से आपने स्पियरमैन के कोटि सहसंबंध गुणांक की गणना करना एवं कोटि अंतर सहसंबंध रीति के गुण दोष के बारे में विस्तार से जाना होगा। हम आशा करते हैं कि यह अंक आपके अध्ययन में अवश्य ही सहायक होगा।
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