ब्रिटिश शासन से पूर्व भारतीय अर्थव्यवस्था कैसी थी? वर्णन कीजिये | Indian Economy before British Rule in hindi

अंग्रेज़ों के भारत आने से पूर्व भारत, संसार के सबसे धनी देशों में से एक था। आपने यह ज़रूर सुना या पढ़ा होगा कि भारत को कभी सोने की चिड़िया कहा जाता था। यानि कि उस समय का भारत धन-धान्य व प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण था।


ब्रिटिश शासन से पूर्व की भारतीय अर्थव्यवस्था 

भारत में कृषि और उद्योगों के मध्य संतुलन था जिस वजह से यह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अपनी सशक्त स्थिति बनाये हुए था। भारत के पास निर्यात करने के लिए बहुत कुछ था जबकि आयात करने के लिए कुछ भी नहीं था। यानि कि उस समय भारत को आयात करने की आवश्यकता नहीं होती थी।


इसीलिये हम कह सकते हैं कि यदि भारतीय समाज का स्वाभाविक विकास होता तो इसमें कोई संदेह नहीं कि यहाँ का पूँजीपति वर्ग, सामाजिक व आर्थिक दृष्टि से शक्तिशाली बनकर राज्यसत्ता पर अपनी स्वेच्छा से अधिकार करता और सामंती राज्य के स्थान पर पूँजीवादी राज्य की स्थापना करता।


परन्तु ऐसी स्थिति आने से पूर्व ही ब्रिटिश तथा यूरोपीय देशों से सशस्त्र और शक्तिशाली पूँजीपति के गुट भारत में आ धमके। ब्रिटिश शासन आने के बाद भारत की अर्थव्यवस्था क्या थी? इसका अध्ययन करने से पहले आइये हम जानते हैं कि ब्रिटिश शासन के पूर्व भारतीय अर्थव्यवस्था कैसी थी (british shasan se purv bhartiya arthvyavastha kaisi thi?) तो चलिए जानिए का प्रयास करते हैं -


ब्रिटिश शासन से पूर्व भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy before British Rule in hindi)

ब्रिटिश शासन से पूर्व भारत की अर्थव्यवस्था कैसी थी? इसका अध्ययन हम निम्न शीर्षकों के माध्यम से जानने का प्रयास करेंगे -



(1) ब्रिटिश शासन से पूर्व ग्रामीण अर्थव्यवस्था - 
अंग्रेजों के आने से पहले भारतीय व्यवस्था एक ग्रामीण व्यवस्था थी। प्रशासनिक व आर्थिक दृष्टि से देखा जाए तो भारतीय के गांव ही गणतंत्र हुआ करते थे। उनकी अधिकांश आवश्यकताएं गांव में ही पूरी हो जाया करती थीं। गांव में जिन-जिन वस्तुओं का उत्पादन होता था उनकी बिक्री व उपयोग भी गाँव तक ही सीमित था। एक तरफ़ कृषक फ़सल उगाता था तो वहीं दूसरी तरफ़ गांव के अन्य कारीगर जैसे- लुहार, बढ़ई, बुनकर आदि अन्य आवश्यक वस्तुओं का निर्माण करते थे। कृषि कार्य परंपरागत तकनीक से होता था तथा प्रमुख रूप से खाद्यान की फ़सलें उगायी जाती थीं। 


(2) ब्रिटिश शासन से पूर्व भारतीय उद्योगों की दशा -
आर्थिक दृष्टिकोण से कृषि तथा हस्तकला व कुटीर उद्योग दोनों ही अर्थव्यवस्था के आधार थे। इन दोनों क्षेत्रों में स्पष्ट विभाजन नहीं हुआ करता था। ज़्यादातर कृषि व इससे संबंधित सहायक वस्तुएँ ही इन उद्योगों में बनायी जाती थीं। शहरों में उच्च स्तर के हस्तकला उद्योगों में किये गए उत्पादन कलात्मक दृष्टिकोण से अंत राजघरानों, सामंतों तथा विदेशी माँग व रुचि को ध्यान में रखकर किये जाते थे। इनमें रेशमी कपड़ा, जरी का सामान, धातु के बर्तन, सोने व चांदी के आभूषण, दरी, इत्र, कागज़, चंदन की लकड़ी का सामान आदि प्रमुख रूप से थे। वस्तुओं का गांव के सीधे-साधे जीवन में कोई स्थान न था। इस कारण इनका उत्पादन देशव्यापी न बन सका।

(3) ब्रिटिश शासन से पूर्व श्रम विभाजन -
कृषि व उद्योग में स्पष्ट विभाजन न होने के कारण श्रम-विभाजन स्पष्ट नहीं था। किसान जहाँ खेती करता था वहीं उसका परिवार सूत कातने का कार्य भी करता था। गांव की आवश्यकताएं गांव में ही पूरी होने के कारण गांव व शहर में किसी तरह का संबंध न था।  

(4) ब्रिटिश शासन से पूर्व की सामंती व्यवस्था -
ब्रिटिश शासन से पूर्व भारत में राजकीय सामंती व्यवस्था विद्यमान थी। इसमें भूमि का स्वामित्व  निजी न होकर सामूहिक होता था। भूमि का स्वामित्व कृषक समुदाय के हाथों में ही रहता था। भूमि को कभी राजा की संपत्ति नहीं माना गया। कृषि योग्य भूमि केवल उसकी थी जिसको गाँव समुदाय द्वारा कृषि करने का अधिकार प्राप्त था। जो भूमि कृषि योग्य नहीं थी वह सभी गाँव वालों को हवा-पानी की तरह उपलब्ध थी। भूमि कभी भी क्रय-विक्रय की वस्तु नहीं थी। उसे कभी बेचा या ख़रीदा नहीं जा सकता था। लगान का निर्धारण गाँव की ओर से किया जाता था जो फ़सल का भाग होता था। लगान खड़ी फ़सल के आधार पर लगाया जाता था और इसकी मात्रा पहले से निश्चित नहीं होती थी।

(5) ब्रिटिश शासन से पूर्व का सामाजिक विभाजन -
सामाजिक विभाजन अर्थ प्रधान न होकर जाति प्रधान था। ग्रामीण स्तर पर सामाजिक भेदभाव थे परंतु आर्थिक भेदभाव नहीं थे। क्योंकि सभी प्रकार के कारीगर गाँव में रहते थे। भारतीय गाँवों में अधिकांश कारीगर सारे गाँव के सेवक थे। शहरों में भी राजकीय सामंत, कारीगर, कलाकार आदि थे। आधुनिक वर्ग, जैसे- बड़े-बड़े पूँजीपति, व्यापारी, दलाल, बुद्धिजीवी आदि भी थे परंतु इनकी संख्या बहुत कम थी।


(6) ब्रिटिश शासन से पूर्व आंतरिक एवं बाह्य व्यापार की दशा -
गाँवों की संतुलित व्यवस्था के कारण आंतरिक व्यापार बहुत अधिक विकास नहीं कर सका था। परंतु विदेशी व्यापार उन्नत अवस्था में था। भारत अनेक वस्तुओं का निर्यात करता था। इन वस्तुओं के बदले वह सोना व चाँदी प्राप्त करता था क्योंकि दूसरे देशों की वस्तुओं की भारत में माँग नहीं होती थीं।

(7) ब्रिटिश शासन से पूर्व भारतीय परिवहन व संचार की दशा -
उस समय भारत में परिवहन व संचार के साधन विकसित नहीं थे। पक्की सड़कों का अभाव था। ज़्यादातर नदियों के माध्यम से परिवहन व संचार -व्यवस्था का संचालन होता था। रोज़मर्रा के कामकाज के लिए बैलगाड़ी का उपयोग ज़्यादा होता था। उस समय बैलगाड़ी प्रमुख वाहन थी।


(8) ब्रिटिश शासन से पूर्व भारतीय बैंकिंग प्रणाली -
भारत में बैंकिग प्रणाली पर्याप्त रूप से विकसित थी। सभी महत्वपूर्ण शहरों में बैंक थे। इन बैंकों के मालिक जगत सेठ के नाम से जाने जाते थे। ये जगत सेठ शासकों व उच्च वर्ग के लोगों को कर्ज दिया करते थे व इनकी रकम को जमा भी करते थे। यूरोपीय व्यापारी भी इनसे उधार लिया करते थे।

भारत में ब्रिटिश शासन के पूर्व गाँवों की संतुलित व्यवस्था के कारण शहर का औद्योगिक व व्यापारी वर्ग अपने व्यवसाय का बहुत अधिक विकास नहीं कर पाया, इसलिए ये वर्ग आर्थिक क्षेत्र में एक शक्ति के रूप में उभर नहीं सके। ऐसी दशा में जब एक विकसित आर्थिक पूँजीवादी व्यवस्था का भारत पर हमला हुआ तो भारत उसका मुकाबला न कर सका। ब्रिटिश शासन ने आर्थिक जीवन की मूल इकाई अर्थात आत्मनिर्भर गाँवों को समाप्त करके भारत को एक निर्भर अर्थव्यवस्था की ओर धकेल दिया।


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