कींस का रोज़गार सिद्धांत और परंपरावादी सिद्धांत में अंतर क्या है | रोज़गार का परंपरावादी सिद्धांत एवं कींस का रोज़गार सिद्धांत प्रमुख अंतर | Difference between Classic theory and Keynesian theory of employment in hindi
रोज़गार के परंपरावादी सिद्धांत के अनुसार, दीर्घकाल में पूर्ण प्रतियोगिता तथा पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोज़गार की स्थिति स्वतः ही स्थापित हो जाती है। यहां तक कि सरकार को रोज़गार बढ़ाने के लिए किसी प्रकार का कोई हस्तक्षेप भी नहीं करना पड़ता है।
इन दोनों ही सिद्धांतों के बीच कुछ विशेष बिंदुओं को स्पष्ट तौर पर जानने के लिए आइए हम रोज़गार का परंपरावादी सिद्धांत और केंस का रोज़गार सिद्धांत के बीच अंतर क्या है? जानते हैं।
रोज़गार के परंपरावादी सिद्धांत तथा कींस के सिद्धांत में अंतर (Difference between classical theory of employment and Keynes's theory in hindi
परंपरावादी सिद्धांत | कींस का सिद्धांत |
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1. अर्थव्यवस्था में सदैव पूर्ण रोज़गार का स्तर विद्यमान रहता है। | 1. अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोज़गार की स्थिति असंभव है। बल्कि अपूर्ण रोज़गार की स्थिति विद्यमान रहती है। |
2. इस सिद्धांत के अंतर्गत रोज़गार में वृद्धि का उत्तम तरीक़ा मज़दूरी में कटौती को माना गया है। | 2. इस सिद्धांत के अंतर्गत रोज़गार में वृद्धि हेतु समग्र मांग में वृद्धि को आवश्यक माना गया है। |
3. बेरोज़गारी तथा रोज़गार की समस्या का अध्ययन किसी एक उद्योग अर्थात व्यष्टि दृष्टिकोण से किया जाता है। |
3. इसके अंतर्गत बेरोज़गारी तथा रोज़गार की समस्या का। अध्ययन सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था अर्थात समष्टि दृष्टि से किया जाता है। |
4. इस सिद्धांत के अंतर्गत क़ीमत स्तर का निर्धारण मुद्रा की पूर्ति द्वारा किया जाता है। | 4. इस सिद्धांत के अंतर्गत क़ीमत स्तर का निर्धारण समग्र मांग द्वारा किया जाता है। |
5. इस सिद्धांत में दीर्घकालीन साम्य को महत्व दिया जाता है। | 5. इस सिद्धांत में अल्पकालीन साम्य को महत्व दिया जाता है। |
6. इस सिद्धांत के अंतर्गत पूर्ण रोज़गार की स्थिति स्वतः ही स्थापित हो जाती है। | 6. इस सिद्धांत के अंतर्गत पूर्ण रोज़गार की स्थिति बनाए रखने के लिए सरकारी हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है। |
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अर्थशास्त्र