प्रगतिशील कर (progressive tax) से आप क्या समझते हैं, प्रगतिशील करों के गुण व दोषों को समझाइए, (Progressive tax system in hindi, Arguments in favour of progressive tax in hindi, Arguments against progressive tax in hindi)
प्रगतिशील कर वह कर है जिसकी दर, व्यक्तियों की आय बढ़ने के साथ साथ बढ़ती जाती है। प्रगतिशील कर के अंतर्गत, कम आय स्तर पर कम दर से तथा अधिक आय स्तर पर अधिक दर से कर लगाया जाता है। जैसे आयकर कम आय वाले व्यक्तियों पर कम दर से तथा ज़्यादा आय वाले व्यक्तियों पर बढ़े हुए दर से लगाया जाता है।
प्रगतिशील कर (progressive tax) प्रत्यक्ष कर का एक रूप है जिसमें व्यक्ति की आय में वृद्धि के साथ साथ कर की दर में भी वृद्धि कर दी जाती है। आइए प्रगतिशील कर प्रणाली क्या है? (Pragatisheel pranali kya hai?) विस्तार से जानते हैं। और साथ ही प्रगतिशील कर के गुण एवं दोष क्या हैं? संक्षिप्त में जानने का प्रयास करते हैं।
प्रगतिशील कर (progressive tax) क्या है?
प्रगतिशील कर (progressive tax in hindi) वह कर है जिसकी दर आय बढ़ने के साथ बढ़ती जाती है। प्रगतिशील कर में कम आय स्तर पर कम दर से तथा अधिक आय स्तर पर अधिक दर से कर लगाया जाता है। उदाहरण के लिए निवेश आय कर, अर्जित ब्याज़ पर कर, किराये की आय, संपत्ति कर और कर क्रेडिट शामिल हैं।
आय के बढ़ने के साथ साथ जब कर की दर में भी वृद्धि होती जाती है। तब ऐसे कर को प्रगतिशील कर (pragatishil kar) कहते हैं। इसमें विभिन्न आयों को सामान्य वर्गों में बाँट दिया जाता है। और वर्गों के अनुसार कर लगाया जाता है। आय के बढ़ने पर कर की दर भी बढ़ती जाती है।
इसे निम्न तालिका द्वारा स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है -
आय
कर की दर
पहले 10000 तक
0%
₹ 10,000 से ₹ 20,000 तक
10%
₹ 20,000 से ₹ 30,000 तक
15%
₹ 30,000 से ₹ 40,000 तक
25%
प्रगतिशील करों के गुण (Merits of Progressive Taxes) | प्रगतिशील कर के पक्ष में तर्क
प्रगतिशील कर के गुण (merits of progressive tax in hindi) निम्नलिखित हैं -
(1) धन का समान वितरण -
प्रगतिशील कर (pragatishil kar) कर दान योग्यता के अनुकूल माना जाता है। यह करदाताओं द्वारा किए जाने वाले त्याग को समान बनाता है। तथा करों के भार का न्यायपूर्ण वितरण करता है।
इस प्रकार प्रगतिशील कर से धनी वर्ग पर अधिक दर से कर लगाकर तथा निर्धन वर्ग पर कम दर से कर लगाकर या कम आय वाले निर्धन वर्ग को मुक्त करके धन के वितरण की असमानता को दूर किया जा सकता है।
(2) लोचशीलता का गुण -
ये कर लोचपूर्ण होते हैं। आवश्यकता के अनुसार कर की दरों में परिवर्तन किया जा सकता है। सार्वजनिक आय को आवश्यकतानुसार घटाने या बढ़ाने के उद्देश्य से प्रगतिशील करों की दरों में ज़रा सा परिवर्तन किया जा सकता है। अर्थात इन करों में लोचशीलता होती है।
(3) मितव्ययता का गुण -
प्रगतिशील कर में मितव्ययता का गुण भी होता है, क्योंकि इन्हें एकत्रित (वसूल) करने के लिए अधिक व्यय नहीं करना पड़ता है। आय में वृद्धि होने पर भी कर वसूल करने का व्यय पूर्ववत ही रहता है। इसी कारण इन करों को मितव्ययी माना जा सकता है।
(4) कर देय योग्यता के अनुकूल -
यह कर प्रणाली करदाता की 'कर चुकाने की योग्यता' पर आधारित होती है। कर चुकाने की योग्यता आय की वृद्धि के साथ-साथ बढ़ती जाती है, इसलिए आय की वृद्धि के साथ-साथ कर की दर में वृद्धि होती जाती है। चूँकि यह कर 'चुकाने की योग्यता' पर आधारित होता है, इसलिए करदाता के मन में किसी प्रकार का विरोध उत्पन्न नहीं होता।
(5) रोज़गार तथा उत्पादन में वृद्धि -
प्रो. कीन्स ने रोज़गार की दृष्टि से प्रगतिशील करों को महत्त्वपूर्ण बताया है। सरकार मन्दी काल में लोगों के पास क्रय शक्ति बढ़ाकर (कम कर लगाकर) तथा स्फीतिक काल में इसे कम करके (अधिक कर लगाकर) उपभोग की मात्रा को नियन्त्रित कर सकती है तथा उत्पादन एवं रोज़गार को प्रभावित कर सकती है।
साधारण तौर पर प्रगतिशील करों को उत्पादक भी कहा जा सकता है। क्योंकि धनी व्यक्तियों पर ऊंची दर से कर लगाकर, सरकार सार्वजनिक या उत्पादकीय कार्यों को पूरा करने के लिए बड़ी ही आसानी से आय (राजस्व) प्राप्त कर सकती है।
प्रगतिशील करों के दोष (Demerits of Progressive Taxes) | प्रगतिशील कर के विपक्ष में तर्क
प्रगतिशील कर के दोष (demerits of progressive tax in hindi) निम्नलिखित हैं -
आजकल अधिकांश देशों में प्रगतिशील करों को ही सबसे अच्छा माना जाता है, परन्तु प्राचीन अर्थशास्त्रियों ने अनेक दोष बताये थे जिनमें प्रमुख निम्न प्रकार हैं -
(1) मनचाही दर प्रणाली -
प्रगतिशील करों का निर्धारण मनमाने ढंग से किया जाता है। प्रगतिशील कर का आधार क्या हो, इस संबंध में कोई निश्चित मापदंड नहीं होता है। जिस कारण करदाताओं के साथ अन्याय की अधिक सम्भावना बनी रहती है।
(2) बचतों पर प्रतिकूल प्रभाव -
प्रगतिशील कर सदैव बचतों को निरुत्साहित करता है। इसका कारण यह है कि इसका भार प्रायः उन्हीं व्यक्तियों पर पड़ता है जो बचत करने की स्थिति में होते हैं। परिणामतः इससे देश में पूँजी संचय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
(3) करारोपण का ग़लत आधार -
अमीर व्यक्तियों पर कर की ऊंची दर इस आधार पर लगाई जाती है कि उनकी मुद्रा की सीमांत उपयोगिता कम होती है। चुंकि यह एक मनोवैज्ञानिक धारणा है।
सच तो यह है कि सीमान्त उपयोगिता सभी व्यक्तियों के लिए एकसमान नहीं होती है किंतु उपयोगिता एक मानसिक स्थिति है जिससे इसका ठीक-ठीक अनुमान नहीं लगाया जा सकता है।
(4) ईमानदारी तथा मेहनत को दंड -
प्रगतिशील कर ईमानदारी, मितव्ययिता तथा मेहनत को दंडित करने जैसी कही जा सकती है। क्योंकि यदि कोई व्यक्ति अपनी ईमानदारी और सच्ची मेहनत से अमीर बनता है। अपने लिए ऊंची आय सृजित करता है। लेकिन उस पर उतनी ही ऊंची दर पर प्रगतिशील कर थोप दी जाती है। यह प्रक्रिया उसकी मेहनत और ईमानदारी के नाम पर दंड की तरह प्रतीत होती है।
(5) कर चोरी की सम्भावना -
प्रगतिशील करों में प्रायः कर चोरी की आशंका बनी रहती है। ऊंची दरों पर होने वाले करारोपण के चलते करदाता, कर अधिकारियों के सामने झूठा लेखा- जोखा पेश करके, कर से बचने का प्रयास करते हैं।
उम्मीद है इस अंक में आप प्रगतिशील कर किसे कहते हैं? (Pragatisheel kar kise kahate hain?) जान चुके होंगे। और साथ ही प्रगतिशील कर के पक्ष एवं विपक्ष में तर्क क्या हैं? भलीभांति समझ चुके होंगे। आशा है यह अंक हमारे अन्य अंकों की तरह ही आपके अध्ययन में सहायक साबित होगा।
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