उत्पादन फलन का अर्थ, उत्पादन फलन को प्रभावित करने वाले तत्वों को समझाइए, उत्पादन फलन को प्रभावित करने वाले कारक, meaning of production function in hindi, production function in economics in hindi, Utpadan falan ko prabhavit karne wale tatva in hindi
किसी भी वस्तु का उत्पादन करने के लिए उत्पादन के विभिन्न साधनों का होना आवश्यक होता है। किन्तु उत्पादन के साधनों का उपयोग करने के लिए एक विशेष प्रकार की तकनीक या इंजीनियरिंग की विशेष आवश्यकता होती है। अब आप सोच रहे होंगे कि उत्पादन के कार्य में तकनीकी या इंजीनियरिंग कैसे? तो चलिए जानते हैं।
यदि किसी व्यक्ति के पास थोड़ी-सी भूमि, कुछ मशीनें तथा श्रम की एक निश्चित मात्रा है तो इन सभी साधनों से किसी वस्तु विशेष का कितना उत्पादन होगा? इस प्रश्न का हल ढूंढ पाना तभी संभव है जब उस व्यक्ति को उन साधनों के बेहतर संयोग का तकनीकी ज्ञान हो। यानि कि उत्पादन की मात्रा, तकनीकी ज्ञान के स्तर पर निर्भर करती है।
उत्पादन की बेहतर तकनीक से ही किसी समय विशेष पर उत्पादन के साधनों से अधिकतम उत्पादन कर पाना सम्भव होता है। उत्पादन के इसी तकनीकी नियम को जो कि उत्पादन के साधनों और उत्पादन के मध्य सम्बन्ध को स्पष्ट करता है, उत्पादन फलन (Utpadan falan) कहा जाता है।
अर्थशास्त्र में जिस वस्तु का उत्पादन किया जाता है उसे उपज या उत्पाद या प्रदा (Output) कहते हैं जिन साधनों से उत्पादन किया जाता है उन्हें अदा या पड़त या आगत (Input) कहा जाता है। आइए उत्पादन फलन किसे कहते हैं (utpadan falan kise kahate hain) अन्य शब्दों में जानते हैं।
उत्पादन फलन (Production function) क्या है? | What is Production function in hindi
उत्पादन फलन एक दिये हुए समय के लिए उत्पादन की मात्रा तथा उत्पत्ति के साधनों में भौतिक सम्बन्ध को बताता है।
उत्पादन फलन, उत्पादन के साधनों (भूमि, श्रम, पूंजी तथा उद्यम) तथा उत्पाद (वस्तु) की मात्रा में सम्बन्ध की व्याख्या करता है। यह शुद्ध रूप से एक तकनीकी संबंध है जो आगतों (input) तथा उत्पाद (output) में होता है।
अन्य शब्दों में,
"किसी फर्म का उत्पादन फलन, एक दिये हुए समय में तथा तकनीकी ज्ञान की दी हुई स्थिति में, साधनों के सभी सम्भव संयोगों तथा प्रत्येक संयोग से प्राप्त उत्पादन के बीच सम्बन्ध को बताता है।"
उत्पादन फलन, उत्पादन संभावनाओं की एक सूची होती है। इसे गणितीय समीकरण के द्वारा निम्न रूप में स्पष्ट किया जा सकता है -
P= f(A, B, C, D)
उपर्युक्त समीकरण में P उत्पादन की मात्रा तथा A, B, C, D उत्पादन (उत्पत्ति) के साधनों की मात्रा एवं संयोगों को बताते हैं। समीकरण इस बात की व्याख्या करता है कि उत्पादन के साधनों के विभिन्न संयोगों तथा उत्पादन में क्या सम्बन्ध है। यहाँ यह बात महत्त्वपूर्ण है कि यह सम्बन्ध एक निश्चित समय तथा निश्चित तकनीकी ज्ञान की स्थिति में ही क्रियाशील होता है।
दूसरे शब्दों में, उत्पादन फलन किसी फर्म के लिए उत्पत्ति के साधनों की भौतिक मात्राओं तथा उनके प्रयोग के परिणामस्वरूप प्राप्त उत्पादन की भौतिक मात्रा के बीच संबंध को बताता है।
उत्पादन फलन को प्रभावित करने वाले तत्व (Utpadan Falan ko prabhavit karne vale tatva)
उत्पादन फलन को प्रभावित करने वाले तत्व (utpadan falan ko prabhavit karne wale tatv) निम्नलिखित हैं -
(1) पूँजी की सीमितता -
उत्पादन की मात्रा में वृद्धि करने के लिए जब भी कोई तकनीकी परिवर्तन किया जाता है तो इस प्रक्रिया में निसंदेह अधिक मात्रा में पूँजी की आवश्यकता होती है। किन्तु पूँजी के अभाव में नवीन या विशिष्ट तकनीक का प्रयोग कर पाना सम्भव नहीं हो पाता है। इसलिए अन्य उत्पादकों की तुलना में अधिक उत्पादन नहीं हो पाता।
(2) तकनीकी ज्ञान एवं विशिष्टीकरण -
उत्पत्ति के साधनों के उपलब्ध होने के बाद भी जब किसी उत्पादक के पास तकनीकी ज्ञान का अभाव होता है। तो वह उन साधनों का बेहतर संयोग करने में अक्षम होता है। परिणामतः उत्पादन में विशिष्टीकरण को प्रोत्साहन नहीं मिल पाता है। अर्थात हम कह सकते हैं कि तकनीकी ज्ञान का न होना, उत्पादन फलन को सीधे सीधे प्रभावित करता है।
(3) संगठनात्मक योग्यता -
उत्पादन के साधनों के बेहतर संयोगों से जब भी उत्पादन की मात्रा में वृद्धि की जाती है तो संगठन का आकार भी बढ़ जाता है। निश्चित तौर पर इस बड़े संगठन को संचालित करने के लिए पर्याप्त योग्यता की आवश्यकता होती है। अतः स्पष्ट है कि उत्पादन फलन संगठनात्मक योग्यता पर भी काफी सीमा तक निर्भर करता है। यदि उत्पादक में संगठनात्मक योग्यता का अभाव हो तो उत्पादन फलन भी प्रभावित होता है।
(4) क्रमागत उत्पत्ति ह्रास नियम लागू होना -
उत्पत्ति के अन्य साधनों की मात्रा को स्थिर रखते हुए, जब किसी एक साधन की मात्रा में बढ़ोत्तरी की जाती है तब उत्पादकता में कमी होने लगती है। अर्थात यह कहा जा सकता है कि उत्पत्ति के सभी क्षेत्रों में क्रमागत उत्पत्ति ह्रास नियम लागू होने से उत्पादन फलन प्रभावित होता है।
(5) बाज़ार का क्षेत्र-
यदि किसी उत्पादक का बाज़ार व्यापक है तो वह उत्पादन के साधनों का अनुकूलतम उपयोग आसानी से कर सकता है। इसके विपरीत यदि किसी उत्पादक का बाज़ार सीमित है, तो ऐसी स्थिति में उसके लिए उत्पादन के विभिन्न साधनों का अनुकूलतम उपयोग करना असंभव हो सकता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि बाज़ार का क्षेत्र भी उत्पादन फलन को प्रभावित करता है।
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