आज इस अंक में हम व्यापार संतुलन क्या है? और भुगतान संतुलन क्या है? इन्हें विशेष तौर पर जानने के बाद व्यापार संतुलन व भुगतान संतुलन के बीच के अंतर को भी जानने का प्रयास करेंगे। आयात-निर्यात के साथ तमाम भुगतानों का मतलब समझने का प्रयास हम इस अंक में करेंगे।
हम आपको बता दें कि विश्व में बसने वाले लगभग हर देश एक दूसरे के साथ व्यापार के माध्यम से जुड़े हुए हैं। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में प्रत्येक देश कुछ वस्तुओं का अन्य देशों से आयात करता है जिसके बदले उसे भुगतान करना पड़ता है। तो वहीं कुछ वस्तुओं का निर्यात भी करता है। जिसके बदले में वह अन्य देशों से भुगतान प्राप्त करता है।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के अंतर्गत वास्तविक स्थिति की जानकारी प्राप्त करने के लिए प्रत्येक देश को अपने आयातों तथा निर्यातों की कुल मात्रा तथा मूल्य का ज्ञान होना अत्यंत आवश्यक होता है। इस संबंध में व्यापार संतुलन तथा भुगतान संतुलन काफी महत्वपूर्ण शब्द हैं। इन्हीं विश्लेषणों के माध्यम से देश की अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की स्थिति, अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संभावनाओं तथा अंतर्राष्ट्रीय भुगतानों की स्थिति का अनुमान लगाया जाता है।
व्यापार संतुलन का अर्थ (Balance of Trade meaning in hindi)
सामान्यतः व्यापार संतुलन किसी भी देश के आयातों व निर्यातों के अंतर को स्पष्ट करता है। यानि कि हम दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि "दो या दो से अधिक देशों के बीच किसी निश्चित समय में होने वाले आयात व निर्यात के अंतर को व्यापार शेष या व्यापार संतुलन कहते हैं।"
बेनहम के अनुसार- "किसी देश का व्यापार संतुलन उस संबंध को व्यक्त करता है। जो एक निश्चित समयावधि में उसके आयात व निर्यात के मध्य पाया जाता है।"
जब दो देशों के आयात व निर्यात आपस में बराबर होते हैं तो उनका व्यापार, संतुलन की दशा में कहलायेगा। परंतु व्यवहार में ऐसी संभावना बहुत कम होती है। किसी देश का या तो आयात अधिक होता है अथवा निर्यात।
जब एक देश के आयातों की तुलना में, उसके निर्यात अधिक होते हैं। तो वह अनुकूल व्यापार संतुलन कहलाता है। इसके विपरीत जब निर्यातों की तुलना में आयात अधिक होते हैं तो तो वह प्रतिकूल व्यापार संतुलन कहलाता है।
भुगतान संतुलन का अर्थ (Balance of Payment meaning in hindi)
भुगतान-संतुलन या भुगतान-शेष का अर्थ, किसी भी देश विदेश की वस्तुओं के आयातों एवं निर्यातों और उनके मूल्यों के समस्त लेखा-जोखा होता है। विश्व के प्रत्येक देशों के बीच विभिन्न वस्तुओं के आयातों और निर्यातों के अलावा अन्य प्रकार के लेन देन भी किये जाते हैं उदाहरणार्थ- बीमा से सम्बंधित लेन देन, जहाजों का किराया, बैंकों से सम्बंधित शुल्क, ब्याज, लाभ का हिसाब, पूँजी के स्थानांतरण से सम्बंधित लेन देन व सेवाओं का पुरस्कार आदि।
व्यापार संतुलन के अतिरिक्त जब अन्य सभी विदेशी लेन देन भी सम्मिलित कर लिए जाते हैं। तो वह भुगतान शेष अथवा भुगतान संतुलन balance of payment कहलाता है। इस प्रकार भुगतान संतुलन किसी देश में एक निश्चित समय मे समस्त विदेशी लेन देन का विवरण होता है।
प्रो. बेनहम के अनुसार- "किसी देश का भुगतान संतुलन किसी दिए हुए समय में सम्पूर्ण विश्व के साथ उसके लेन देन का लेखा जोखा होता है।"
भुगतान संतुलन के अंतर्गत शामिल की जाने वाली वस्तुओं के आयतों निर्यातों को प्रमुख रूप से दो भागों में बंटा जाता है। (1) दृश्य आयात-निर्यात व (2) अदृष्य आयात निर्यात।
(1) दृश्य आयात निर्यात- दृश्य आयात-निर्यात के अन्तर्गत उन वस्तुओं के आयात-निर्यात को शामिल किया जाता है। जिनका बंदरगाह में रखे गए रजिस्टर में लेखा जोखा रखा जाता है। इससे वर्ष भर में किये गए आयातों व निर्यातों के मूल्य प्राप्त किये जा सकते हैं। इसीलिए इसे दृश्य मदें भी कहा जाता है। इसमें केवल वस्तुओं के आयात-निर्यात को ही शामिल किया जाता है।
(2) अदृश्य आयात निर्यात- अदृश्य आयात निर्यात के अन्तर्गत सेवाओं के आदान प्रदान को शामिल किया जाता है। ये सेवाएं हैं- बैंकिंग बीमा, विदेशों में शिक्षा चिकित्सा, पर्यटन, ब्याज तथा लाभांश, सैनिक सहायता, विदेशी दान, जुर्माने, मुआवज़े तथा अन्य प्रकार के हस्तांतरण से संबंधित आय का भुगतान, जिनका बंदरगाहों पर कोई लेखा-जोखा नहीं रखा जाता है। इस प्रकार अदृश्य मदों में सेवाओं एवं पूँजी में आयात-निर्यात को शामिल किया जाता है।
चलिये! अब हम बैलेंस ऑफ ट्रेड एंड बैलेंस ऑफ पेमेंट को तुलनात्मक रूप से समझने का प्रयास करते हैं। साथ ही हम इस अंक में "व्यापार संतुलन और भुगतान संतुलन में क्या अंतर है?" स्पष्ट तौर पर जानने का प्रयास करेंगे।
व्यापार संतुलन व भुगतान संतुलन में अंतर (Differences between Balance of Trade and Balance of Payment in hindi)
यदि हम तुलनात्मक अध्ययन करें तो व्यापार संतुलन और भुगतान संतुलन के बीच अंतर को हम निम्नलिखित अंतर के माध्यम से जान सकते हैं।
1. व्यापार सतुलन में आयात निर्यात की जाने वाली दृश्य मदों को ही शामिल किया जाता है। अर्थात इसमें केवल उन मदों को शामिल किया जाता है जिनका विशेष लेखा-जोखा बंदरगाहों पर होता है। जैसे- माल तथा वस्तुएँ। जबकि भुगतान संतुलन में दृश्य मदों के साथ अदृस्य मदों को भी शामिल किया जाता है। अर्थात इनमें उन वस्तुओं को भी शामिल किया जाता है जिनका लेखा-जोखा बंदरगाहों पर नहीं होता। जैसे- बीमा व्यय, बैंक शुल्क, पूँजी व ब्याज का हस्तांतरण, विशेषज्ञों की सेवाएं आदि।
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2. व्यापार संतुलन को, भुगतान संतुलन का एक भाग कहा जा सकता है। क्योंकि भुगतान संतुलन की धारणा व्यापक होती है। यानि कि सीधे शब्दों में कहा जाए तो भुगतान संतुलन में व्यापार संतुलन समाहित होता है।
3. किसी देश का व्यापार संतुलन पक्ष में न होना कोई अधिक चिंता का विषय नहीं है। जबकि भुगतान संतुलन पक्ष में नहीं है तो यह चिंता का विषय बन जाता है। क्योंकि किसी देश की आर्थिक स्थिति के लिए व्यापार संतुलन की तुलना में भुगतान संतुलन अधिक महत्वपूर्ण होता है।
4. व्यापार संतुलन अनुकूल या प्रतिकूल हो सकता है। जबकि भुगतान संतुलन सदा ही संतुलित रहता है। इसका कारण है कि भुगतान संतुलन जितनी राशि में प्रतिकूल होता है खाते में उतनी राशि ऋण रूप में दिखाकर उसे सन्तुलित कर लिया जाता है। प्रतिकूल भुगतान संतुलन क्या है? इसके कारण व इसे सुधारने के उपाय जानिए।
उम्मीद है आपको उपरोक्त अनुक्रमों के माध्यम से निश्चित तौर पर व्यापार संतुलन एवं भुगतान संतुलन में तुलना (comparison between balance of trade and balance of payment) अच्छी तरह समझने में आसानी होगी। साथ ही ऐसी आशा करते हैं कि हमारी इस वेबसाइट के माध्यम से अब आप "व्यापार संतुलन और भुगतान संतुलन क्या है? What is balance of trade and balance of payment? भलीभाँति जान चुके हैं।
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