आर्थिक नियोजन की असफलताएं, असफलताओं का कारण | विकास योजनाओं को सफल बनाने हेतु सुझाव

विकास योजनाओं की विफलताएं अथवा कमियां | भारतीय विकास योजनाओं की विफलता के कारण | विकास योजनाओं को सफल बनाने के लिए सुझाव




भारत में निसंदेह, विकास योजनाओं अर्थात आर्थिक नियोजन की उपलब्धियां देखी गई हैं। किन्तु इसके बावजूद अनेक विफलताएं भी देखी गई हैं। इस अंक में हम विकास योजनाओं की असफलता क्या है (vikas yojnaon ki asafalta kya hai?) जानेंगे और विकास योजनाओं की असफलता के कारण (vikas yojnaon ki asafalta ke karan) जानने के साथ साथ इन विकास योजनाओं को सफल बनाने हेतु उपाय (vikas yojnaon ko safal banane hetu upay) के बारे में भी विस्तार से जानेंगे। 

तो चलिए सबसे पहले जानते हैं कि आर्थिक नियोजन की विफलता क्या है? (aarthik niyojan ki vifalta kya hai?)


भारत में आर्थिक नियोजन की विफलताएं (bharat me arthik niyojan ki vifaltayen)

भारत में आर्थिक नियोजन की असफलताएं (bharat me arthik niyojan ki asafaltaen) निम्नलिखित हैं -

1. विकास की धीमी दर -
भारत में विकास की दर, योजना में निर्धारित लक्ष्यों एवं विश्व के अन्य देशों की तुलना में दोनों ही दृष्टियों से कम रही है। राष्ट्रीय आय की तुलना में प्रति व्यक्ति आय की दर तो और भी कम रही है। पंचवर्षीय योजनाओं के बावजूद भी भारत विश्व में अर्द्ध विकसित या विकासशील देशों की श्रेणी में ही आ रहा है।

2. ग़रीबी का दूर न होना -
भारत में आज भी 40% लोगों को ग़रीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करना पड़ रहा है। वस्तुतः योजनाविधि के दौरान देश में गरीबों की कुल संख्या घटने के बजाय बढ़ी है। निश्चित तौर पर यह चिंता की बात है। 


3. असमानताओं में वृद्धि -
देश के उच्चतम एवं निर्धनतम वर्गों के बीच आय व संपत्ति  वितरण की असमानताएं कम होने के बजाय और अधिक बढ़ी हैं। इन वर्गों के उपभोग स्तरों में भी काफ़ी बड़ा अंतर बना हुआ है। क्षेत्रीय असमानताएं भी कम होने की बजाय बढ़ी हैं। फलस्वरूप देश की अर्थव्यवस्था में आर्थिक शक्ति का केंद्रीयकरण बढ़ा है। आज भी उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, बिहार आदि राज्य पिछड़े हुए हैं जबकि पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, आदि राज्य तुलनात्मक रूप से विकसित श्रेणी में जाने जाते हैं।

4. कीमतों में वृद्धि -
हमारी विकास योजनाएं कीमतों को स्थिर रख पाने के उद्देश्य में भी असफल रही हैं। रुपए का मूल्य लगातार गिरता जा रहा है। परिणामस्वरूप देश की निर्धन जनता, मज़दूर व निश्चित वेतनभोगी वर्ग पर महंगाई का बोझ लगातार बढ़ता ही जा रहा है। अब तो आम आदमी का गुज़ारा चल पाना कठिन हो रहा है।

5. बेरोज़गारी की समस्या - 
देश की विकास योजनाओं में रोज़गार के नए अवसर सृजित तो किए गए लेकिन इसके बावजूद भी देश में बेरोज़गारी की समस्या निरंतर बढ़ती ही गई है। अल्प बेरोज़गारी, मौसमी बेरोज़गारी, छिपी बेरोज़गारी, शिक्षित बेरोज़गारी लगातार बढ़ती ही जा रही है। ग्रामीण क्षेत्रों व समाज के कमज़ोर तबकों में तो हालत और भी ख़राब है। ग़लत नीतियों व दोषपूर्ण विकास की व्यूह रचना के कारण देश में विकराल स्थिति निर्मित हो गई है।

6. उत्पादक क्षेत्रों में धीमा विकास - 
कृषि के क्षेत्र में गेहूं व चावल को छोड़कर अन्य वस्तुओं के उत्पादन की वृद्धि दर संतोषजनक नहीं रही है। विशेषकर दालों व तिलहनों के उत्पादन की दर तो बहुत ही धीमी है। इसी प्रकार ग्रामीण व लघु उद्योगों का विकास भी आशानुरूप नहीं हो सका है। आज परंपरागत कारीगर संकट में हैं। औद्योगिक क्षेत्र में भी विकास की दर धीमी हो रही है। बीमार उद्योगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।


7. विदेशी ऋण का भार -
विकास योजनाओं के कारण भारत काफ़ी बड़ी मात्रा में विदेशी कर्ज़ के बोझ तले दब गया है। भारत पर लगभग 4 लाख 15 हज़ार करोड़ रुपए का विदेशी कर्ज़ हो गया है। बल्कि इससे ज़्यादा भी कहें तो ग़लत न होगा। हम अब जो नया कर्ज़ लेते है उसका काफ़ी बड़ा भाग पुराने कर्ज़ की किश्तों को एवं ब्याज़ के भुगतान में ही चला जाता है। इस  प्रकार देश, विदेशी ऋण के जाल में बूरी तरह फंस गया है। 

8. भुगतान संतुलन की समस्या -
सारे प्रयत्नों के बावजूद भी हम विदेशी व्यापार के क्षेत्र में अभी भी पर्याप्त सफलता हासिल नहीं कर सके हैं। हमारे व्यापार क्षेत्र का घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है। निर्यात आशानुरूप नहीं बढ़ पा रहे हैं। कुल मिलाकर भुगतान संतुलन की स्थिति हमारे प्रतिकूल ही बनी हुई है। इस प्रकार देश भुगतान संतुलन के संकट में है

9. आय व धन की असमानता में वृद्धि- 
आर्थिक नियोजन का महत्वपूर्ण उद्देश्य धन के केन्द्रीयकरण को समाप्त कर आर्थिक समानता को बढ़ाना था लेकिन आर्थिक नियोजन के बावजूद धनी व्यक्ति, अधिक धनी व ग़रीब और भी अधिक गरीब होता गया है।

10. बहुराष्ट्रीय कंपनियों का बढ़ता शिकंजा -
1991 की नई आर्थिक नीति के बाद भारत सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था में विदेशी निवेश और बहुराष्ट्रीय कंपनियों को खुले प्रवेश की छूट दी है। इससे देश की अर्थव्यवस्था को बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने अधिकार में लेती जा रही हैं। और देश पर आर्थिक गुलामी के बादल लगातार मंडरा रहा लगे हैं। हमारी आत्मनिर्भरता के उद्देश्य को धक्का लगा है।

इस प्रकार स्पष्ट तौर पर कहा जा सकता है कि भारत ने योजनाकाल में जहां कुछ क्षेत्रों में सफलता प्राप्त की है, वहीं कुछ क्षेत्रों में असफलताएं भी हाथ लगी हैं। इस तरह हमारी विकास योजनाओं की कहानी सफलताओं और असफलताओं की मिली जुली कहानी है। 



आर्थिक नियोजन की असफलता के कारण (aarthik niyojan ki asafalta ke karan)

भारतीय अर्थव्यवस्था में आर्थिक नियोजन की विफलता के कारण (arthik niyojan ki vifalta ke karna) निम्नलिखित हैं -

1. नियोजन प्रक्रिया में दोष -
देश में योजना का निर्माण और उसके क्रियान्वयन में काफ़ी अंतर देखा गया। जिस कारण आर्थिक नियोजन में असफलताएं हाथ लगी हैं। देश में नियोजन प्रक्रिया का केन्द्रीयकरण किया जाना भी ग़लत फ़ैसला साबित हुआ। नियोजन ऊपर से नीचे चलने के बजाय नीचे से ऊपर की ओर चलना चाहिए। जो कि ऐसा हो नहीं पाया।

2. योजना आयोग का स्वतंत्र न होना -
चूंकि योजना आयोग की शक्ति असीमित होती है। इसके नीति से जुड़े सुझाव आदेश की तरह माने जाते हैं। किन्तु केंद्रीय सरकार अपनी इच्छानुसार इस आयोग का गठन करती है। इसलिए योजना आयोग स्वतंत्र निर्णय न लेकर सरकार की महज़ एक कठपुतली बनकर रह जाता है।

3. भेदभाव नीति -
ज़्यादातर यही देखा गया है कि राज्यों को अनुदान व वित्तीय सहायता देने में योजना आयोग द्वारा भेदभाव किया जाता रहा है। यही कारण है कि संसाधनों का युक्ति पूर्ण ढंग से आवंटन नहीं हो सका।

4. कृषि क्षेत्र की उपेक्षा -
भारतीय विकास योजनाओं में कृषि क्षेत्र की उपेक्षा की गई है। भू सुधारों व कृषि आगतों की उपलब्धता की ओर ध्यान नहीं दिया गया। इसी कारण कृषि के विकास के अभाव में अन्य क्षेत्रों का विकास भी नहीं हो सका।

 
5. काले धन की समस्या -
देश में काले धन की अधिकता होने के कारण मुद्रा का सही दिशा में उपयोग नहीं हो सका। बल्कि देश में मुद्रा का अधिकतम व्यय विलासिता किया गया।

6. ग़लत तकनीक -
देश की आवश्यकताओं के अनुरूप उत्पादन की तकनीक का प्रयोग नहीं किया गया। बल्कि देश में विदेशी तकनीकों का बहुतायत में इस्तेमाल किया गया। परिणामस्वरूप उत्पादन में वो वास्तविक वृद्धि नहीं देखी जा सकी।

7. विदेशी सहायता -
देश में संसाधनों का अभाव निरंतर बना रहा। और तो और देश के अंदर सीमित संसाधनों का उपयुक्त ढंग से इस्तेमाल करने के बजाय विदेशी सहायता पर निर्भरता ज़्यादा देखी गई। परिणाम यह हुआ कि उत्पादन का एक बड़ा भाग ब्याज़ के भुगतान में ही चला जाता है।

8. आधारिक संरचनाओं का धीमा विकास -
देश में ऊर्जा, परिवहन, संचार आदि का बहुत धीमा विकास हुआ है। इसके अभाव में आर्थिक विकास के मार्ग में अनेक बढ़ाएं आयी हैं। जो कुछ विकास हुआ भी, इसका लाभ शहर के कुछ बड़े पूंजीपतियों को ही मिल पाया है।



विकास योजनाओं को सफल बनाने हेतु सुझाव (vikas yojnaon ko safal banane hetu sujhav)

भारतीय अर्थव्यवस्था में आर्थिक नियोजन को सफल बनाने हेतु सुझाव (arthik niyojan ko safal banane hetu sujhav) निम्नलिखित हैं -

1. कीमत स्थायित्व - 
विकास योजनाओं की सफलताओं के लिए कीमतों में  स्थायित्व होना अत्यंत आवश्यक है। योजनाकाल में कीमतों में वृद्धि एक सीमित दायरे में ही होनी चाहिए। क्योंकि ऊंची कीमत वृद्धि योजना की लागत को बढ़ा देती है। जिसका अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

2. गावों में गैर कृषि क्षेत्र का विकास -
ग्रामीण जनता को गैर कृषि कार्यों में लगाने का भरसक प्रयास किया जाना चाहिए। ताकि जनसंख्या का भार कृषि पर से कम हो सके। और कुल उत्पादन व प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हो सके।

3. सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र में समन्वय -
सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के उद्योगों में उचित समन्वय एवम् सहयोग के साथ साथ सार्वजनिक एवं निजी  क्षेत्र पर्याप्त विकास भी किया जाना चाहिए। असल में ये दोनों ही क्षेत्र एक दूसरे के प्रतिस्पर्धी न होकर सहयोगी होने चाहिए। तभी मिश्रित अर्थव्यवस्था की अवधारणा सही मायने में सार्थक साबित होगी।

4. बचत एवं विनियोग को प्रोत्साहन -
किसी भी अर्थव्यवस्था में विकास योजनाओं को सफल बनाने के लिए एवं देश में पूंजी निर्माण की दर को बढ़ाने के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि देश में बचत व विनियोग को अच्छी तरह प्रोत्साहित किया जाए। इसके लिए व्ययों में छूट देनी चाहिए।

5. मानव शक्ति का उपयोग -
विकास योजनाओं की सफलता के लिए यह जरूरी है कि विभिन्न योजनाओं में मानव शक्ति का अधिकतम उपयोग किया जाए। ताकि अधिक से अधिक लोगों को रोज़गार मिल सके। क्योंकि देश का आर्थिक विकास तभी संभव है जब देश के नागरिकों को अधिक से अधिक रोज़गार प्राप्त हो।

6. कुशल प्रशासन एवं मूल्यांकन -
आर्थिक नियोजन के फलस्वरूप नियोजित विकास के लिए यह आवश्यक है कि योजनाओं को कुशल प्रशासन के साथ सही दिशा प्रदान की जानी चाहिए। साथ ही समय समय पर योजनाओं का मूल्यांकन भी करते रहना चाहिए।

7. सरकारी व्यवस्था ईमानदार हो -
अक़्सर यह देखा जाता है कि विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन हेतु बनाई गई व्यवस्थाएं उपयुक्त तो होती हैं किन्तु उसमें कुछ सरकारी पदाधिकारियों के भ्रष्ट होने की वजह से उन योजनाओं का उपयुक्त लाभ नहीं मिल पाता। इसलिए यह आवश्यक है कि संबंधित सरकारी व्यवस्था ईमानदार कर्मचारियों से परिपूर्ण हो। तभी आवंटित राशि का सही सही उपयोग हो सकेगा।

8. जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण -
जनसंख्या में लगातार वृद्धि किस भी देश के लिए आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न करती है। क्योंकि जनसंख्या की बढ़ती रफ़्तार को देखते हुए, प्रत्येक व्यक्ति को रोज़गार देना असंभव सा लगने लगता है। परिणामस्वरूप देश पर बेरोज़गारी की समस्या लगातार दिन दुनी रात चौगुनी बढ़ती चली जाती है। इसलिए जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण करने का भरसक प्रयास किया जाना चाहिए।

9. जन सहयोग की भावना -
देश में विकास योजनाओं की सफलता बिना जन सहयोग के अधूरी ही होती है। विकास योजनाओं के उद्देश्यों, लक्ष्यों, प्रावधानों व साधनों के आवंटन से जनता को अवगत कराया जाना चाहिए। साथ ही जनता को भी योजनाओं के प्रति उदासीनता की प्रवृत्ति को त्यागकर सहयोग की भावना दिखानी चाहिए।

10. आंतरिक साधनों के अनुरूप योजनाएं -
देश के संसाधनों की उपलब्धता व उसकी उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए ही आर्थिक विकास के लक्ष्य को आसानी से प्राप्त किया का सकता है। इसलिए इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि विकास हेतु योजनाएं, आंतरिक साधनों के अनुरूप ही होनी चाहिए।

उम्मीद है इस अंक में आर्थिक नियोजन की विफलताएं (failures of Economic Planning in hindi) और आर्थिक नियोजन की विफलता के कारण (reasons for failure of economic planning in hindi) तथा आर्थिक नियोजन के तहत विकास योजनाओं की सफलता के लिए सुझाव (suggestion for success of development plans in hindi) आपके अध्ययन में अवश्य सहायक सिद्ध होंगे।


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