आर्थिक नियोजन का महत्व | Aarthik Niyojan Ka Mahatva in hindi

आर्थिक नियोजन का महत्व समझाइए | Arthik Niyojan ka mahatva samjhaiye

स्वतंत्रता के पश्चात, भारतीय अर्थव्यवस्था एक अर्धविकसित तथा पिछड़ी अर्थव्यवस्था थी। स्पष्ट तौर पर कहा जाए तो भारत के लोग बहुत ही निर्धन थे। अर्थव्यवस्था का तीव्र गति से विकास हो सके, इसके लिए पं. जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में 15 मार्च, 1950 में एक योजना आयोग का गठन किया गया।

arthik niyojan ke mahatva


भारतीय अर्थव्यवस्था में ऐसी अनेक परिस्थितियां थीं जिनके कारण विकास योजनाओं की अत्यंत आवश्यकता महसूस हुई। विकास योजनाओं के अंर्तगत भावी विकास के उद्देश्यों को निर्धारित किया जाता है और उनकी प्राप्ति के लिए आर्थिक क्रियाओं का एक केंद्रीय सत्ता द्वारा नियमन व संचालन होता है। सामान्य भाषा में हम कह सकते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए आर्थिक नियोजन (विकास योजनाओं) का विशेष महत्व होता है।


आर्थिक नियोजन का महत्व (arthik niyojan ka mahatva)

अल्पविकसित एवं विकासशील देशों के लिये नियोजन का विशेष महत्व होता है। आर्थिक नियोजन के महत्व (arthik niyojan ke mahatva) निम्नलिखित हैं - -

1. संविधान के सिद्धांतों का क्रियान्वयन - 
देश के संविधान में वर्णित नीति निर्देशक सिद्धांतों में कहा गया था कि सरकार की नीतियों का क्रियान्वयन इस प्रकार हो कि जिससे प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन निर्वाह के लिए पर्याप्त साधन प्राप्त कर सकें। साथ ही उन साधनों का अनुकूलतम उपयोग भी हो सके। आर्थिक विकास संचालन इस प्रकार हो कि साधनों एवं संपत्ति का केंद्रीयकरण न हो जाए।


2. निर्धनता के दुष्चक्रों की समाप्ति -
विकसित देशों की तुलना में देखा जाए तो भारतीयों की कार्यकुशलता कम, उत्पादन कम, पूंजी निर्माण की गति धीमी तथा उपलब्ध साधनों का अनुकूलतम उपयोग संभव नहीं था। जिस कारण आर्थिक कुचक्र चलते रहते थे। इन दुष्चक्रों को तोड़ने के लिए नियोजन की विशेष रूप से आवश्यकता महसूस हुई।

3. उपलब्ध साधनों का अनुकूलतम उपयोग -
भारत में प्राकृतिक एवं मानवीय संसाधन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इसलिए इन संसाधनों के समुचित विदोहन के लिए एक नियोजन की आवश्यकता महसूस की गई। ताकि आर्थिक नियोजन के माध्यम से इन संसाधनों का निश्चित अवधि में  बेहतर उपयोग संभव हो सके।

4. बेरोज़गारी दूर करने हेतु -
भारत में आंशिक, अर्द्ध, छिपी हुई, चक्रीय, मौसमी एवं पूर्ण बेरोज़गारी की समस्या दिनों दिन बढ़ती जा रही थी। अतः इसको हल करने के लिए आर्थिक नियोजन नितांत आवश्यक था। आर्थिक नियोजन के तहत बेरोज़गारी से निपटने के लिए आवश्यक क़दम उठाए जाते हैं।

5. आत्मनिर्भरता की प्राप्ति -
भारत को औद्योगिक और पूंजीगत साज सामान के लिए अन्य देशों पर निर्भर रहना पड़ता था। भारत कृषि प्रधान देश होते हुए भी कृषि वस्तुओं के उत्पादन में पूर्ण रूपेण आत्मनिर्भर नहीं था। स्वतंत्र अर्थव्यवस्था की दृष्टि से किसी भी देश के लिए पर्याप्त आत्मनिर्भरता आवश्यक होती है। और देश की यह आत्मनिर्भरता, आर्थिक नियोजन के तहत, नियोजित आर्थिक विकास से ही संभव हो सकती थी।

6. समाजवादी समाज की स्थापना -
स्वतंत्रता के बाद देश में प्रजातांत्रिक ढंग से समाजवादी समाज की स्थापना का लक्ष्य रखा गया है। यह तभी संभव है जब आर्थिक विषमताओं को कम, निर्धन वर्ग का विकास, सरकारी क्षेत्र का विस्तार किया जाए। यह सब नियोजित आर्थिक विकास द्वारा ही संभव है।


7. सार्वजनिक हित को प्राथमिकता -
निजी उद्यमी तो सार्वजनिक हित की बजाय निजी हित को ही अधिक महत्व देते हैं। किन्तु देश के विकास के लिए यह आवश्यक होता है कि हम सार्वजनिक हित को ध्यान में रखकर काम करें। यह काम विकास योजनाओं के माध्यम से अधिक अच्छी तरह किया जा सकता था।

8. आधारभूत संरचना का निर्माण -
भारत में शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, संचार, बिजली, सिंचाई जैसी आधारभूत सुविधाओं की कमी थी। इनके बिना देश का विकास होना संभव नहीं था। अतः विकास योजनाओं के माध्यम से यह काम सरकार ही कर सकती थी।


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