आर्थिक नियोजन की उपलब्धियां क्या है? | What are the achievements of economic planning in hindi

भारतीय में आर्थिक नियोजन की उपलब्धियां | आर्थिक नियोजन की उपलब्धियां | आर्थिक नियोजन की सफलताएं | विकास योजनाओं की सफलताएं




भारतीय अर्थव्यवस्था में विभिन्न क्षेत्रों के विकास हेतु अनेक विकास योजनाएं चलाई गईं। इन विकास योजनाओं के फलस्वरूप देश के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक उपलब्धियां (सफलताएं) हासिल की जा चुकी हैं। जो कि निम्नलिखित हैं -

1. राष्ट्रीय आय व प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि -
भारतीय अर्थव्यवस्था में आर्थिक नियोजन के काल में शुद्ध राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय दोनों में कई गुना वृद्धि हुई है। 1950-51 में चालू मूल्यों के आधार पर राष्ट्रीय आय व प्रति व्यक्ति आय क्रमशः 9506 करोड़ व 255 रूपए थी। जो कि 2016-17 में बढ़कर कई गुना हो गई।

2. कृषि क्षेत्र में विकास -
2016-17 में कृषि क्षेत्र और उत्पादन में काफ़ी प्रगति दर्ज की गई है। खाद्यान्न के अधीन क्षेत्रफल में लगभग 129.7 मिलियन तक की वृद्धि हुई है और तिलहन के अन्तर्गत 28 मिलियन हेक्टेयर की बढ़ोत्तरी हुई है। खाद्यान्न में 264.4 मिलियन टन और तिलहन में 37.4 मिलियन टन का रिकार्ड उत्पादन हुआ है। खाद्यान्न उत्पादन में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत 2016-17 तक अतिरिक्त 25 मिलियन टन उत्पादन करने के नए लक्ष्य निर्धारित किए गए।

3. बचत एवं विनियोग दरों में वृद्धि -
योजनाकाल में सकल घरेलू बचत एवं सकल विनियोग दोनों में बराबर वृद्धि हुई है। 1950-51 में घरेलू बचत की दर 989 करोड़ रुपए थी, जो 2001-02 में बढ़कर 585374 करोड़ रुपए थी। और 2016-17 में लगभग 3043474 करोड़ रुपए हो गई। इसी प्रकार 1950-51 में पूंजी निर्माण। 1233 करोड़ रुपए थी, जो बढ़कर 2016-17 में लगभग 3509208 करोड़ रुपए हो गया।

4. औद्योगिक विकास -
योजनकाल के 53 वर्षों में औद्योगिक क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। आधारभूत उद्योगों की स्थापना हुई। सार्वजनिक उद्योगों भारी विकास हुआ है। उद्योगों में विविधता आने के साथ साथ उनका उत्पादन बढ़ा है। जिन उद्योगों का भारत में कोई नाम भी नहीं था, वे यहां स्थापित हो चुके हैं। अब औद्योगिक आत्मनिर्भरता बढ गई है। 2016-17 में तैयार इस्पात व सीमेंट में क्रमशः 3.6 व लगभग 4.2% की औसत वार्षिक वृद्धि हुई है। रिफाइनरी उत्पाद में 5.1 बिजली में 3.2 तथा उर्वरक में 2.9% की वृद्धि हुई है।

5. सार्वजनिक क्षेत्र का विस्तार -
योजनाकाल में सार्वजनिक क्षेत्र का काफ़ी विकास हुआ है। 1950-51 में भारत में केवल 5 सार्वजनिक उपक्रम थे और उनमें 29 करोड़ रुपए विनियोजित थे, लेकिन वर्तमान में इन उपक्रमों की संख्या हज़ारों में हो गई है। जिनमें अब अरबों रुपए विनियोजित हैं।

6. आयात एवं निर्यात में वृद्धि -
योजन काल में आयात एवं निर्यात में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। 1950-51 में आयात एवं निर्यात क्रमशः 608 व 606 करोड़ रुपए के थे, जो बढ़कर क्रमशः लगभग 50 लाख व 35 लाख करोड़ रुपए के हो गए हैं।

7. बैंकिंग क्षेत्र उन्नति -
योजनाकाल में देश में बैंकिंग सेवा का काफ़ी विस्तार हुआ है। दिसंबर 1951 में व्यापारिक बैंकों की शाखाओं की संख्या 2647 थी, जो अब बढ़कर लाखों की संख्या में है।

8. बिजली उत्पादन में वृद्धि -
प्रत्येक योजनाकाल में बिजली उत्पादन के लिए प्रयत्न किया गया। विद्युत संयंत्रों द्वारा बिजली का उत्पादन 2016-17 के दौरान 6.9% बढ़कर लगभग 1050.15 बिलियन यूनिट था। इसमें 25 मेगावाट से अधिक वाले हैद्रो स्टेशनों  उत्पादन शामिल है। 

9. परिवहन व संचार साधनों में प्रगति -
योजनाकाल में परिवहन एवं संचार साधनों के क्षेत्र में काफ़ी प्रगति हुई है। 1950-51 में 53000 किमी रेलमार्ग था, जो 2001-02 में बढ़कर 63140 किमी तथा 2012 में 104693 किमी हो गया। इसी प्रकार 1950-51 में 4 लाख किमी लंबी सड़कें थीं। 2013-14 में परियोजना पूर्णता तिथि के साथ चरण के अन्तर्गत 3870 करोड़ रूपए कर अनुमानित लागत से 1103-58 किमी सड़कों के निर्माण की योजना है। इसके साथ ही विश्व में भारतीय जहाजरानी का स्थान 20वां है। सार्वजनिक उपयोग श्रेणी में अब तक कुल 67 एयरपोर्ट को लाइसेंस दिया गया।

10. शिक्षा का विस्तार - 
योजनाकाल में शिक्षा का काफ़ी विस्तार हुआ। शुरुआत में देश में 27 विश्वविद्यालय थे, लेकिन आज इनकी संख्या 259 है। 1951 में देश की साक्षरता 16.6% थी, जो 2016-17 में बढ़कर लगभग 65.4% हो गई। इसी प्रकार 1950-51 में प्राइमरी स्कूलों की संख्या 2.3 लाख थी, जो आज 8.39 लाख से अधिक है। 1950-51 में 578 स्नातक व स्नातकोत्तर कालेज थे जो कला, वाणिज्य एवं विज्ञान में शिक्षा देते थे, लेकिन आज इनकी संख्या 12342 है। 1950 -51 में 6 से 11 वर्ष तक की उम्र के 42.6% बच्चे स्कूल जाते थे, लेकिन आज यह 2016-17 में लगभग 95.7% है। जहां 1950-51 में 11 से 14 वर्ष की उम्र के 12.7% बच्चे पढ़ने जाते थे, आज 2016-17 में लगभग 67.5% बच्चे पढ़ने जाते हैं। इसी प्रकार 1950-51 में 14 से 23 तक की उम्र के 6.1% बच्चे पढ़ने जाते थे, आज इस उम्र के 2016-17 में लगभग 28.9% बच्चे पढ़ने जाते हैं।

11. स्वास्थ्य एवं समाज सेवाएं -
योजनाकाल में स्वास्थ्य एवं समाज सेवा के क्षेत्र में काफ़ी प्रगति हुई है। 1950-51 में देश में 28 मेडिकल कॉलेज थे, लेकिन आज इनकी संख्या 200 से अधिक है। पहले टीबी, चेचक, प्लेग, मलेरिया आदि रोगों हज़ारों व्यक्तियों की मृत्यु हो जाती थी। लेकिन आज ऐसी बात नहीं है। मृत्यु दर को 1950-51 में 27.4 प्रति हज़ार थी, वह घटकर 8.7 प्रति हज़ार रह गई है। इसी प्रकार औसत जीवन जो पहले 23 वर्ष था, आज 65 वर्ष से अधिक है। 1950 में देश के ग्रामीण क्षेत्रों में एक भी स्वास्थ्य केंद्र नहीं था। लेकिन आज 22975 से अधिक ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्र व 137311 उपकेंद्र ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करते रहे हैं।

(12) उपभोग स्तर में वृद्धि -
योजनाकाल में उपभोग वस्तु की प्रति व्यक्ति उपलब्धि में भी वृद्धि हुई है। अनाज का प्रति व्यक्ति उपभोग 1951 में 334 ग्राम प्रति व्यक्ति से बढ़कर वर्तमान में लगभग 500 ग्राम तक पहुंच गया है। हालांकि दालों का प्रति व्यक्ति उपभोग 61 ग्राम से घटकर 31 ग्राम रह गया है। खाद्य तेलों और वनस्पति को मिलाकर प्रति व्यक्ति उपलब्धि 1951 में 3.1 किग्रा से बढ़कर वर्तमान में 10.06 किग्रा हो गई है। इसी प्रकार 1955-56 में चाय की प्रति व्यक्ति उपलब्धि  362 ग्राम से बढ़कर लगभग 750 ग्राम हो गई है। कपड़ा व अन्य उपभोग वस्तुओं की उपलब्धि भी बढ़ी है। स्तर एवम् रहन-सहन का स्तर बढ़ा है। इससे सिद्ध होता है कि योजना अवधि में देश के लोगों का उपभोग स्तर रहन सहन का स्तर बढ़ा है। 

13. सामाजिक लाभ -
योजनाकाल में असमानताओं को कम करने और निर्धन वर्ग के लोगों की उन्नति के लिए अनेक निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रम चलाए गए। पिछड़े वर्ग के लोगों की दशा सुधारने की दृष्टि से भी अनेक प्रयास किए गए। ग़रीबी रेखा के नीचे के लोगों को जीवन की मूलभूत वस्तुएं उचित मूल्य पर उपलब्ध करवाने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार किए गए हैं। 

14. रोज़गार के अवसरों में वृद्धि -
भारत की अर्थव्यवस्था में सरकार द्वारा चला जा रही विभिन्न योजनाओं के दौरान रोज़गार के नए अवसरों का सृजन कर रोज़गार बढ़ाने के प्रयास किए गए। विकास की दृष्टि से रोज़गार केन्द्रित उत्पादन कार्यों पर ज़ोर, कुटीर व लघु उद्योगों का विकास, विशेष रोज़गार कार्यक्रम आदि प्रारंभ किए गए। इन सबके परिणामस्वरूप रोज़गार में वृद्धि हुई है।


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