पत्र मुद्रा के गुण एवं दोष क्या हैं? | Advantages and Disadvantages of Paper Money in hindi

पत्र मुद्रा किसे कहते हैं? | पत्र मुद्रा के फ़ायदे और नुक़सान क्या है? | पत्र मुद्रा के गुण एवं दोष बताइए।




धातु मुद्रा के आने से वस्तु विनिमय में होने वाली समस्त कठिनाइयों से छुटकारा मिल गया। धीरे धीरे धातु मुद्रा का स्थान पत्र मुद्रा ने ले लिया। पत्र मुद्रा (काग़ज़ी मुद्रा)  विकास 17 वीं शताब्दी में हुआ था। इस अंक में हम पत्र मुद्रा के गुण तथा दोष क्या हैं? (patra mudra ke gun tatha dosh kya hain?) अध्ययन करेंगे।


पत्र मुद्रा क्या है?

अर्थव्यवस्था के प्रारंभिक दौर में जहां पशु धन, वस्तुओं का आदान प्रदान ही विनिमय का माध्यम हुआ करता था। वहीं धातु मुद्रा ने इसका स्थान ले लिया। लेकिन काग़ज़ी मुद्रा (पत्र मुद्रा) सस्ती और हल्की होने की वजह से आज के समय में अत्यंत लोकप्रिय विनिमय का माध्यम बन चुकी है।

सामान्य शब्दों में - "पत्र मुद्रा, कागज़ पर छपा हुआ एक प्रतिज्ञा पत्र होता है, जिसमें निर्गमन अधिकारी, सरकार अथवा केंद्रीय बैंक द्वारा, वाहकों के लिए उसमें लिखित राशि देने का वचन दिया जाता है।"

लेकिन यही पत्र मुद्रा जब अनियंत्रित हो जाती है तब इसके नुक़सान भी झेलने पड़ते हैं। इस अंक में हम पत्र मुद्रा से होने वाले फ़ायदे और नुकसान (patra mudra se hone vale fayde aur nuksan) के बारे में जानेंगे।



पत्र मुद्रा के लाभ (Patra mudra ke labh)

पत्र मुद्रा के चलन से अनेक लाभ होते हैं जिनमें प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं -

1. मितव्ययिता -
दरअसल पत्र मुद्रा जारी करने के लिए किसी मूल्यवान वस्तु की आवश्यकता नहीं पड़ती है। जिस कारण पत्र मुद्रा की उत्पादन लागत कम होती है। ये अल्पविकसित राष्ट्रों के लिए लाभदायक होती है। इससे अल्पविकसित राष्ट्रों को  धातुओं के सिक्कों के लिए व्यय नहीं करना पड़ता।

2. धातुओं की बचत -
पत्र मुद्रा जारी किए जाने के कारण धातुओं की मात्रा में भारी बचत होती है। जिस कारण मुद्रा निर्माण के हिस्से की बच्ची हुई धातुओं का प्रयोग विभिन्न औद्योगिक कार्यों एवं विदेशी व्यापार के लिए किया जाना सरल हो जाता है।

3. घिसावट नहीं -
पत्र मुद्रा के प्रयोग से धातु सिक्कों की घिसावट नहीं होती, क्योंकि ये प्रायः प्रारक्षित विधि में ही रखे जाते हैं। धातु के सिक्के कम से कम प्रयोग में लाए जाते हैं। साथ ही अर्थव्यवस्था में मुद्रा संबंधी अधिकतम कार्य नोटों द्वारा ही संपन्न किए जाते हैं।

4. लोच -
पत्र मुद्रा की मात्रा, मुद्रा की मांग के अनुसार घटायी बढ़ाई जा सकती है। परन्तु धातु मुद्रा में ऐसा करना संभव नहीं होता है, क्योंकि धातुओं का उत्पादन परिमित मात्रा में होता है। साथ ही धातुएं बहुत क़ीमती भी होती हैं। इसीलिए पत्र मुद्रा लोचदार होती है।

5. संकटकाल में सहायक -
संकटकाल (युद्ध बाढ़ आदि आर्थिक प्रकोपों) के समय अतिरिक्त मुद्रा की आवश्यकता होती है। ऐसे समय में प्रादिष्ट प्रणाली के अन्तर्गत सरकार निर्गमन करके पत्र मुद्रा की उत्पादन लागत कम होती है। संकट की स्थिति से निपट सकती है।


पत्र मुद्रा के दोष ( Patra mudra ke dosh)

वैसे देखा जाए तो मुद्रा अनेक वरदानों का स्रोत है। किन्तु अनियंत्रित होने पर संकट एवं अस्त व्यस्तता का कारण बन जाती है। पत्र मुद्रा के प्रमुख दोष (patra mudra ke dosh) निम्न प्रकार हैं -

(1) मुद्रा प्रसार की सम्भावनाएँ -
कागजी मुद्रा के प्रचलन में प्राय: मुद्रा प्रसार हो जाता है, क्योंकि इसमें सुरक्षित कोष में कुछ नहीं रखना पड़ता। इसलिए प्रायः नोटों की पूर्ति आवश्यकता से अधिक हो जाती है। इस मुद्रा प्रसार की सम्भावनाएँ बहुत बढ़ जाती हैं।

(2) सीमित क्षेत्र -
पत्र मुद्रा का प्रचलन केवल आन्तरिक विनिमय के लिए सम्भव होता है। इससे कागजी मुद्रा के प्रचलन का क्षेत्र अत्यन्त सीमित रहता है।

(3) नष्ट होने वाली -
कागजी मुद्रा टिकाऊ नहीं होती । यह प्रयोग से, भीगने से या आग लगने से पूरी तरह से नष्ट हो जाती है।

(4) सट्टे को प्रोत्साहन -
कागजी नोटों के प्रचलन, मुद्रा प्रसार आदि के कारण ही व्यापार-चक्र लागू होता है और सट्टे की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता है।

(5) कागजी मुद्रा का महत्त्व केवल सांकेतिक मुद्रा के रूप में -
सामान्यतः कागजी नोटों के एवज में सोना/चाँदी आदि सुरक्षा कोष में नहीं रखा जाता। यही कारण है कि इसमें केवल सांकेतिक मूल्य का ही महत्त्व है। इसका वास्तविक मूल्य कुछ भी नहीं होता है।


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