सूचकांक की रचना करते समय क्या कठिनाइयां आती हैं, निर्देशांक की रचना करते समय किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है, सूचकांक निर्माण में आने वाली कठिनाइयां, (difficulties in construction of index number in hindi, precautions in construction of index number in hindi)
हमारे पिछले अंकों में आपने निर्देशांक का अर्थ, विशेषताएं, उपयोगिताएं एवं सीमाएं क्या हैं? विस्तार से जाना। आज के इस अंक में हम जानेंगे कि निर्देशांक बनाने के लिए क्या कठिनाइयां आती है? इसके लिए क्या सावधानियां बरतनी चाहिए? तो चलिए जानते हैं निर्देशांक (सूचकांक) तैयार करते समय किन किन प्रमुख समस्याओं का सामना करना पड़ता है?
निर्देशांक की रचना करते समय आने वाली कठिनाइयां |
Difficulties in construction of index Number)
निर्देशांकों की रचना करते समय निम्नलिखित प्रमुख कठिनाइयां आती हैं -
1. आधार वर्ष के चुनाव में कठिनाई—
निर्देशांक बनाते समय पहली कठिनाई आधार वर्ष को चुनने की होती है, क्योंकि कोई भी वर्ष प्रायः सामान्य वर्ष नहीं रहता। प्रत्येक वर्ष में कोई न कोई असामान्य घटना अवश्य होती रहती है। अतः यह निश्चय करना कठिन हो जाता है कि किस वर्ष को आधार वर्ष माना जाये।
2. प्रतिनिधि वस्तुओं के चुनाव में कठिनाई –
निर्देशांकों की रचना करते समय एक कठिनाई यह आती है कि इसमें किन-किन प्रतिनिधि वस्तुओं को शामिल किया जाये। इसके अलावा आधार वर्ष तथा चालू वर्ष की समयावधि के बीच वस्तुओं की क़िस्म में भी परिवर्तन हो सकता है। ऐसी स्थिति में निर्देशांकों की तुलना करना व्यर्थ हो जाता है।
3. वस्तुओं की क़ीमतों के संकलन में कठिनाई — निर्देशांकों की रचना करते समय एक प्रमुख कठिनाई यह आती है कि प्रतिनिधि वस्तुओं की फुटकर क़ीमतों को लिया जाये अथवा थोक क़ीमतों को। दरअसल थोक क़ीमतें अपेक्षाकृत सुगमता से प्राप्त की जा सकती हैं, जबकि फुटकर क़ीमतों की जानकारी प्राप्त करने में कठिनाई आती है, क्योंकि विभिन्न स्थानों पर फुटकर मूल्यों में काफ़ी अन्तर पाया जाता है।
4. वस्तुओं के भार में कठिनाई –
निर्देशांकों की रचना करते समय वस्तुओं को भार देने में कठिनाई आती है, क्योंकि सभी वस्तुएँ सभी व्यक्तियों के लिए समान महत्व की नहीं होतीं। एक ही वस्तु अलग अलग व्यक्तियों एवं वर्गों के लिए भिन्नएच एसभिन्न महत्व रखती ।
निर्देशांकों की रचना करते समय वस्तुओं को भार देने में कठिनाई आती है, क्योंकि सभी वस्तुएँ सभी व्यक्तियों के लिए समान महत्व की नहीं होतीं। एक ही वस्तु अलग अलग व्यक्तियों एवं वर्गों के लिए भिन्नएच एसभिन्न महत्व रखती ।
5. औसत प्राप्त करने में कठिनाई—
निर्देशांकों की रचना में एक कठिनाई यह आती है कि कौन सी रीति से औसत निकाला जाये। चूंकि औसत निकालने के लिए अनेक रीतियाँ अपनायी जा सकती हैं। लेकिन कभी कभी एक ही सांख्यिकीय रीति से विभिन्न औसत रीतियों का प्रयोग करने पर भिन्न भिन्न परिणाम प्राप्त होते हैं।
निर्देशांक की रचना करते समय की जाने वाली सावधानियां (Precautions in Construction of index number)
सूचकांक बनाते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए -
1. निर्देशांकों का उद्देश्य -
निर्देशांकों को बनाने से पहले उनके उद्देश्यों को ठीक प्रकार से निर्धारित कर लेना चाहिए ताकि बाद में उनके उद्देश्य के अनुसार ही आवश्यक सूचनाएँ एकत्रित की जा सके। प्रत्येक निर्देशांक सीमित और विशेष उद्देश्य के लिए बनाया जाता है। उदाहरण के लिए, यदि आप श्रमिकों से संबंधित जीवन- निर्वाह निर्देशांक तैयार कर रहे हैं, तो आपको जीवन ऐसी चीज़ों को ही शामिल करना होगा जिनका उपभोग श्रमिकों के द्वारा किया जाता है।
2. वस्तुओं का चुनाव -
निर्देशांकों के निर्माण में वस्तुओं का चुनाव भी महत्वपूर्ण होता है। यदि हमें सामान्य निर्देशांक की रचना करनी है, तो उपभोग में आने वाली सभी महत्वपूर्ण एवं आवश्यक वस्तुओं को शामिल करना चाहिए। वहीं दूसरी ओर वस्तुओं का चुनाव करते समय उसकी क़िस्म की ओर पर्याप्त ध्यान देना आवश्यक होता है।
क्योंकि किसी भी समय के समस्त मदों के आधार पर निर्देशांक बनाना न तो उचित है और न ही व्यावहारिक। अतः समस्त मदों में से क़ीमत से मद पर्याप्त संख्या में चुनना चाहिए जो कि अन्य मदों का प्रतिनिधित्व करते हों।
3. प्रतिनिधि मूल्यों का चुनाव -
निर्देशांकों की रचना के लिए प्रतिनिधि क़ीमतों का चुनाव करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण होता है क्योंकि परिवर्तन की मात्रा इन्हीं के आधार पर मापी जाती है ।
उदाहरण के लिए, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक बनाने के लिए उस स्थान से फुटकर मूल्यों का चुनाव करना चाहिए जहाँ से उस वर्ग के उपभोक्ता प्रायः वस्तुएँ ख़रीदते हैं। जिनके लिए निर्देशांकों का निर्माण किया जा रहा है।
4. आधार वर्ष का चुनाव
निर्देशांकों के निर्माण में आधार वर्ष का चुनाव बड़ा ही महत्वपूर्ण होता है। क्योंकि इसी के आधार पर निर्देशांक बनाये जाते हैं। चूँकि आधार वर्ष के क़ीमत स्तर की तुलना अन्य वर्षों के क़ीमत स्तर से की जाती है। इसलिए इसका चुनाव सावधानी से करना चाहिए ।
आधार वर्ष ऐसा होना चाहिए जिसमें कोई सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक व प्राकृतिक असामान्य घटना न घटी हो अर्थात् यह सामान्य वर्ष होना चाहिए।
5. माध्य का चुनाव -
निर्देशांकों की रचना में माध्य का चुनाव भी महत्वपूर्ण होता है। यद्यपि निर्देशांक में सभी प्रकार के माध्य का प्रयोग किया जाता है, लेकिन व्यवहार में अंकगणितीय माध्य (समान्तर माध्य) का ही प्रयोग किया जाता है।
भिन्न-भिन्न मदों के तुलनात्मक अंक प्राप्त करने के पश्चात् उनका औसत ज्ञात किया जाता है। यह माध्य समान्तर माध्य, माध्यिका, भूयिष्ठक, गुणोत्तर माध्य या हरात्मक माध्य हो सकते हैं। यदि अंकों का अधिक विस्तार हो तो गुणोत्तर माध्य, यदि नियमितता हो तो माध्यिका का प्रयोग किया जा सकता है, अन्यथा प्रायः समान्तर माध्य को ही प्रयोग में लाया जाता है।
6. भारों का निर्धारण -
निर्देशांकों की रचना में भारों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। प्रत्येक वस्तु का उसके महत्त्व के अनुसार निर्देशांक पर प्रभाव डालने के लिए भारित विधि को प्रयोग में लाया जाता है। इसमें विभिन्न वस्तुओं को उनके भार के अनुसार भारांकित करने की आवश्यकता होती है।
यदि जिन मदों के सम्बन्ध में निर्देशांक बना रहे हैं उनके महत्त्व में अन्तर है तो उनके महत्त्वानुसार भार भी देना पड़ता है। अतः भार देने की विधि का भी पहले ही निश्चय करना पड़ता है। भार का आधार, आधार वर्ष की मात्रा होगी या चालू वर्ष या अन्य कोई मात्रा, इसका चुनाव पहले ही किया जाना चाहिए।
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