विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं में केंद्रीय समस्याओं का हल ꘡ Solution of central problems in different economy in hindi

केंद्रीय समस्याओं का समाधान भिन्न-भिन्न अर्थव्यवस्था में अलग-अलग प्रकार से होता है। किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को मनुष्य की आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए उपलब्ध उत्पादन साधनों के उपयोग की दृष्टि से एक संगठन के रूप में देखा जाता है। अर्थात ऐसी संस्था जिसमें किसी के कार्य करने के ढंग, किसी समस्या के सुलझाने के तरीके या निर्णय लेने की प्रक्रिया का भलीभांति संपादन किया जाता है। इसी तरह की संस्थाओं की स्थापना करने के उपरांत अर्थव्यवस्था की केंद्रीय समस्याओं का हल (arthvyavastha ki kendriya samasyaon ka hal) खोजा जाता है।


विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं में केंद्रीय समस्याओं का समाधान 

केंद्रीय समस्याओं का हल जानने से पूर्व हमें अर्थव्यवस्था की केंद्रीय समस्याएँ क्या होती हैं? इसे जानना आवश्यक है। इसे जानने के लिए हमने पहले ही आर्टिकल लिखा हुआ है जिसे जानने के लिए आप यहाँ क्लिक कर सकते हैं।

सामान्यतः आर्थिक संगठनों का विकास क्रमशः आदिम समाज, दास प्रथा, सामंतवाद, पूंजीवाद, समाजवाद तथा मिश्रित अर्थव्यवस्था की अवस्था में हुआ है। चूंकि वर्तमान में तीन अर्थव्यवस्था पूँजीवाद, समाजवाद और मिश्रित अर्थव्यवस्था ही ज़्यादा प्रचलित हैं। इसलिए हम इन्हीं तीन अर्थव्यवस्थाओं में केंद्रीय समस्याओं के हल (arthvyavastha me kendriya samasyaon ke hal) के विषय में जानेंगे।


(1) पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में केंद्रीय समस्याओं का हल (Solve central problems in capitalist economy in hindi)

किसी भी पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के अंतर्गत उत्पादन के साधनों पर निजी नियंत्रण होता है। उत्पादन और उपभोग के क्षेत्र में आर्थिक स्वतंत्रता होती है। इसलिए इस अर्थव्यवस्था से संबंधित केंद्रीय समस्याओं को हल करने में कीमत यंत्र का भूमिका प्रमुख होती है। केंद्रीय समस्याओं का हल (kendriya samasyaon ka hal) निम्न प्रकार होता है -


(1) किन वस्तुओं का उत्पादन किया जाए -

पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में किन वस्तुओं का एवं कितनी मात्रा में उत्पादन किया जाए यह विशेष रूप से कीमत यंत्र ही निर्धारित करता है। सामान्य रूप से यह देखा जाता है कि जिन वस्तुओं की मांग उपभोक्ता वर्ग में ज़्यादा हो, उन्हीं वस्तुओं का उत्पादन करने के लिए उत्पादक वर्ग में होड़ सी रहती है। एक प्रकार की आपस में प्रतियोगिता सी शुरू हो जाती है। 

माँग अधिक होने के कारण उन वस्तुओं की क़ीमत में वृद्धि करके उत्पादक अधिक लाभ अर्जित करते हैं। तो वही दूसरी तरफ़ जिन वस्तुओं की मांग कम हो, उसका उत्पादन भी कम ही करते हैं और क़ीमत भी कम रहने के कारण उत्पादकों को कम लाभ प्राप्त होते हैं। अर्थात सीधे शब्दों में हम समझ सकते हैं कि वस्तु कौन सी हो, कितनी मात्रा में हो? इस बात का निर्णय उस वस्तु की वर्तमान आवश्यकता, पसंदगी और उसकी क़ीमत के आधार पर लिया जाता है।

(2) उत्पादन किस प्रकार किया जाए -

पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में उत्पादक उसी वस्तु का उत्पादन करना पसंद करता है जिसके उत्पादन की लागत न्यूनतम हो। उत्पादन के साधनों के बीच आदर्श संयोग हो। जिससे वह अधिकतम लाभ प्राप्त कर सके। इसलिए उत्पादक महँगे साधनों के स्थान पर सस्ते साधनों को प्रतिस्थापित करने का भरसक प्रयास करता है। श्रम अधिक सस्ता हो तो ऐसी स्थिति में पूँजी की जगह श्रम प्रधान तकनीक का चुनाव करता है। और यदि पूँजी, श्रम की अपेक्षा सस्ती हो तो वह पूँजी प्रधान तकनीक का चुनाव करता है। अर्थ यहां भी कीमत यंत्र ही निर्धारित करता है कि किसी भी वस्तु का उत्पादन कैसे किया जाए।

(3) किसके लिए उत्पादन किया जाए -

पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में उत्पादन करते समय, उत्पादकों के सामने यह प्रश्न ज़रूर आता है कि उत्पादन आख़िर किसके लिए किया जाए?  चुकी यह इस अर्थव्यवस्था में क़ीमत-यंत्र की प्रमुख भूमिका होती है। इसीलिए उत्पादक भी वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन उन्हीं के लिए करना चाहता है जो उसकी क़ीमत अदा करने में सक्षम होते दिखाई देते हैं। 

किसी भी व्यक्ति में उसकी क्रय करने की क्षमता उसकी आय पर ही निर्भर करती है। और व्यक्तियों की आय साधनों की क़ीमत से निर्धारित होती है। क्योंकि साधनों को यह आय मज़दूरी, ब्याज़ लगान एवं लाभ के रूप में प्राप्त होती है। चूंकि वही व्यक्ति उत्पादित वस्तु की ऊँची क़ीमत अदा कर सकता जिसकी आय अधिक हो। अतः स्पष्ट है कि उत्पादक उन्हीं के लिए उत्पादन करे जिनकी आय अधिक हो।

(4) संसाधनों का कुशलतापूर्वक उपयोग -

किसी भी अर्थव्यवस्था में उत्पादन के लिए साधन सीमित ही होते है और उनकी उपयोगिता उतनी ही अधिक होती है। इसी कारण उनकी क़ीमत भी अधिक होती है। इसलिए पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में कीमत-यंत्र संसाधनों के कुशलतापूर्वक उपयोग करने में भी सहायता करता है। अतः उत्पादक आपस में संसाधनों का प्रयोग आवश्यकता के अनुसार बड़ी ही मितव्ययिता से करते हैं।

(5) विकास एवं नवप्रवर्तन हेतु प्रेरणा -

पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के अंतर्गत उत्पादक वर्ग, अधिकतम लाभ पाने की भावना की वजह से लगातार उत्पादन की विधियों में सुधार तथा विकास में निरन्तरता बनाये रखने का सदैव ही प्रयास करते हैं। निरंतर विकास के लिए नित नए नए प्रयास ही केंद्रीय समस्याओं का समाधान (kendriya samasyaon ka samadhan) बनते हैं



(2) समाजवादी अर्थव्यवस्था में केंद्रीय समस्याओं का हल (Solve central problems in socialist economy in hindi)

समाजवादी अर्थव्यवस्था की प्रमुख विशेषता यह होती है कि इस अर्थव्यवस्था के अंतर्गत उत्पादकों को कुछ प्रश्न जैसे- क्या उत्पादन होगा, कैसे होगा तथा किसके लिए किया जाएगा? आदि के विषय में सोचने की आवश्यकता नहीं होती। इन सभी समस्याओं के समाधान की ज़िम्मेदारी राज्य अथवा आर्थिक नियोजन समिति की होती है।

उत्पादन के विभिन्न साधनों पर सम्पूर्ण समाज का नियंत्रण होता है तथा आर्थिक क्रियाओं का संचालन सभी के हित में किया जाता है। इसलिए इसमें आर्थिक स्वतंत्रता नहीं पायी जाती। समाज की आवश्यकताओं के आधार पर प्राथमिकता देते हुए केंद्रीय समस्याओं का समाधान (kendriya samasyaon ka samadhan) किया जाता है। नियोजन समिति सामाजिक उद्देश्यों, उपलब्ध संसाधनों की प्राथमिकता के आधार पर उनमें सामंजस्य स्थापित करते हुए उत्पादन संबंधी निर्णय लेती है। पूँजीवाद में क़ीमत-यंत्र द्वारा निर्धारण होता है किंतु समाजवाद में नियोजन समिति द्वारा इन समस्याओं का समाधान होता है।



(3) मिश्रित अर्थव्यवस्था में केंद्रीय समस्याओं का हल (Solve central problems in mixed economy in hindi)

मिश्रित अर्थव्यवस्था अर्थात पूँजीवाद और समाजवाद दोनों ही अर्थव्यवस्था का सहअस्तित्व। मिश्रित अर्थव्यवस्था में केंद्रीय समस्याओं का समाधान क़ीमत-यंत्र एवं केंद्रीय प्राधिकरण दोनों ही द्वारा किया जाता है। दूसरे शब्दों में- " इस अर्थव्यवस्था में समस्याओं का निराकरण निजी एवं सार्वजनिक दोनों ही क्षेत्रों के सहयोग से किया जाता है। एक निश्चित अवधि के लिए योजना तैयार की जाती है।

लक्ष्य निर्धारित किये जाते है कि निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र के द्वारा कितना उत्पादन किया जाएगा। कौन-कौन सी वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन, कितनी मात्रा में उत्पादन, किस तरह की विधि एवं किस तरह वितरण किया जाए आदि समस्याओं के निराकरण में क़ीमत-यंत्र की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। निजी क्षेत्र लाभ के उद्देश्य से किन्तु राष्ट्रीय हितों व योजनाओं आदि के लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेता है। सार्वजनिक क्षेत्र निश्चित रूप से  सामाजिक कल्याण को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेता है। बल्कि कीमत-यंत्र, उपलब्ध संसाधनों के कुशलतम उपयोग करने हेतु सार्वजनिक क्षेत्र की मदद करता है।  

सरकारी नीतियों जैसे- मौद्रिक नीति, राजकोषीय नीति, वाणिज्य नीति, क़ीमत नीति आदि के द्वारा सरकार नियंत्रण रखने का प्रयास करती है ताकि वह राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रझते हुए कार्य कर सके। किन्तु वहीं दूसरी ओर निजी क्षेत्र को पर्याप्त स्वतंत्रता प्राप्त होती है। इस प्रकार पूँजीवादी एवं समाजवादी नीतियों के आपसी सहयोग से आर्थिक एवं सामाजिक दोनों ही प्रकार की केंद्रीय समस्याओं का समाधान (kendriya samasyaon ka samadhan) किया जाता है।

हम आशा करते हैं उपरोक्त अंक "विभिन्न अर्थव्यवस्था की केंद्रीय समस्याओं का हल | vibhinna arthvyavastha ki kendriya samasyaon ka hal" आपको अर्थव्यवस्था की केंद्रीय समस्याओं के समाधान को जानने के लिए अवश्य ही मददगार साबित होगा।


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2 टिप्पणियाँ

  1. अच्छा उत्तर दिया हुआ है समझ में जल्दी आ गया है। थैंक्स सर आगे इसी तरह
    उत्तर डालते रहिएगा

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    1. Most welcome!! 'Studyboosting' से जुड़े रहिये। आगे और भी topics पर अच्छे Articles देने के लिए हम संकल्पित हैं।😔

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