पर्यावरण शिक्षा का अर्थ, क्षेत्र, आवश्यकता और महत्व | Meaning, Area, Need and Importance of Environmental education in hindi

र्यावरण शिक्षा (environmental education in hindi)- यह सिखाने का प्रयास है कि मानव जाति के अस्तित्व की रक्षा के लिए प्राकृतिक वातावरण की क्रियाओं और विशेषतः अपने व्यवहार और पारिस्थितिक तंत्र में सामंजस्य किस प्रकार किया जा सकता है।

paryavaran shiksha kya hai
    
पर्यावरण शिक्षा की अवधारणा को यदि हम साधारण तौर पर जानने का प्रयास करें तो पर्यावरण शिक्षा प्रायः विद्यालय प्रणाली के अंतर्गत प्रारंभिक, माध्यमिक शिक्षा के बाद तक ही चलाई जाने वाली शिक्षा है। किंतु आजकल इसे अधिक व्यापक रूप में आम जनता को शिक्षित करने के प्रयास के रूप में प्रयोग में लाया जा रहा है। जैसे मुद्रित सामग्री, वेबसाईट, मीडिया आदि। जिसमें बाह्य शिक्षा और अनुभवात्मक शिक्षा भी शामिल है। 

वैसे तो पर्यावरण शिक्षा की जड़ें प्रारंभ काल से ही मानी जाती हैं। प्रारंभिक काल से ही, गुरुकुल, आश्रमों में प्राकृतिक जगत की सुरक्षा संबंधी गुर सिखाए जाते थे। पौराणिक कथाओं में भी नैतिक शिक्षा के साथ साथ पर्यावरण शिक्षा का उल्लेख मिलता है। अर्थात प्रारम्भ से ही सामाजिक, आर्थिक व पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान की शिक्षा दी जाती रही है।


पर्यावरण शिक्षा का अर्थ (Meaning of environmental education in hindi

पर्यावरण शिक्षा वस्तुतः विश्व समुदाय को पर्यावरण संबंधी दी जाने वाली वह शिक्षा है जिससे वे समस्याओं से अवगत होकर उनका हल खोज सकें तथा साथ ही भविष्य में आने वाली समस्याओं की रोकथाम कर सके।

       "पर्यावरण शिक्षा' दायित्वों को जानने एवं विचारों को स्पष्ट करने की वह प्रक्रिया है जिससे मनुष्य अपनी संस्कृति तथा जैव-भौतिक परिवेश के बीच स्वयं की संबद्धता को पहचानने और समझने के लिए आवश्यक कौशल और अभिवृति का विकास कर सके।"

पर्यावरण से संबंधित कुछ परिभाषाएँ- 

1) "पर्यावरण शिक्षा" पर्यावरण की गुणवत्ता से संबंधित प्रकरणों हेतु व्यवहारिक संहिता निर्माण करने एवं निर्णय लेने की आदत को भी व्यवस्थित करती है।"

2) "पर्यावरण शिक्षा" अर्थात अधिगम की वह प्रक्रिया जो पर्यावरण से जुड़ी चुनौतियों से जुड़ी जानकारी एवं जागरूकता को बढ़ावा दे सके और साथ ही उसका सामना करने के लिए आवश्यक कुशलताओं को विकसित करने में सहायक हो।"

3) "पर्यावरण शिक्षा" पर्यावरण सुरक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करने का साधन है। पर्यावरण शिक्षा किसी विज्ञान या विषय के अध्ययन की अलग शाखा नहीं है। इसे जीवन पर्यन्त सम्पूर्ण शिक्षा के अंतर्गत चलाया जाना चाहिये।"

4) "पर्यावरण शिक्षा" का प्रमुख प्रयोजन नागरिकों के अपने उत्तरदायित्वों में पर्यावरण की सुरक्षा एवं प्रबंध के बारे में जागृति पैदा करना और उसे बढ़ाना है।"

चूंकि आज के समय में पर्यावरण सुरक्षा को लेकर चहुँओर जागरूकता होना अति आवश्यक है। इसे प्रत्येक नागरिक का एक महत्वपूर्ण दायित्व, ज़िम्मेदारी, कर्तव्य जो भी कह लें। लेकिन यह कहना ग़लत नहीं होगा कि जब तक प्रत्येक व्यक्ति पर्यावरण सुरक्षा के प्रति गंभीर नहीं हो जाता। तब तक हमारे सामने पर्यावरण सुरक्षा, एक सवाल बनकर ही रहेगा। यदि हम पर्यावरण पर अत्याचार करते हैं तो इसकी सुरक्षा और संरक्षण का दायित्व भी हमारा ही है।

अतः बहुत ही संक्षेप में हम कह सकते हैं कि- "पर्यावरण शिक्षा (Paryavaran Shiksha)" पर्यावरण के बारे में जानकारी कर अपने कौशल से उसकी समस्याओं को समझने, हल निकालने, मिटाने या दूर करने की शिक्षा है।"


पर्यावरण शिक्षा की आवश्यकता (Need for environmental education in hindi) -

पर्यावरण शिक्षा का कार्य, इस पृथ्वी पर रहने वाले प्राणी जगत को उस पर आने वाली विपदाओं से बचाव करने तथा उन्हें सुखमय जीवन देने का प्रयत्न करना है। साथ ही उन्हें इस योग्य भी बनाना है कि वे भविष्य में हो सकने वाली समस्याओं को पूर्व में ही जान सकें तथा उनका इस तरह हल खोजें कि समस्या भी दूर हो जाये और नियमित जीवन प्रक्रिया में बाधा भी उत्पन्न ना हो। 

मनुष्य एवं अन्य जीव अपनी मूलभूत आवश्यकताओं के लिए पर्यावरण पर ही आश्रित होते हैं। शुद्ध हवा, शुद्ध पानी तथा शुद्ध भोजन आदि के लिए पर्यावरण महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस तरह इन सभी बातों के महत्व को समझने और संरक्षण की सोच विकसित करने हेतु पर्यावरण शिक्षा अत्यंत आवश्यक है। चलिए हम शिक्षा की आवश्यकता के कारणों को  निम्नानुसार समझने का प्रयास करते हैं-


1) सौरमंडल में मात्र पृथ्वी ही एक ऐसा ग्रह है जिस पर जीवन संभव है। अतः इसे नष्ट होने से सदैव ही बचाना है। ताकि इस पर बसने वाले जीव-जंतुओं को सुरक्षित एवं सुखप्रद जीवन प्रदान किया जा सके।

2) जनसंख्या वृद्धि आज सम्पूर्ण विश्व की समस्या है। जिसके कारण प्रकृति का संतुलन ही गड़बड़ा गया है। अतः इसे संतुलित करने के लिए पर्याप्त प्रयास करना।

3) प्रकृति में संसाधनों के विशाल भंडार सीमित होते हैं। जिनका उचित एवं बुद्धिमतापूर्ण प्रयोग हो, इस बात की जागरूकता तभी आ सकती है जब संबंधित शिक्षा का विस्तार हो।

4) चूँकि वनों की भूमिका कार्बन डाइऑक्साइड को ऑक्सीजन में परिवर्तित करने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। इसीलिए वायुमंडल में ऑक्सीजन की आवश्यक मात्रा बनाये रखने के लिए तथा कार्बन डाइऑक्साइड की वृद्धि से होने वाली पर्यावरणीय विकृतियों से अवगत कराना।

5) औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप उत्पन्न प्रदूषण, उसके कारण एवं प्रभावों का ज्ञान तभी हो सकता है, जब पर्याप्त शिक्षा प्राप्त हो।

6) पर्यावरण के विभिन्न घटक किस प्रकार एक दूसरे से क्रियात्मक संबंध रखते हैं, इसकी समुचित जानकारी प्रदान करना।

7) पर्यावरण एवं स्वास्थ्य पर होने वाले प्रभावों की विवेचना तथा पर्यावरण के प्रति चेतना जगाना।

8) क्षेत्रीय पर्यावरण संबंधी समस्याओं का अध्ययन तथा उनके निराकरण के उपाय प्रस्तुत करना।

अर्थात मानव कल्याण एवं सम्पूर्ण वातावरण की सुरक्षा हेतु किये जाने वाले सार्थक एवं दिशात्मक प्रयास, पर्यावरण शिक्षा के बिना संभव ही नहीं हैं। अतः हम कह सकते हैं कि पर्यावरण शिक्षा आज के समय के लिए निश्चित ही एक महत्वपूर्ण "आवश्यकता" है।




पर्यावरण शिक्षा का महत्व (Importance of environmental education in hindi) 

पर्यावरण के विषय मे विस्तृत सोच के आधार पर पर्यावरण के संरक्षण, सुरक्षा एवं सुधार की बात जब बुद्धिजीवियों ने रखीं। तभी से इसके लिए कोई नैदानिक एवं उपचारात्मक तरीक़े अपनाने पर बल दिया गया। यह बात "मानव पर्यावरण" पर स्टॉकहोम (1972) में आयोजित हुए अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में रखी गयी तथा वहीं इस बात का प्रस्ताव भी पारित किया गया कि पर्यावरण समस्या को सुलझाने एवं उन्हें दूर करने हेतु 'पर्यावरण शिक्षा' कार्यक्रम की संभावना को मूर्त रूप दिया जाए। निश्चित रूप से जिन आधार बिंदुओं पर (बेलग्रेड चार्टर-1975) तिवलिसी अंतर्देशीय सम्मेलन (1977) ने पर्यावरण शिक्षा के कार्यक्रम को मंजूरी दी तथा पर्यावरण शिक्षा के कार्यक्रम की उपादेयता स्पष्ट की, वे सभी पर्यावरण शिक्षा के महत्त्व के अंतर्गत आते हैं।

उपरोक्त सम्मेलनों में पारित किए गए विभिन्न प्रस्तावों के फलस्वरूप 'पर्यावरण शिक्षा' के जो महत्व (paryavaran shiksha ke mahatva) प्रदर्शित हुए उन्हें हम मोटे तौर पर निम्नानुसार समझ सकते हैं-

1. समस्त आम जन को पर्यावरण की सत्य तथा तथ्यात्मक जानकारी उपलब्ध कराना। 

2. किसी भी समस्या का, उसकी जानकारी के आधार पर संभावित कारणों का पता लगाना।

3. ऐसी अनचाही घटनाएँ जो निकट भविष्य में जन जीवन को पूरी तरह असंतुलित कर सकती हों, इन घटनाओं की पूर्व से ही जानकारी एकत्र करते हुए सतर्क करना।

4. भिन्न-भिन्न समस्याओं का हल खोजकर बताना एवं सरलतम रूप में जानने का प्रयास करना।

5. जन मानस को इस तरह तैयार करना कि वह किसी भी तरह की समस्या को समझने तथा उससे निपटने या हल खोजने को तत्पर रहे।

6. जनता को पर्यावरण संरक्षण, सुरक्षा एवं सुधार के कार्यों के लिए सदैव प्रेरित करना।

7. ऐसे कार्यों को करने के लिए प्रेरित करना जिसमें भावी पीढ़ी का भविष्य सुरक्षित एवं सुखी हो सके।

8. जियो और जीने दो, वाली भावना को आत्मसात करने की शिक्षा देना। 

उपरोक्त बिंदुओं में वह सभी बातें समाहित हैं जिन्हें हम पर्यावरण शिक्षा के उद्देश्य (paryavaran shiksha ke uddeshya) भी कह सकते हैं। हमें प्राकृतिक संसाधनों का उचित एवं बुद्धिमतापूर्ण उपयोग करना चाहिए। 

ऊर्जा की बचत, वनों की सुरक्षा, प्रदूषण की रोकथाम, स्वच्छ पानी, शुद्ध भोजन, हवादार आवास तथा स्वच्छ वातावरण उपलब्ध कराने का सदैव ही प्रयास करना चाहिए। पर्यावरण शिक्षा की सफलता में ही सुरक्षित एवं स्वस्थ जीवन का परिणाम छिपा है।



पर्यावरण शिक्षा का क्षेत्र (Field of environmental education in hindi) 

चूंकि पर्यावरण शिक्षा के अंतर्गत विज्ञान एवं समाज दोनों का ही अध्ययन किया जाता है। अतः पर्यावरण की घटनाओं को समझने के लिए भौतिकी, रसायन, जैविकी, भूगोल, इतिहास, नागरिकशास्त्र, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, संसाधन प्रबंधन आदि विषयों की आवश्यकता होती है। पर्यावरणीय अध्ययन के अंतर्गत इन सभी विषयों से प्राप्त होने वाला ज्ञान, छात्रों के लिए मानवीय संबंधों एवं मानव-समाज के सदस्य के रूप में अपना स्थान सुनिश्चित करने के लिए निहायत ही ज़रूरी है।



इन सभी विषयों की विषय-वस्तु विद्यार्थियों को अपने पर्यावरण को समझने में मददग़ार होती है। इससे बालक हर आयु वर्ग में शिक्षा स्तर के अनुरूप निरंतर विकसित एवं बुद्धिमान होता जाएगा। उनकी शिक्षा का क्षेत्र और भी विस्तृत होता चला जायेगा। साथ ही विषय वस्तु का विस्तार होता चला जायेगा। इन विषयों के अलावा कुछ अन्य विषयों का ज्ञान भी पर्यावरण शिक्षा के क्षेत्र में समाविष्ट हो सकता है। जैसे- वाणिज्य, नीतिशास्त्र, मानव जाति विज्ञान, राजनीति शास्त्र आदि। इन विषयों के लिए भी विद्यालय के समय विभाग चक्र में उपलब्ध समय एवं पाठ्यक्रम में शामिल किए जाने का प्रयास होना चाहिए। 

इस तरह पर्यावरण शिक्षा का क्षेत्र (paryavaran shiksha ka kshetra) विस्तृत होकर विद्यार्थियों को और भी विस्तृत ज्ञान प्रदान कर सकेगा जिनके फलस्वरूप आने वाली पीढ़ियों के लिए पर्यावरण सुरक्षा से संबंधित नये आयाम सृजित हो सकेंगे। यह समझिये कि विद्यार्थियों को पर्यावरण शिक्षा के क्षेत्र में विस्तारपूर्वक ज्ञान जितनी सहजता से प्राप्त होने लगेगा। पर्यावरण शिक्षा के लक्ष्य भी उतनी ही सरलता से पूरे किये जा सकेंगे। 

हम उम्मीद करते हैं हमारा आज का यह अंक "पर्यावरण शिक्षा का अर्थ, क्षेत्र आवश्यकता और महत्त्व" आपको ज़रूर पसंद आया होगा। आप अपनी राय हमें अवश्य दे सकते हैं। आगे ऐसे ही कुछ महत्वपूर्ण अंकों को हम आपके लिए उपलब्ध कराने का भरसक प्रयास करेंगे। 

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8 टिप्पणियाँ

  1. सभी टॉपिक को अच्छे से कवर किया गया है।

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    1. शुक्रिया अशरफ़ जी अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए🙏

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  2. आपके द्वारा किया गया कार्य सराहनीय है। इसी प्रकार आगे भी अच्छे से अच्छा conent बनाते रहें, जिससे कि विद्यार्थियों को ज्यादा से ज्यादा लाभ मिल सके।
    धन्यवाद

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