प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान - अर्थ, परिभाषा, गुण, दोष, सावधानियां (Arth, Paribhasha, Gun, Dosh, Savdhaniya)
ऐसा अनुसंधान जिसके अन्तर्गत अनुसंधानकर्ता स्वयं ही संबंधित क्षेत्र में जाकर अपने उद्देश्य के अनुरूप समंक एकत्रित करता है। प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान (Pratyaksh Vyaktigat Anusandhan) कहलाता है।
इस अंक में हम प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान क्या है? (Pratyaksh vyaktigat anusandhna kya hai?) जानेंगे। साथ ही इसके गुण, दोष व इस अनुसंधान में की जाने वाली सावधानियों के बारे में विस्तार से जानेंगे। समंक किसे कहते हैं? समंक के प्रकार जानने के लिए क्लिक करें।
इस पद्धति के अन्तर्गत अनुसंधानकर्ता स्वयं अनुसंधान क्षेत्र में जाकर उन व्यक्तियों से संपर्क स्थापित करता है। जिनसे सूचना प्राप्त करनी होती है। प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान (Pratyaksh vyaktigat anusandhan) विधि ऐसे अनुसंधानों के लिए उपयुक्त होती है जिनका क्षेत्र सीमित अथवा स्थानीय प्रकृति का होता है। तथा जहां समंक की मौलिकता, शुद्धता व गोपनीयता महत्वपूर्ण होती है।
प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसन्धान रीति द्वारा एकत्रित किए गए आंकड़े सर्वाधिक प्रामाणिक, शुद्ध तथा विश्वसनीय होते हैं। हालांकि इस रीति में धन, समय व श्रम अधिक खर्च होता है। इस विधि में पक्षपात की संभावना भी कम होती है। इस विधि में अनुसंधानकर्ता का प्रशिक्षित, धैर्यवान, निष्पक्ष व दूरदर्शी होना आवश्यक है। साथ ही अनुसंधानकर्ता को व्यवहार कुशल व उस क्षेत्र की भाषा एवं रीतिरिवाज से परिचित भी होना चाहिए।
प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान विधि (Pratyaksh vyaktigat anusandhan vidhi) का सर्वप्रथम प्रयोग ली प्ले (Le Play) ने यूरोपीय देशों में मज़दूरों के आय व्यय संबंधी समंक संकलित करने में तथा आर्थर यंग ने कृषि उत्पादन के क्षेत्र में किए जाने वाले अध्ययन में किया था।
प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान के गुण (Pratyaksh vyaktigat anusandhan ke gun)
प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसन्धान रीति के प्रमुख गुण (pratyaksh vyaktigat anusandhan vidhi ke pramukh gun) निम्नलिखित हैं -(1) इस विधि द्वारा संकलित समंक प्रामाणिक, शुद्ध तथा विश्वसनीय होते हैं।
(2) इस विधि में सत्य तथा विस्तृत जानकारी प्राप्त करना सम्भव होता है।
(3) समंकों का संकलन एक ही व्यक्ति द्वारा किए जाने के कारण प्राप्त समंकों में सजातीयता तथा एकरूपता का गुण पाया जाता है।
(4) इस विधि में अनुसंधानकर्ता स्वयं उपस्थित होने के कारण अपने मुख्य उद्देश्य की पूर्ति के अलावा अन्य संबंधित जानकारियां भी एकत्र कर सकता है।
(5) इस विधि में अनुसन्धानकर्त्ता आवश्यकता पड़ने पर स्वयं ही प्रश्नों में थोड़ा-बहुत संशोधन कर वांछनीय जानकारी एकत्र कर सकता है।
(6) यह विधि ऐसे स्थानों के लिए अधिक उपयुक्त होती है जो सीमित व अनुसंधानकर्ता के पहुंच के लिए आसान हों।
प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान के दोष (Pratyaksh vyaktigat anusandhan ke dosh)
प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान विधि के प्रमुख दोष (pratyaksh vyaktigat anusandhan vidhi ke pramukh dosh) निम्नलिखित हैं -(1) यह विधि केवल सीमित क्षेत्रों के लिए ही उपयुक्त है। अनुसंधान का क्षेत्र बड़ा होने पर यह विधि अनुपयुक्त हो जाती है।
(2) इस विधि में धन, समय व श्रम अधिक ख़र्च होता है।इसलिए इस विधि को मितव्ययी नहीं कहा जा सकता।
(3) इस विधि में अनुसन्धानकर्त्ता द्वारा व्यक्तिगत पक्षपात किया जा सकता है। जिससे अंतिम निष्कर्ष के ग़लत होने की संभावना बनी रहती है।
(4) अनुसंधान का क्षेत्र सीमित होने के कारण, निष्कर्षों की मान्यता एवं विश्वसनीयता पर संदेह प्रकट किया जा सकता है। क्योंकि सीमित क्षेत्र के संकलित समंक पूरे समग्र का सही प्रतिनिधित्व करने में सक्षम नहीं होते हैं।
प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान के लिए सावधानियां (Pratyaksh vyaktigat anusandhan ke liye savdhaniya)
(1) अनुसंधानकर्ता को व्यवहार कुशल होना चाहिए। जिससे वह सूचना देने वालों का सहयोग व विश्वास प्राप्त कर सके।
(2) इस विधि में पूछे जाने वाले प्रश्न कम, सरल व स्पष्ट होने चाहिए। ताकि उत्तर देने वाले व्यक्ति बिना किसी झिझक के आसानी से उत्तर दे सकें।
(3) संदेहास्पद उत्तरों की सत्यता जांचने के लिए ऐसे प्रश्न पूछे जाने चाहिए जिससे उत्तरों की सत्यता की जांच की जा सके।
(4) अनुसंधानकर्ता द्वारा समंक एकत्र करते समय किसी प्रकार का पक्षपात नहीं किया जाना चाहिए। उसे निष्पक्ष होकर अपना अनुसंधान पूर्ण करना चाहिए।
(5) अनुसंधानकर्ता को अनुसंधान से संबंधित क्षेत्र की भाषा, रीति रिवाजों आदि के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए।