निर्देशांको का अर्थ एवं सीमाएं बताइए, सूचकांक की सीमाएं, निर्देशांक की सीमाएं लिखिए, निर्देशांक की सीमा, (Suchkank ki kamiyan, Suchkank ki simayen, Suchkank ya Nirdeshank ki simayen in hindi)
निर्देशांक या सूचकांक (index number) एक विशेष प्रकार का माध्य होता है जो समय स्थान अथवा अन्य विशेषताओं के आधार पर किसी चर मूल्य अथवा संबंधित चर मूल्यों के समूह में होने वाले परिवर्तनों की माप करता है।
सामान्यतया निर्देशांक अत्यंत महत्वपूर्ण व उपयोगी होते हैं। ये जटिल से जटिल तथ्यों को सरल बनाने का कार्य करते हैं। ताकि आसानी से समझा जा सके। ये आर्थिक नीतियों के निर्माण में सहायक होते हैं। किंतु निर्देशांक की भी कुछ सीमाएं होती हैं। इस अंक में हम निर्देशांक की सीमाएं क्या हैं (nirdeshank ki simaye kya hain?) जानेंगे।
निर्देशांकों की सीमाएँ (Limitations of index numbers in hindi)
निर्देशांकों की प्रमुख सीमाएँ (nirdeshanko ki pramukh samaye) निम्नलिखित हैं-
(1) निर्देशांक पूर्णतः शुद्ध व विश्वसनीय नहीं :
प्रायः निर्देशांक न्यादर्श के आधार पर बनाये जाते हैं इसलिए न्यादर्श जितना अधिक हो और जितनी उचित रीति से लिया गया हो परिणाम उतना ही शुद्धता के निकट होता है। किंतु निर्देशांक बनाते समय प्रायः सभी इकाइयाँ सम्मिलित नहीं की जाती हैं। जिस कारण
इन इकाइयों के आधार पर निर्मित निर्देशांक अधिक शुद्ध व विश्वसनीय नहीं होते हैं।
(2) ठीक तरह से आधार वर्ष न चुने जाने पर भ्रामक परिणाम :
निर्देशांकों के निर्माण में आधार वर्ष का चुनाव अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इसी के आधार पर समस्त परिणाम निर्भर करते हैं। यदि आधार वर्ष कोई विशेष परिणाम वर्ष न होकर कोई असामान्य वर्ष हो तो ऐसे निर्देशांक के द्वारा निकाले गये निष्कर्ष भ्रामक होंगे।
यदि चुना गया आधार वर्ष ऐसा है जिसमें काफ़ी मन्दी रही है, तब हो सकता है निर्देशांक उतनी महँगाई प्रदर्शित कर रहे हों जितनी ना हो। ठीक इसके विपरीत यदि चुने गए आधार वर्ष में महँगाई ज़्यादा रही हो, और तब हो सकता है महँगाई रहने पर भी निर्देशांक उतनी महँगाई प्रदर्शित ना कर रहे हों।
(3) व्यक्तिगत इकाइयों की उपेक्षा :
प्रायः निर्देशांक सामान्य रूप से सत्य होते हैं, क्योंकि ये औसत प्रवृत्ति को ही व्यक्त करते हैं, ना कि व्यक्तिगत इकाइयों को। शायद इसलिए निर्देशांक ज्ञात करते समय व्यक्तिगत इकाइयों पर ध्यान नहीं रखा जाता है। व्यक्तिगत इकाइयों की उपेक्षा की जाती है।
(4) आर्थिक परिवर्तनों की व्याख्या का अभाव :
आर्थिक परिवर्तनों पर विचार किये बिना दो समयों के बीच वस्तुओं के मूल्यों की सही-सही तुलना करना सम्भव नहीं है। उदाहरण के लिए, यदि 1980 के मूल्यों की तुलना 1970 के मूल्यों से करना चाहें तो राज्य द्वारा दिए गए अनुदान, उनकी राशनिंग व्यवस्था, वस्तुओं के चुनाव पर किए गए प्रतिबन्ध, अवमूल्यन आदि को ध्यान में रखे बिना सही-सही तुलना करना असंभव होगा।
(5) केवल सापेक्ष परिवर्तनों का मापन :
निर्देशांकों द्वारा केवल सापेक्ष परिवर्तनों का ही मापन किया जा सकता है। इसके माध्यम से वास्तविक परिवर्तनों की मात्रा का बोध नहीं होता है। इन
निर्देशांकों से केवल सापेक्षिक परिवर्तनों का ज्ञान होता है क्योंकि ये आधार वर्ष के चुनाव, सम्मिलित की जाने वाली वस्तुओं के चुनाव, भार देने आदि पर निर्भर रहते हैं। अर्थात निर्देशांक किसी आधार पर आधारित होकर प्रतिशतों में व्यक्त किए जाते हैं।
(6) निर्देशांकों द्वारा स्वभाव व रीति-रिवाज की तुलना नहीं :
निर्देशांकों द्वारा विभिन्न स्थानों पर रहने वाले विभिन्न प्रकार के मनुष्यों के जीवन स्तर की तुलना नहीं की जा सकती। किसी शराबी और अत्यधिक धूम्रपान करने वाले व्यक्ति के जीवन-स्तर की तुलना एक ऐसे व्यक्ति के साथ नहीं की जा सकती है जो इन कार्यों में से कुछ भी नहीं करता है।
(7) दीर्घ-कालीन तुलना के अयोग्य :
निर्देशांक दीर्घ-कालीन तुलना के अयोग्य होते हैं, इसका कारण यह है कि समय में परिवर्तन के साथ-साथ व्यक्तियों की रुचि, आदतें, रीति-रिवाजों व वस्तुओं की किस्म आदि में भी अन्तर आना स्वाभाविक होता है। अतः एक बार निर्मित निर्देशांकों को दीर्घकाल में उपयोग में लाना असंभव होता है।
(8) वास्तविक जीवन-स्तर की तुलना संभव नहीं :
विभिन्न स्थानों पर रहने वाले लोगों के वास्तविक जीवन-स्तर की तुलना, जीवन निर्वाह निर्देशांकों के द्वारा नहीं की जा सकती। क्योंकि अलग-अलग स्थानों के निवासियों के रहन-सहन, रीति-रिवाज, तथा खान-पान की आदतों में भिन्नता होती है।
(9) किस्म में परिवर्तन की उपेक्षा :
निर्देशांकों द्वारा किस्म में हुए परिवर्तनों की उपेक्षा की जाती है। कई बार ऐसा देखा जाता है कि किस्म में सुधार होने के फलस्वरूप मूल्यों में भी वृद्धि हो जाती है। किंतु इस तथ्य का ज्ञान हमें निर्देशांकों से प्राप्त नहीं हो पाता है।
(10) माध्यों की सीमाएं :
निर्देशांकों में समान्तर माध्य, गुणोत्तर माध्य आदि का प्रयोग होता है। प्रयुक्त माध्य की सीमाओं का प्रभाव निर्देशांकों (सूचकांकों) पर भी पड़ता है।
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