ग्रीन हाउस प्रभाव- अर्थ, कारण, महत्व एवं नियंत्रण के उपाय, (Green house effect - definition, reasons, importance, measures to control greenhouse effects in hindi)
आज का युग वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति का युग है, जहाँ मानव ने कई क्षेत्रों में अद्भुत तरक्की की है। परंतु इस विकास की दौड़ में हमने पर्यावरण को नुक़सान भी अत्यधिक पहुँचाया है। उसी का एक प्रमुख दुष्परिणाम है ग्रीन हाउस प्रभाव (Green house Prabhav)।
यह एक ऐसी प्राकृतिक और मानवनिर्मित प्रक्रिया है, जो पृथ्वी के वायुमंडल में गर्मी को बनाए रखने का कार्य करती है। हालांकि यह प्रभाव जीवन के लिए आवश्यक है, परन्तु इसकी अधिकता, आज वैश्विक तापन (Global Warming) और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं का कारण बन रही है। आइए विस्तार से जानते हैं ग्रीन हाउस प्रभाव (green house effect kya hai in hindi) क्या है?
ग्रीन हाउस प्रभाव क्या है? | Green house effect kya hai?
ग्रीन हाउस प्रभाव एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा पृथ्वी की सतह पर सूर्य की ऊर्जा को बनाए रखा जाता है। सूर्य से आने वाली किरणें पृथ्वी पर पहुँचती हैं और वहाँ से परावर्तित होकर वापस अंतरिक्ष में जाने की कोशिश करती हैं। लेकिन पृथ्वी के चारों ओर मौजूद कुछ गैसें जैसे- कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂), मीथेन (CH₄), नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O), जलवाष्प (H₂O vapor) आदि, इस ऊष्मा को अवशोषित करते हुए उसे वायुमंडल में बनाए रखती हैं। जिस कारण पृथ्वी का तापमान, जीव जंतुओं के रहने लायक बना रहता है।
यदि आप जानना चाहें कि ग्रीन हाउस (green house kya hai?) क्या है? तो यह प्रक्रिया उसी प्रकार है जैसे किसी बगीचे में एक ग्रीनहाउस (कांच का बना हुआ घर) बना हो, जिसमें उन पौधों को उगाया जाता हो जिन्हें अधिक तापमान की आवश्यकता होती है। और यह ग्रीन हाउस, पौधों को गर्म रखने के लिए सूर्य की रोशनी को अंदर आने देता है, लेकिन गर्मी को बाहर जाने नहीं देता। इसी क्रिया को ग्रीन-हाउस प्रभाव या पौधा घर प्रभाव कहा जाता है।
इस क्रिया द्वारा पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है। सूर्य से आने वाली प्रकाश की किरणों में से परा-बैंगनी किरणों को ओजोन परत अवशोषित कर लेती है और अवरक्त कण पृथ्वी से टकराने के बाद वायुमंडल में चले जाते है जो कि वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड गैस द्वारा अवशोषित कर लिए जाते हैं जिससे वायुमण्डल गर्म हो जाता है।
ग्रीन हाउस गैसें | Green house gases in hindi
ग्रीन हाउस प्रभाव के लिए ज़िम्मेदार गैसों को ग्रीन हाउस गैसें (GHGs) कहा जाता है। ये गैसें निम्न हैं -
1. कार्बन डाऑक्साइड (CO2) : ग्रीन हाउस प्रभाव प्रभाव पैदा करने के लिए ये गैस सबसे अधिक ज़िम्मेदार है अर्थात पौधा घर प्रभाव (green house prabhav) की मुख्य गैस CO2 है। यह सबसे प्रमुख ग्रीनहाउस गैस कही जाती है। यह गैस मुख्य रूप से प्राणियों की श्वसन क्रिया द्वारा छोड़ी जाती है। यह गैस जीवाश्म ईंधनों के जलने से भी निकलती है। कार्बन डाइऑक्साइड गैस यातायात के साधनों, तापघरों, बिजलीघरों, कारखानों द्वारा भी प्रतिदिन छोड़ी जा रही है और वातावरण में इसकी मात्रा दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।
2. मीथेन गैस (CH₄) : यह चावल की खेती, पशुपालन, कचरे और दलदली क्षेत्रों से निकलती है।
मीथेन गैस भी ग्रीन हाउस प्रभाव के लिए ज़िम्मेदार होती है। सन् 1870 से अब इसकी मात्रा 0.7 पी.पी.एम. से बढ़कर 1.65 पी.पी.एम हो गई है।
3. नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O) : यह रासायनिक खादों के अत्यधिक प्रयोग से निकलती है। वायु प्रदूषण से इसकी मात्रा वातावरण में 25 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है।
4. क्लोरोफ्लोरोकार्बन गैस (CFCs) : ये मानव निर्मित रसायन हैं जो रेफ्रिजरेटर और एयर कंडीशनर में इस्तेमाल होते हैं। 3 प्रतिशत की दर से इसकी मात्रा वातावरण में बढ़ती जा रही है।
5. जलवाष्प (Water Vapor) : यह प्राकृतिक रूप से बनती है लेकिन तापमान बढ़ने पर इसकी मात्रा भी वृद्धि होती है।
ग्रीन हाउस प्रभाव के दुष्परिणाम | (Harmful effects of greenhouse effect in hindi)
ग्रीन हाउस प्रभाव के कारण वातावरण में लगातार ग्रीन हाउस गैसों की वृद्धि होती रहती है। ग्रीन हाउस प्रभाव के दुष्परिणाम निम्न होते हैं -
1. वैश्विक तापन (Global Warming) : ग्रीन हाउस गैसों के बढ़ जाने से पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है। जिस कारण हिमखंड पिघल रहे हैं।
2. समुद्र के जल स्तर में वृद्धि : पृथ्वी का तापमान बढ़ने से दोनों ध्रुवों में बर्फ़ पिघल रही है। बर्फ के पिघलने से समुद्रों का जलस्तर बढ़ रहा है, जिससे तटीय शहरों को ख़तरा है।
3. अप्रत्याशित मौसम परिवर्तन : कभी अत्यधिक वर्षा, कभी सूखा, मौसम चक्र असंतुलित हो रहा है।
4. प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि : बाढ़, तूफ़ान, जंगल की आग जैसे आपदाएँ लगातार बढ़ रही हैं।
5. जैव विविधता का नुकसान : तापमान बढ़ने से कई प्रजातियाँ विलुप्त होने की कगार पर हैं।
6. मानव स्वास्थ्य पर असर : गर्मी की लहरें, त्वचा रोग, अस्थमा, हृदय रोग आदि ज़्यादा बढ़ रहे हैं।
7. ऊर्जा संकट की संभावना : ग्रीन हाउस गैसों में वृद्धि होने से ऊर्जा संकट की संभावनाएं बढ़ रही हैं।
8. कृषि उपज पर संकट : ग्रीन हाउस गैसों में वृद्धि होने के कारण कृषि उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसके कारण फ़सल उत्पादन और फ़सल चक्रण में परिवर्तन स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है।
ग्रीन हाउस प्रभाव का महत्व | Importance of Greenhouse Effect in hindi
ग्रीन हाउस प्रभाव का संतुलन यदि बना हुआ हो, तो पृथ्वी पर जीवन आसान हो जाता है इसलिए इसका संतुलित होना अत्यंत आवश्यक है। इससे पृथ्वी का औसत तापमान लगभग 15°C बना रहता है, जो कि जीवन के अनुकूल होता है।
ज़रा सोचकर देखिए कि यदि ग्रीन हाउस प्रभाव न हो, तब पृथ्वी का औसत तापमान -18°C हो सकता है, जो कि जीवन के लिए अत्यधिक ठंडा है। अतः यह मन सकता है कि ग्रीन हाउस प्रभाव प्राकृतिक रूप से मौसम चक्र और वर्षा को नियंत्रित करता है।
मानव गतिविधियों के कारण ग्रीन हाउस प्रभाव में वृद्धि
औद्योगीकरण, शहरीकरण और अनियंत्रित प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के कारण ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा तेज़ी से बढ़ रही है, जिससे ग्रीन हाउस प्रभाव असामान्य रूप से तेज़ हो गया है। प्रमुख कारण निम्न हैं -
1. जीवाश्म ईंधनों का जलना – कोयला, पेट्रोल, डीज़ल आदि का उपयोग बढ़ने से CO₂ उत्सर्जन अधिक हो रहा है।
2. वनों की कटाई (Deforestation) – पेड़ CO₂ को अवशोषित करते हैं। लेकिन मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए लगातार हरे भरे वनों को काटता फ़िर रहा है। जिस कारण पर्यावरण का संतुलन बिगड़ रहा है।
3. वाहनों की संख्या में वृद्धि – आज के दौर में हर घर में वाहन होने से, ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन तेज़ी से बढ़ रहा है।
4. उद्योगों और फैक्ट्रियों का धुआँ – छोटे बड़े शहरों में स्थित कारखानों की बजा से भारी मात्रा में प्रदूषक गैसें वातावरण में जाती हैं। जिसका दुष्प्रभाव लगातार देखा जा रहा है।
5. कृषि में रसायनों का अत्यधिक प्रयोग – खाद और कीटनाशकों से नाइट्रस ऑक्साइड निकलती है। जिसका दुष्परिणाम लगातार पर्यावरण में दिखाई दे रहा है।
ग्रीन हाउस प्रभाव पर नियंत्रण के उपाय | Green house prabhav ke upay
ग्रीन हाउस प्रभाव को निम्न तरीकों से नियंत्रित किया जा सकता है -
1. नवीकरणीय ऊर्जा का प्रयोग : सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जल ऊर्जा को बढ़ावा देना चाहिए।
2. वनों की सुरक्षा और वृक्षारोपण : अधिक से अधिक पेड़ लगाना और वनों की कटाई रोकना ज़रूरी है।
3. वाहनों का सीमित उपयोग : जितना संभव हो सके सार्वजनिक परिवहन, साइकिल और पैदल चलने को बढ़ावा दें।
4. ऊर्जा की बचत : बिजली, पेट्रोल और अन्य संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग करें। ज़रूरी हो तभी ऐसे संसाधनों का उपयोग करें।
5. इलेक्ट्रिक वाहनों का इस्तेमाल : पर्यावरण प्रदूषण को बचाने के लिए पेट्रोल, डीज़ल से चलने वाले वाहनों के बजाय इलेक्ट्रिक वाहनों का इस्तेमाल करें।
6. कचरा प्रबंधन : कचरे को सही ढंग से निपटाना और पुनर्चक्रण को बढ़ावा देना।
7. हरित तकनीकों का विकास : उद्योगों में प्रदूषण नियंत्रण तकनीकें लागू करें। ऐसी तकनीकों के प्रयोग से पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचने में अपना भरपूर सहयोग दें।
8. शिक्षा और जागरूकता : लोगों को इस विषय में जागरूक बनाना आवश्यक है। और यह जागरूकता पर्यावरण प्रदूषण को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
निष्कर्ष (Conclusion)
ग्रीन हाउस प्रभाव एक आवश्यक लेकिन संवेदनशील प्रक्रिया है। यदि यह संतुलित रहे, तो पृथ्वी पर जीवन संभव है। परंतु यदि इसकी तीव्रता बढ़ती है, तो यह सम्पूर्ण मानवता के लिए विनाशकारी हो सकता है। यह समय की माँग है कि हम अपने जीवनशैली में बदलाव लाएँ, पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनें और सतत विकास के मार्ग पर चलें। तभी हम आने वाली पीढ़ियों को एक सुरक्षित, सुंदर और संतुलित धरती दे पाएँगे।
उम्मीद है इस अंक में आपने ग्रीन हाउस प्रभाव क्या होता है? (Green house prabhav kya hota hai?) अच्छी तरह जान लिया होगा। हम आशा करते हैं पृथ्वी के पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने के लिए आप भी अपनी ओर से सहयोग करने के साथ साथ, अपने आसपास के लोगों को जागरूक करने में विशेष रुचि लेंगे। ताकि ग्रीन हाउस प्रभाव का संतुलन बना रहे।
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