मृदा संरक्षण पर निबंध लिखिए, मृदा संरक्षण के उपाय लिखिए, मृदा संरक्षण क्यों आवश्यक है?, (Definition of soil conservation in hindi, What are the measures of soil conservation in hindi)
मृदा अर्थात धरती की ऊपरी परत, जो जीवन का आधार है। मृदा हमारी धरती की वह अमूल्य संपदा है जो जीवन को पोषित करती है। ज़रा सोचिए, यदि मृदा ही नहीं बची, तो न खेती बचेगी, न भोजन मिलेगा और ना हि जीवन सुरक्षित रह सकेगा। मृदा संरक्षण (mrida sanrakshan) केवल सरकार या वैज्ञानिकों की ज़िम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है।
लेकिन आज के समय में जनसंख्या वृद्धि, अनियंत्रित शहरीकरण, औद्योगिकीकरण, रासायनिक खादों का अत्यधिक उपयोग, वनों की कटाई और अनुचित कृषि पद्धतियों के कारण मृदा की गुणवत्ता तेज़ी से गिर रही है। ऐसी परिस्थिति में मृदा संरक्षण की आवश्यकता और भी अधिक बढ़ जाती है।
इसलिए आज के समय में प्रत्येक व्यक्ति को मृदा संरक्षण का अर्थ (mrida sanrakshan ka arth) जानना बेहद ज़रूरी है। आइए जानते हैं मृदा संरक्षण क्या होता है? (mrida sanrakshan kya hota hai?) और साथ ही यह भी जानते हैं कि मृदा संरक्षण के उपाय क्या हैं? (mrida sanrakshan ke upay kya hain?)
मृदा संरक्षण क्या है? (Mrida sanrakshan kya hai?)
यदि मृदा को नुक़सान मानव द्वारा पहुंचाया जाता है, तो स्पष्टतः मानवों द्वारा इसे रोका भी जा सकता है। प्रकृति बिना संतुलन बिगाड़े भी मानवों को अपनी अर्थव्यवस्था का विकास करने के पर्याप्त अवसर प्रदान करती है। मृदा संरक्षण (mrida sanrakshan) एक ऐसी विधि है, जिसमें मिट्टी की उर्वरता बनाए रखी जाती है। इससे मिट्टी के अपरदन और क्षय को रोका जाता है और मिट्टी की निम्नीकृत दशाओं को सुधारा जाता है।
मृदा संरक्षण (Soil Conservation in hindi) उन सभी उपायों और तकनीकों का समूह है जो मृदा के क्षरण (Erosion), कटाव, उर्वरता की हानि तथा अन्य प्रकार की मृदा हानियों को रोकने या कम करने के लिए अपनाए जाते हैं। मृदा संरक्षण का उद्देश्य (mrida sanrakshan ka uddeshya) मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बनाए रखना, मृदा की संरचना को सुधारना और टिकाऊ कृषि व पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा करना होता है।
मृदा संरक्षण की आवश्यकता क्यों (Mrida Sanrakshan ki avashyakta kyon?)
मृदा संरक्षण की आवश्यकता क्यों हैं (mrida sanrakshan ki avashyakta kyon hai?) निम्न बिंदुओं के माध्यम आप जान सकते हैं -
1. कृषि के लिए आवश्यक :
उपजाऊ मिट्टी ही अच्छी फ़सल के लिए वरदान होती है। मृदा का क्षरण सीधा कृषि उत्पादन को प्रभावित करता है।
2. जलवायु नियंत्रण :
मृदा में नमी व पोषक तत्व होते हैं जो पेड़-पौधों के विकास में मदद करते हैं, और वनों की रक्षा करते हैं, जिससे पर्यावरण संतुलन बना रहता है।
3. जल स्रोतों की रक्षा :
मृदा कटाव के कारण नदियाँ, तालाब और जलाशय अवरुद्ध होते हैं, जिससे जल संकट उत्पन्न होता है।
4. भविष्य की पीढ़ियों के लिए संसाधन :
यदि आज मृदा का संरक्षण नहीं किया गया, तो आने वाली पीढ़ियों को खाद्य संकट का सामना करना पड़ सकता है।
मृदा संरक्षण के उपाय (Mrida Sanrakshan ke upay)
मृदा संरक्षण के उपाय निम्नलिखित हैं -
1. पुनः वनीकरण :
वनों की कटाई से मृदा पर पकड़ कमज़ोर हो जाती है और वर्षा के समय मिट्टी बह जाती है। दरअसल पेड़-पौधों की जड़ें मिट्टी को बाँधे रखती हैं और मिट्टी की उर्वरता भी बनाए रखती है। अतः वनों को फ़िर से लगाना और वनों की रक्षा करना मृदा संरक्षण का एक प्रमुख उपाय है।
2. ढलानों पर सीढ़ीनुमा खेती :
ढलान वाली भूमि का उपयोग कृषि के लिए नहीं होना चाहिए। ऐसी भूमि पर खेती करना ज़रूरी हो, तो इस पर सीढ़ीदार खेत बना लेने चाहिए। क्योंकि पर्वतीय व ढलानी खेतों में वर्षा का पानी तेज़ी से नीचे की ओर बह जाता है। जिससे मिट्टी भी कटकर बह जाती है। सीढ़ीनुमा खेत बनाने से पानी का बहाव धीमा होता है और मृदा भी संरक्षित रहती है।
3. समतल रेखाओं में जुताई :
किसान खेतों को ढलान की दिशा में न जोतकर समतल (समोच्च) रेखाओं के साथ जोतें। क्योंकि ऐसा करने से वर्षा जल का बहाव कम होता है और मिट्टी का कटाव भी कम होता है।
4. कृषि में जैविक तरीकों का प्रयोग :
रासायनिक खाद और कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग से मिट्टी की संरचना और जीवाणु समाप्त हो जाते हैं। जैविक खाद, कम्पोस्ट और गोबर की खाद से मिट्टी की उर्वरता शक्ति में बढ़ोत्तरी होती है।
5. फ़सल चक्र अपनाना :
हर बार एक ही फ़सल लगाने से मिट्टी विशेष पोषक तत्वों से वंचित हो जाती है। इसलिए फ़सलों को बदल बदल कर लगाने से मृदा की उर्वरता बनी रहती है।
6. हरित आवरण बनाए रखना :
खेतों अगर ख़ाली रहें तो उन पर घास या हरी खाद वाली फ़सलें बोई जानी चाहिए, इससे मिट्टी खुली नहीं रहेगी और हवा व पानी से क्षरण भी नहीं होगा। सीधे तौर कहा जाए तो, कृषि के लिए अनुपयुक्त भूमि को चरागाहों में बदल देना चाहिए।
7. पवन का अवरोध बनाए रखना :
खुले क्षेत्रों में खेतों के होने से हवा के कारण मिट्टी उड़ जाया करती है। इसलिए खेतों के चारों ओर पेड़ या झाड़ियाँ लगाना हवा की गति को कम करता है और मिट्टी उड़ने से बच जाती है।
8. वर्षा जल संचयन :
वर्षा के पानी को बहने से रोककर उसका संचयन करना बेहद आवश्यक है। इससे न केवल जल संकट से बचा जा सकता है, बल्कि मृदा का क्षरण भी।रोका जा सकता है। साथ ही मृदा में नमी भी बनी रहती है।
9. ढाल पर पौधारोपण :
ढाल वाले क्षेत्रों में अधिक घास, झाड़ियाँ और पौधे लगाए जाने चाहिए ताकि इन झाड़ियों व पौधों की जड़ों के कारण मिट्टी सुरक्षित रह सके।
10. बंजर भूमि का सुधार :
बंजर और अनुपजाऊ भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए उसमें जैविक सामग्री का प्रयोग करके, गड्ढों में जल रोककर और पौधारोपण करके सुधार किया जा सकता है।
मृदा संरक्षण में जनभागीदारी (Mrida sanrakshan mein jan bhagirathi)
मृदा संरक्षण हेतु सभी को भागीदारी निभानी चाहिए। इसके लिए किसानों को प्रशिक्षित करना चाहिए। इसके लिए उन्हें आधुनिक एवं टिकाऊ कृषि पद्धतियों की जानकारी देना अत्यंत आवश्यक है। साथ ही छात्रों में भी मृदा संरक्षण से जुड़ी जागरूकता ज़रूरी है। इसके लिए विद्यालयों में मृदा संरक्षण की शिक्षा देना अनिवार्य होना चाहिए। समुदाय स्तर पर जलग्रहण व मिट्टी बचाने के प्रयास होना चाहिए। इसके अलावा गांवों में विशेष तौर पर पौधारोपण अभियान चलाना चाहिए। मृदा के संरक्षण के लिए जनभागीदारी बहुत ज़रूरी है।
निष्कर्ष (Conclusion)
भारत सरकार द्वारा स्थापित केंद्रीय मृदा संरक्षण बोर्ड की ओर से देश के विभिन्न भागों में मृदा संरक्षण के लिए अनेक योजनाएँ बनाई गई हैं। जहां ये योजनाएँ जलवायु की दशाओं, भूमि संरूपण तथा लोगों के सामाजिक व्यवहार पर आधारित हैं। लेकिन ये योजनाएँ एक-दूसरे से तालमेल बनाए बिना ही चलाई गई हैं।
अतः मृदा संरक्षण का सर्वोत्तम उपाय भूमि उपयोग की समन्वित योजनाएँ ही हो सकती हैं। भूमि उपयोग के मानचित्र बनाए जाने चाहिए और भूमि का सर्वथा सही उपयोग किया जाना चाहिए। मृदा संरक्षण (mrida sanrakshan in hindi) का निर्णायक दायित्व ख़ासकर उन लोगों पर ज़्यादा है, जो कृषि योग्य भूमि का उपयोग करते हैं और उससे लाभ उठाते हैं।
आइए हम सब मिलकर इस अभियान को सफल बनाएं। "मिट्टी बचाओ–जीवन बचाओ" यही नारा लेकर जन जन में अलख जगाएं। साथ मिलकर मृदा संरक्षण (Soil Conservation in hindi) के महत्व को समझकर सच्चे दिल से भागीदारी निभाएं। क्योंकि यदि आज हमने क़दम नहीं उठाया, तो आने वाली पीढ़ियों को निश्चित रूप से इसकी बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ सकती है।
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