माँग किसे कहते हैं | माँग का अर्थ, प्रकार एवं मांग को प्रभावित करने वाले तत्व | What is demand in economics in hindi

माँ शब्द का सामान्य बोलचाल की भाषा में अर्थ प्रायः किसी वस्तु को प्राप्त करने की 'इच्छा' से लगाया जाता है। मगर अर्थशास्त्र में इसका सामान्य अर्थ कुछ अलग होता है। अर्थशास्त्र में किसी वस्तु को प्राप्त कर लेने की इच्छा मात्र को ही माँग नहीं कहा जाता, बल्कि अर्थशास्त्र में माँग का संबंध हमेशा एक निश्चित मूल्य एवं निश्चित समय से होता है।

माँग किसे कहते हैं? मांग को प्रभावित करने वाले तत्व क्या हैं?

उदाहरण के लिए यदि आप बाईक पर रोज़ कॉलेज जाना चाहते हैं तो सामान्यतः यह माना जायेगा कि "आप कॉलेज जाने के लिए बाईक की माँग कर रहे हैं।" परंतु अर्थशास्त्र की भाषा में यह माँग नहीं कहलायेगी। इसके लिए तो आवश्यक है कि बाईक ख़रीदने की इच्छा के साथ-साथ उसे ख़रीदने के लिए आपके पास साधन भी होने चाहिए और साथ ही आप उन साधनों से उसको ख़रीदने के लिए तत्पर भी हों।


माँग क्या है? (What is demand in economics in hindi) | Mang kya hai?

अर्थशास्त्र में माँग के लिए एक निश्चित कीमत पर माँगी गयी मात्रा भी होनी चाहिए। इसमें एक निश्चित समय का भी महत्व होता है। जैसे कि आप ठंड के समय क़ीमती से क़ीमती कोट ख़रीदने को तत्पर होते हैं किंतु वही कोट गर्मी के मौसम में बिल्कुल खरीदना नहीं चाहेंगे भले ही आपके पास सभी साधन उपलब्ध हों। अर्थात मांगी गयी निश्चित मात्रा के साथ निश्चित समय का उल्लेख भी होना चाहिए। तभी हम माँग को सही सही परिभाषित कर सकते हैं। यानी कि किसी वस्तु की माँग वह मात्रा है जिसे निश्चित क़ीमत पर किसी निश्चित समय विशेष पर ख़रीदा जाता है।
कुछ प्रमुख परिभाषायें निम्नानुसार हैं-

प्रो. बेंनहम के अनुसार- "दिए हुए मूल्य पर किसी वस्तु की माँग उस वस्तु की वह मात्रा होती है जो किसी समय विशेष पर उस मूल्य पर ख़रीदी जाती है।"

बॉबर के अनुसार- "माँग का अभिप्राय, दी हुई वस्तुओं अथवा सेवाओं की उन मात्राओं से होता है, जिन्हें उपभोक्ता एक बाज़ार में, एक दी हुई समय अवधि के अंतर्गत, विभिन्न मूल्यों अथवा विभिन्न आयों अथवा संबंधित वस्तुओं की विभिन्न कीमतों पर खरीदना चाहता है।"


उपरोक्तानुसार हम यह कह सकते हैं कि माँग का अभिप्राय, वस्तु की उन मात्राओं से होता है जो किसी निश्चित समय में, निश्चित मूल्य में, किसी बाज़ार में उपभोक्ताओं द्वारा ख़रीदी जाती है।

माँग के लिए मुख्य तीन बातें आवश्यक हैं- (1) माँग प्रभावपूर्ण इच्छा होती है, (2) माँग किसी निश्चित क़ीमत पर माँगी गयी मात्रा होती है, तथा (3) माँग किसी निश्चित समय के आधार पर माँगी गयी मात्रा होती है।



माँग और आवश्यकता में अंतर ꘡ Difference between demand and need in hindi

माँग और आवश्यकता में ज़्यादा ख़ास अंतर नहीं है। आर्थिक दृष्टिकोण से हम इनमें भिन्नता ज़रूर देखते हैं। जो कि निम्नलिखित है-

(1) आवश्यकता प्रभावपूर्ण इच्छा को कहते हैं अर्थात इसमें वस्तु की इच्छा को पूर्ण करने के साधनों के साथ-साथ व्यय करने की तत्परता होनी चाहिए। जबकि माँग में इन तीनों ही बातों के अलावा निश्चित क़ीमत तथा निश्चित समय का उल्लेख भी होना सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

(2) आवश्यकता से माँग बनती है जबकि इच्छा से ही आवश्यकता का जन्म होता है।

(3) माँग मूल्य पर निर्भर होती है जबकि आवश्यकता का मूल्य से कोई संबंध नहीं होता।

(4) मूल्य एवं समय बदलने पर माँग भी बदलती रहती है। जबकि आवश्यकता की प्रकृति स्थायी रूप से चलती रहती है।



माँग के आवश्यक तत्व (Essential elements of demand in hindi)

हमने देखा कि केवल इच्छा या आवश्यकता ही माँग नहीं हो सकती। बल्कि किसी आवश्यकता को माँग कहलाने के लिए उसमें मांग के आवश्यक कारकों (Mang ke avashyak tatva) का शामिल होना आवश्यक है। ये मांग के आवश्यक तत्व निम्न हैं - 

(1) इच्छा- माँग कहलाने के लिए उपभोक्ता की इच्छा का होना अति आवश्यक होता है। अन्य समस्त साधन भले ही उपभोक्ता के पास उपलब्ध हों। किन्तु यदि उसमें उस वस्तु को प्राप्त करने की इच्छा ही नहीं है तो वह माँग नहीं कहलायेगी।

(2) साधन- आप अब तो भली भांति जान ही चुके हैं कि मनुष्य की इच्छा किसी भी वस्तु को ख़रीदने की हो सकती है मगर आपके पास यदि पर्याप्त धन (साधन) ना हो तो आपकी वह इच्छा माँग नहीं कहलाएगी। उदाहरण के लिए अगर कोई भिखारी कार ख़रीदने की इच्छा रखता हो परंतु साधनों के अभाव में उस बेचारे की उस इच्छा को माँग की संज्ञा कदापि नहीं दे सकते।

(3) ख़र्च करने की तत्परता- किसी वस्तु को प्राप्त करने की इच्छा और साधन दोनों ही हो फ़िर भी हम इसे माँग नहीं कह सकते। माँग हम तभी कह सकेंगे जब उसी इच्छा की पूर्ति के लिए उस उपलब्ध धन (साधन) को सचमुच व्यय करने की तत्परता भी हो। उदाहरण के लिए किसी कंजूस की इच्छा कोई स्पेशल कार ख़रीदने की है। उसके पास पर्याप्त धन (साधन) भी है। लेकिन यदि वह धन ख़र्च करने के लिए तैयार ही नहीं है तो उसकी वह इच्छा माँग नहीं कहलागी।



(4) एक निश्चित मूल्य- माँग के अंतर्गत एक महत्वपूर्ण तत्व उस वस्तु का एक निश्चित मूल्य का होना है। यानि कि किसी उपभोक्ता द्वारा मांगी जाने वाली वस्तु का संबंध यदि क़ीमत से नहीं है तो उस स्थिति में माँग का आशय ही पूरा नहीं हो सकता। उदाहरण के लिए यदि आप कहें कि 700 kg चावल की माँग है। तो यह कहना अस्पष्ट और अपूर्ण ही होगा।  हाँ अगर आप उसे 700 kg चावल की ₹ 20 की क़ीमत पर माँग कहेंगे तो निश्चित ही आपका यह कहना स्पष्ट होने के साथ-साथ पूर्ण और उचित होगा।

(5) एक निश्चित समय- एक प्रभावपूर्ण इच्छा, और उसके लिए मनुष्य के पास पर्याप्त धन हो, एक निश्चित मूल्य भी तय हो और वह उस प्रभावपूर्ण इच्छा की पूर्ति हेतु अपने उस धन को ख़र्च करने के लिए इच्छुक भी हो। लेकिन वह किसी निश्चित समय से संबंध नहीं रखता है तो वह माँग अर्थहीन कहलाएगी। क्योंकि "किसी वस्तु की माँग उस मात्रा को कहते हैं जो किसी निश्चित क़ीमत पर, निश्चित समय के लिए माँगी जाती है।"



माँग के प्रकार (Types of demand in hindi)


मांग के प्रकारों (Mang ke prakar) की बात करें, तो माँग मुख्य रूप से तीन प्रकार की होती है-

(1) क़ीमत माँग (Kimat mang) 
(2) आय माँग (Aay mang)
(3) आड़ी माँग (Aadi mang)

(1) क़ीमत माँग (Price demand in hindi)

अर्थशास्त्र में माँग से अभिप्राय प्रायः क़ीमत माँग से ही होता है। क़ीमत माँग किसी वस्तु की उन मात्राओं को स्पष्ट करती है जो अन्य सभी बातें समान रहने पर, एक उपभोक्ता एक निश्चित समय में विभिन्न काल्पनिक मूल्यों पर ख़रीदने को तैयार है। अन्य सभी बातें समान रहना अर्थात उपभोक्ता की आय, रुचि, फ़ैशन, संबंधित वस्तुओं की क़ीमतों आदि में कोई परिवर्तन न होना।

(2) आय माँग (Income demand in hindi)

आय माँग से तात्पर्य वस्तुओं व सेवाओं की उन विभिन्न मात्राओं से है, जो अन्य सभी बातें समान रहने पर, उपभोक्ता किसी निश्चित समय में अपनी आय के विभिन्न स्तरों पर ख़रीदने के लिए तैयार होता है। अन्य सभी बातें समान रहने से तात्पर्य है उपभोक्ता की रुचि, स्वभाव, वस्तु या सेवा के मूल्य, संबंधित वस्तुओं के मूल्य इत्यादि में कोई भी परिवर्तन न होना। जिस प्रकार मूल्य-माँग, मूल्य और मात्राओं के संबंध को स्पष्ट करती है। उसी प्रकार आय-माँग, आय और मात्राओं के संबंध को बताती है।



(3) आड़ी माँग (Cross demand in hindi)

आड़ी माँग से तात्पर्य अन्य बातें समान रहने पर, किसी वस्तु या सेवा की उन विभिन्न मात्राओं से होता है, जो संबंधित वस्तुओं या सेवाओं की क़ीमतों में परिवर्तन होने के परिणामस्वरूप उपभोक्ता द्वारा ख़रीदी जाती है। इसमें भी अन्य सभी बातें समान रहने का तात्पर्य है उपभोक्ता की आय, रुचि, फ़ैशन, वस्तु विशेष की क़ीमत स्थिर रहती है। संबंधित वस्तुओं की व्याख्या निम्नन्दों प्रकार से की जा सकती है- 

(१) प्रतिस्थापन वस्तुएँ (Replacement goods in hindi) -

वे वस्तुएँ जिन्हें एक दूसरे के बदले में प्रयोग किया जा सकता है। प्रतिस्थापन वस्तुएँ (pratisthapan vastuyen) कहलाती हैं। जैसे- चाय या कॉफी। प्रतिस्थापित वस्तुओं के मूल्य तथा माँगी गयी मात्रा में सीधा-सीधा संबंध होता है यानि कि एक वस्तु की क़ीमत में कमी या वृद्धि दूसरी वस्तु की माँग में कमी या वृद्धि कर देती है। 

(२) पूरक वस्तुएँ (Complementary goods in hindi) -

ऐसी वस्तुएँ जिन्हें एक-दूसरे के साथ-साथ पूरक रूप में प्रयोग किया जा सकता है। पूरक वस्तुएँ (purak vastuyen) कहलाती हैं। जैसे- पेन और स्याही, कार तथा पेट्रोल आदि। यहां ध्यान देनी वाली बात यह है कि पूरक वस्तुओं की क़ीमत तथा माँगी गयी मात्रा में उल्टा संबंध होता है। यानि कि एक वस्तु की क़ीमत में कमी या वृद्धि दूसरी वस्तु की माँग में वृद्धि या कमी कर देती है। उदाहरण के लिए, कार की क़ीमत बढ़ने पर कार की माँग में कमी के साथ-साथ पेट्रोल की माँग में भी कमी आ जायेगी।



माँग को निर्धारित करने वाले तत्व | Factors determining demand in hindi) | माँग को प्रभावित करने वाले कारक

माँग को अनेक तत्व प्रभावित अथवा निर्धारित करते हैं। माँग को प्रभावित करने वाले तत्व (Mang ko prabhavit karne wale tatva/karak) निम्नलिखित हैं-

(1) वस्तु की क़ीमत -
किसी वस्तु की माँग को प्रभावित करने वाला सबसे प्रमुख तत्व उसकी क़ीमत होती है। वस्तु की क़ीमत परिवर्तित होने पर सामान्य माँग भी परिवर्तित हो जाती है। प्रायः वस्तु की क़ीमत घटने पर माँग बढ़ती है और क़ीमत बढ़ने पर माँग घटने लगती है। 

(2) उपभोक्ताओं की आय - 
प्रायः देखा जाता है कि उपभोक्ताओं की आय परिवर्तित होने पर वस्तुओं की माँग पर सीधा प्रभाव पड़ता है। यदि वस्तु की क़ीमत में परिवर्तन न हो और उपभोक्ताओं की आय बढ़ जाये तो वस्तुओं की माँग भी बढ़ जाती है तथा आय कम होने पर वस्तुओं की माँग भी घट जाती है।

(3) धन का वितरण -
यदि ध्यान दें तो आप देखेंगे कि समाज में धन का वितरण भी वस्तुओं की माँग पर विशेष प्रभाव डालता है। यदि धन का वितरण असमान हो अर्थात धन कुछ व्यक्तियों के ही हाथ में हो तो धनी व्यक्तियों की तरफ से विलासिता वाली वस्तुओं की माँग बढ़ जाएगी। ठीक इसके विपरीत परिस्थिति अर्थात धन के समान वितरण की स्थिति में आवश्यक वस्तुओं तथा ज़रूरी और आरामदायक वस्तुओं की माँग अधिक हो जाएगी।


(4) उपभोक्ताओं की रुचि -
उपभोक्ताओं की रुचि, आदत, फ़ैशन, रीति-रिवाज के कारण भी वस्तुओं की माँग पर प्रभाव पड़ता है। उपभोक्ताओं की रुचि के बढ़ने पर वस्तुओं की माँग भी बढ़ जाती है। उदाहरण के लिए यदि लोग कॉफी को ज़्यादा पसंद करने लगते हैं तो कॉफी की माँग ज़्यादा बढ़ जाएगी। और यदि लोग चाय को ज़्यादा पसंद करने लगे हों तो चाय की माँग ज़्यादा बढ़ जाएगी और कॉफी की माँग कम हो जाएगी।

(5) संबंधित वस्तुओं की क़ीमतों में परिवर्तन -
किसी वस्तु की माँग संबंधित वस्तुओं की क़ीमतों में होने वाले परिवर्तनों से भी प्रभावित होती है। प्रतिस्थापित वस्तुएँ जैसे- चाय और कॉफी में यदि चाय की क़ीमत में कमी हो जाये तो कॉफी की माँग कम हो जाएगी क्योंकि उपभोक्ता, कॉफी के स्थान पर चाय का प्रयोग अधिक करने लगेंगे। इसके विपरीत यदि चाय की क़ीमत बढ़ जाये तो कॉफी की माँग बढ़ जाएगी।
 
पूरक वस्तुएँ जैसे- कार व पेट्रोल में पेट्रोल की क़ीमत बढ़ जाने पर कार की क़ीमत भी कम हो जाएगी। और पेट्रोल की क़ीमत काम होने पर कार की माँग बढ़ जाएगी।

(6) जनसंख्या -
यदि किसी देश की जनसंख्या में वृद्धि हो तो उस देश के लोगों की ज़रूरतें भी बढ़ने लगेंगी। फलस्वरूप वस्तुओं की माँग भी बढ़ने लगेंगी।

(7) भविष्य में क़ीमतों में परिवर्तन की संभावना -
भविष्य में वस्तुओं की क़ीमतों में वृद्धि होने की आशा होने लगे तो वर्तमान में ही उनकी माँग बढ़ने लगती है। ठीक इसके विपरीत भविष्य में वस्तुओं की क़ीमतों में कमी की आशा हो तो वर्तमान में ही उन वस्तुओं की माँग कम होने लगती है।


(8) सरकारी नीति से माँग में परिवर्तन -
यदि सरकार करों में वृद्धि करती है तो नागरिकों की आय में कमी आने लगती है। फलस्वरूप वस्तुओं की कीमतें ज़्यादा लगने लगता हैं। जिस कारण वस्तुओं की मांग में भी कमी आ जाती है। लेकिन इसके विपरीत यदि सरकार कारों में वृद्धि करने के बजाय नागरिकों को उत्पादन या व्यवसाय में आर्थिक सहायता देती है तो वस्तुओं की कीमतें कम हो जाती हैं फलस्वरूप वस्तुओं की माँग बढ़ जाती है

(9) जलवायु से माँग में परिवर्तन -
किसी भी क्षेत्र की जलवायु की वजह से भी वस्तुओं की माँग पर प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के रूप में देखें तो ठंडी जलवायु वाले प्रदेशों में गर्म कपड़ों की माँग अधिक होने लगती है। जबकि गर्म जलवायु वाले प्रदेशों में वस्तुओं की माँग में कमी होने लगती है। 

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