सम सीमांत उपयोगिता नियम | Law of equi-marginal utility, importance and limitations in hindi

सम सीमांत नियम क्या है | सम सीमांत उपयोगिता नियम के महत्व बताइये | Sam simant upyogita niyam ki simaye likhiye


सम सीमांत उपयोगिता नियम, महत्व एवं सीमाएँ

निजी जीवन में देखा जाए तो उपभोक्ताओं की आय प्रायः सीमित ही होती है और आवश्यकताएं असीमित। उपभोक्ता वस्तुओं और सेवाओं का अपनी आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए उपयोग करता है। हम सभी उपभोक्ताओं के सामने यही एक धर्मसंकट होता है कि हम अपनी इस सीमित आय को अपनी आवश्यकताओं की वस्तुओं या सेवाओं पर व्यय करके अधिकतम संतुष्टि कैसे प्राप्त करें

प्रत्येक व्यक्ति अपनी सीमित आय को इस प्रकार ख़र्च करना चाहता है कि वह अपनी उन सभी वस्तुओं की सीमांत उपयोगिताओं को समान कर सके। यही सम सीमांत अवधारणा भी कहलाती है। आज हम इस अंक में सम सीमांत उपयोगिता नियम क्या है? पढ़ेंगे।





सम सीमांत उपयोगिता नियम की व्याख्या (sam simant upyogita niyam ki vyakhya) इस तथ्य के आधार पर की जाती है कि 'कोई उपभोक्ता अपनी सीमित आय को विभिन्न वस्तुओं पर किस तरह व्यय करे कि उसे अधिकतम संतुष्टि प्राप्त हो।' उपभोक्ता जब अपनी अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करता है तब उस दशा को उपभोक्ता का संतुलन (upbhokta ka santulan) कहा जाता है। सम सीमांत उपयोगिता नियम, उपभोक्ता के इसी संतुलन को व्यक्त करता है।

सम सीमांत उपयोगिता नियम के प्रतिपादक कौन थे? तो हम आपको बता दें कि इस नियम का प्रतिपादन सर्वप्रथम गोसेन ने किया था। यही कारण है कि इसे "गोसेन का दूसरा नियम" Gosen ka dusra niyam भी कहा जाता है।


सम सीमांत उपयोगिता नियम की परिभाषा (Definition of equi marginal utility law in hindi)

प्रो. मार्शल द्वारा दिया गया सम सीमांत उपयोगिता नियम का कथन एक ऐसी वस्तु के संबंध में था। जिसे विभिन्न प्रयोगों में प्रयुक्त किया जा सकता है। जैसे कि मुद्रा। अर्थात मुद्रा ही एक ऐसी वस्तु है जिसे उत्पादक द्वारा अनेक प्रयोग में लाया सकता है। 

मुद्रा के रूप में मार्शल द्वारा दी गयी सम सीमांत उपयोगिता नियम की परिभाषा निम्न प्रकार दी गयी-

"एक उपभोक्ता अपनी सीमित आय (मुद्रा) से अधिकतम संतुष्टि तभी प्राप्त कर सकता है जब वह मुद्रा रूपी अपनी आय को विभिन्न वस्तुओं के लिए इस प्रकार व्यय करे कि प्रत्येक वस्तु पर व्यय की गई मुद्रा की अंतिम इकाई से प्राप्त उपयोगिता (सीमांत उपयोगिता) एक समान हो।"


सम सीमांत नियम की मान्यताएं (Assumptions of the law of equi-marginal utility in hindi)

इस नियम की कुछ प्रमुख मान्यताएं sam simant niyam ki manyatayen हैं। जो कि निम्नलिखित रूप में हैं-

(1) इस नियम में यह मान्यता है कि उपभोक्ता एक विवेकशील प्राणी है। यानि कि अपनी सीमित आय को व्यय करते हुए किस प्रकार अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करना है। वह उपभोक्ता जानता है।


(2) इस नियम में यह माना जाता है कि मुद्रा की सीमांत उपयोगिता समान रहती है। यानि कि मुद्रा की मात्रा में कमी हो अथवा वृद्धि। उसकी सीमांत उपयोगिता नहीं बदलती।

(3) इस नियम में यह मान लिया जाता है कि उपभोक्ता की आय, फ़ैशन, रुचि इत्यादि में कोई परिवर्तन नहीं होता है। ये सभी स्थिर होती हैं।

(4) इस नियम में यह भी एक विशेष मान्यता है कि उपयोगिता, मुद्रा रूपी पैमाने से नापी जा सकती है। अर्थात मुद्रा के रूप में उपयोगिता मापनीय है।

सम सीमांत उपयोगिता नियम के महत्व (Importance of the law of equi-marginal utility in hindi)

सम सीमांत उपयोगिता नियम का महत्व sam simant upyogita niyam ka mahatva विभिन्न क्षेत्रों में अनेक परिस्थितियों में दिखाई देता है। आइये इसके महत्व को निम्न बिंदुओं के माध्यम से संमझते हैं-

(1) उपभोग के क्षेत्र में प्रयोग- इस नियम के आधार पर उपभोक्ता इस बात का निर्णय कर सकता है कि वह अपनी आय में से कितना वर्तमान में व्यय करे तथा कितना भविष्य के लिए बचाकर रखे। वर्तमान व्यय तथा भविष्य के लिए की गयी बचत की सीमांत उपयोगिताएं समान होने पर ही उपभोक्ता की संतुष्टि अधिकतम होगी।




(2) उत्पादन के क्षेत्र में प्रयोग- इस नियम की मदद से उत्पादक अपनी लागतों को न्यूनतम करके अपने लाभों को अधिकतम कर सकते हैं। उत्पादक को अधिकतम लाभ तभी प्राप्त होता है जब वह कम प्रतिफल (लाभ) देने वाले साधन को तब तक प्रतिस्थापित करता रहे जब तक कि सभी साधनों का सीमांत प्रतिफल (सीमांत लाभ) बराबर न हो जाये।

(3) विनिमय के क्षेत्र में प्रयोग- इस नियम के आधार पर ही हम बाज़ार में मुद्रा द्वारा वस्तु ख़रीदते समय वस्तु से मिलने वाली उपयोगिता तथा त्यागी गयी मुद्रा की उपयोगिता को समान करने का प्रयत्न करते हैं। जिससे हमें विनिमय क्रिया से अधिकतम संतुष्टि प्राप्त हो सके।

(4) वितरण के क्षेत्र में प्रयोग- सम सीमांत उपयोगिता नियम वितरण के क्षेत्र में उत्पादन के विभिन्न साधनों के पुरस्कार, जैसे- मज़दूरी, ब्याज़, लाभ आदि का निर्धारण  करने में मदद करता है। 

(5) राजस्व के क्षेत्र में प्रयोग- इस नियम के द्वारा ही सरकार विभिन्न वर्गों पर इस प्रकार कर लगाती है कि सभी वर्गों का सीमांत त्याग बराबर हो जाये। इससे कुल समाज का कुल त्याग न्यूनतम हो जाता है। इस आधार पर सरकार विभिन्न मदों पर व्यय इस प्रकार विभाजित करती है कि प्रत्येक मद से मिलने वाली सीमांत सामाजिक उपयोगिता बराबर हो। इससे सामाजिक कल्याण अधिकतम हो जाता है।


सम सीमांत उपयोगिता नियम की सीमाएं अथवा आलोचनाएँ (Criticisms or Limitations of the law of equi-marginal utility in hindi)


सम सीमांत उपयोगिता नियम की सीमा अथवा सम सीमांत उपयोगिता की आलोचनात्मक व्याख्या निम्नानुसार है-

(1) इस नियम की मान्यताएं दोषपूर्ण है। उदाहरणार्थ, उपयोगिता की सही माप संभव नहीं होती है। और यह नियम उसकी माप की मान्यता लेकर चलता है, इसी प्रकार मुद्रा की सीमांत उपयोगिता स्थिर नहीं रहती है इत्यादि।

(2) यह नियम तभी लागू होता है जबकि वस्तुओं को छोटी-छोटी इकाइयों में विभाजित किया जा सकता है। जबकि वास्तव में ऐसा करना सम्भव नहीं होता है।



(3) वस्तुओं के मूल्यों में परिवर्तन होने पर यह नियम लागू नहीं होता है।

(4) वस्तुओं के उपलब्ध न होने पर जब उनके स्थान पर कम उपयोगी वस्तु का उपभोग किया जाता है तो यह नियम लागू नहीं होता है।

(5) पूरक वस्तुओं, जैसे - कार व पेट्रोल के संबंध में यह नियम लागू नहीं होता है। क्योंकि इन वस्तुओं का प्रतिस्थापन नहीं किया जा सकता है।

उम्मीद है इस अंक में आपने सम सीमांत उपयोगिता नियम क्या है? इसके महत्व व आलोचनाएँ विस्तार से जाना होगा। आप हमें अपनी ओर से टॉपिक भी सुझा सकते हैं। हम पुरज़ोर कोशिश करेंगे कि आपके द्वारा सुझाए टॉपिक पर आर्टिकल लिखें।

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